Varanasi News: रामायण पर कराएगा शोध, गीता के उर्दू अनुवाद पर रिसर्च कराने वाला भारत का पहला विवि बना बीएचयू
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Varanasi News: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग ने श्रीमद्भागवत गीता के उर्दू अनुवाद पर देश में पहला शोध कराने की उपलब्धि हासिल की है। उर्दू विभाग के शोध छात्र बलविंदर सिंह ने बीएचयू के उर्दू विभाग से श्रीमद्भागवत गीता के उर्दू अनुवाद पर शोध किया है। पिछले महीने ही विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें डिग्री भी मिल गई। अब बलविंदर रामायण के उर्दू अनुवाद पर शोध करने की तैयारी कर रहे हैं।
बीएचयू उर्दू विभाग में वर्तमान समय में यूजी-पीजी और शोध में 250 से अधिक छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे हैं। इसमें 40 शोध छात्र हैं। इन्हीं में एक हैं जम्मू के मूल निवासी बलविंदर सिंह जिन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के उर्दू अनुवाद पर शोध किया और पीएचडी की डिग्री हासिल की है। विभागाध्यक्ष प्रो. आफताब अहमद आफाकी का दावा है कि श्रीमद्भागवत गीता के उर्दू अनुवाद पर देश के विश्वविद्यालयों में किया गया यह पहला शोध है।
अब रामायण पर शोध करेंगे बलविंदर
मूल रूप से जम्मू के रहने वाले बलविंदर ने बताया कि श्रीमद्भागवत गीता का 300 से अधिक लेखकों ने उर्दू में अनुवाद किया है। उन्होंने अपने शोध के लिए 150 से अधिक लेखकों के उर्दू अनुवाद वाली पुस्तकों का अध्ययन किया। शोध का उद्देश्य यही था कि युवाओं को उर्दू अनुवाद के माध्यम से श्रीमद्भागवत गीता के सही उद्देश्य बताए जा सके। अब वह उर्दू विभाग के अध्यक्ष समेत अन्य शिक्षकों के सहयोग से रामायण के उर्दू अनुवाद के अपने संकल्प को पूरा करेंगे।
लखनऊ छोड़कर बीएचयू को चुना
बलविंदर ने बताया कि पहले उन्होंने लखनऊ के ख्वाजा मोइनुद्ददीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय से शोध करने का प्रयास किया। यहां एक शिक्षक से मुलाकात हुई लेकिन सहयोग नहीं मिला। फिर उन्होंने बीएचयू को चुना। यहां सितंबर 2019 में शोध प्रवेश परीक्षा दी। सौभाग्य रहा कि पहले ही सूची में नाम आया और जनवरी में दाखिला हो गया। उर्दू विभाग में डॉ. ऋषि कुमार शर्मा के निर्देशन में उन्होंने शोध किया।
बीएचयू लाइब्रेरी में हैं रामायण के उर्दू अनुवाद वाली पुस्तकें
उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. आफताब अहमद आफाकी का कहना है कि रामायण के उर्दू अनुवाद पर आधारित पुस्तकों की कई प्रतियां बीएचयू की सेंट्रल लाइब्रेरी में रखी हैं। विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. हुकुम चंद्र नैयर की पहल पर इन पुस्तकों को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मंगवाया गया था। आज भी यूजी, पीजी के साथ ही शोध के छात्र इन पुस्तकों का अध्ययन करते हैं।