
वाराणसी। प्रमुख सचिव के निर्देशानुसार वाराणसी में स्टेमी केयर नेटवर्क को एक "हब और स्पोक्स" मॉडल के आधार पर स्थापित करने का निर्णय लिया गया था। जनपद के राजकीय चिकित्सालयों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) पर हृदयाघात देखभाल परियोजना (स्टेमी केयर प्रोजेक्ट) संचालित की जा रही है। इसके अंतर्गत इलैक्ट्रो कार्डियोग्राफी (ईसीजी) व थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया हृदयाघात रोगियों के लिए वरदान साबित हो रही है। जनपद में क्रियाशील हार्ट सेंटरों पर विंडो अवधि में आये हृदयाघात के शत-प्रतिशत रोगियों की जान बचाई गयी है। परियोजना के तहत बीएचयू ‘हब’ एवं जनपद के सभी राजकीय चिकित्सालय एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ‘स्पोक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं। हृदयाघात रोगियों के लिए इसीजी तथा लोडिंग डोज सभी सामुदायिक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्द्ध हैं। इसकी जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी ने दी।
सीएमओ ने बताया कि महानिदेशक के निर्देश पर संयुक्त निदेशक (प्रशिक्षण) डॉ कमलेश यादव तथा स्टेट नोडल स्टेमी प्रोजेक्ट डॉ अमन खान की दो सदस्यीय टीम ने जनपद में संचालित हृदयाघात देखभाल परियोजना की प्रक्रिया को जानने के लिए ह्रदय रोग विभाग बीएचयू, स्वामी विवेकानंद मेमोरियल हॉस्पिटल (एसवीएम) भेलूपुर, सर सुन्दरलाल मंडलीय चिकित्सालय (एसएसपीजी) का दौरा कर परियोजना का हाल जाना।
इस परियोजना की विस्तृत जानकारी एसवीएम राजकीय चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ क्षितिज तिवारी ने दो सदस्यीय टीम को दी। उन्होंने हृदयाघात परियोजना के अंतर्गत संचालित की जा रही प्रक्रियाओं से अवगत कराते हुए बताया कि ईसीजी के माध्यम से हृदयाघात के मरीजों की जांच की जाती है। व्यक्ति को सीने में अचानक से तेज दर्द होने पर यदि वह एक घंटे के अंदर गोल्डन आवर में ही चिकित्सालय पहुँच जाता है तो उसे थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन देकर उसे स्थिर किया जा सकता है। वहीं व्यक्ति को सीने में लगातार दर्द हो रहा हो तथा वह चार से छह घंटे में चिकित्सालय पहुँच जाता है तो उस विंडो पीरियड में थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया पूर्ण की जा सकती है तथा मरीज की जान बचाई जा सकती है।
यदि रोगी के सीने में लगातार दर्द हो रहा है तो ऐसी स्थिति में भी मरीज 12 घंटे के अंदर चिकित्सालय पहुँच जाता है तो उस पीरियड में भी थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन देकर उसे स्थिर किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत लगाए जाने वाला इंजेक्शन, मरीज के नसों में रक्त के अवरुद्ध प्रवाह को दूर करने की प्रक्रिया को पूरा करता है। इससे मरीज स्थिर हो जाता है और उसकी जान बच जाती है। हार्ट अटैक आने या मरीज में हृदयाघात की समस्या दिखाई देने पर उसे थ्रंबोलिसिस थेरेपी दी जाती है, इससे मरीज ठीक हो जाता है।