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Varanasi News: वाराणसी के पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहन दे सरकार, कुश्ती, जोड़ी, गदा, नाल, डंबल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिये आगे आए काशी के पूरे पहलवान

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वाराणसी। काशी की लुप्त होती जोड़ी-गदा, नाल और डंबल की कला को प्रोत्साहन देने की सख्त जरूरत है। कभी इन खेलों में काशी की राष्ट्रीयस्तर पर पहचान रही। मगर तेजी से बदलते दौर में काशी की यह कला लुप्त हो रही है या संकटमें है। काशी के पूर्व पहलवान इसे लेकर काफी चिंतित है। उन्होंने काशी के सांसदऔर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस लुप्त होती काशी की पारंपरिक कला को संरक्षण देने और उसे प्रोत्साहित करने की मांग की है। यहां पराडकर स्मृति भवन में पत्रकारों से बातचीत में काशी के पूर्व पहलवान नान ओलंपिक स्पोर्ट्स एसोसिएशन से जुड़े कल्लू पहलवान ने कहा कि एक दौर था जब काशी के हर मोहल्ले में एक अखाड़ा होता था। युवा बुजुर्ग वहां नियमित रियाज करने जाते थे। जोड़ी, गदा, नाल, डंबल फेरने का मुकाबला होता था, मगर अब तस्वीर बदल गयी है। काशी का यह पारंपरिक खेल अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है।

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अखाड़े बंद पड़े हैं, जो एकाध चल भी रहे हैं तो वहां मिट्टी के बजाये गद्दे की कुश्ती हो रही है। पांच साल हो गए, गंगा में नौका दौड़ की कोई स्पर्धा नहीं हुआ है। ऐसे तमाम साहसिक खेल जो पूर्व में अपनी विशेष पहचान रखते थे, अब खत्म होने की कगार पर है। इनका संरक्षण बेहद जरूरी है। कल्लू पहलवान ने कहा कि हमारी प्रधानमंत्री से मांग है कि वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट की तर्ज पर काशी के इन खेलों को भी सरकार प्रोत्साहित करें। साथ ही इन खेलों में कैरियर बनाने वाले युवा खिलाड़ियों को नौकरी में भी कोटा मिले।पत्रकार वार्ता में मौजूद रविन्द्र कुमार गौड़ और जोखू पहलवान ने कहा कि काशी के बंद पड़े अखाड़ों को पुर्नजीवित किया जाना बेहद जरूरी है। सब जानते हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। ऐसे में इन पारंपरिक खेलों के जरिए युवा पीढ़ी को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों काशी में सांसद खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। उसमें काशी की कई पारंपरिक खेलों को शामिल किया गया था। ऐसे आयोजन से इन खेलों से जुड़े पूर्व खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिला। ऐसे आयोजन निरंतर होने चाहिये, ताकि जोड़ी-गदा-नाल, डंबल फेरने की कला लुप्त न हो। कल्लू पहलवान ने कहा कि काशी के पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहन देने के लिये हमारा ऐसोसिएशन समय-समय पर इन खेलों की प्रतियोगिताएं आयोजित करेगा। 
उन्होंने कहा कि गहरेबाजी (एक्कादौड़) कभी काशी की पहचान थी, मगर बीते वर्षों में यह खेल भी दम तोड़ रहा है। हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में इस साहसिक खेल को भी प्रोत्साहित किया जाये। काशी में गहरेबाजी (एक्का दौड़) का मुकाबला आयोजित किया जायेगा। जिसमें काशी के अलावा आसपास के जिलों के प्रतिभागियों को भी आमंत्रित किया जायेगा।

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