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Varanasi News: रामनगर की रामलीला का 15वां दिन: सिर पर खडाऊं लेकर भरत चल पड़े अयोध्या, रामभक्त ले चले राम की निशानी

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Varanasi News: विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के 15 वें दिन गुरुवार को 14 वें रामलीला में श्रीराम द्वारा दिए गए खड़ाऊं को सिर पर धारण कर चित्रकूट से अयोध्या प्रस्थान करते भरत की भक्ति देख सभी आनंदित हो गए। भरत का चित्रकूट से विदा होकर अयोध्या गमन व नंदीग्राम निवास की लीला देखने के लिए लीलाप्रेमियों की भारी भीड़ रही।

 

गुरुवार को लीला के प्रारंभ में भरत ने श्रीराम से कहा कि गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से आपके राज तिलक के लिए सभी तीर्थों का जल लाया हूं उसे क्या करूं? भरत द्वारा तीर्थ वन, पशु, पक्षी तालाब आदि स्थानों को देखने की इच्छा प्रकट करने परराम कहते हैं कि अत्रि मुनि की आज्ञा लेकर निर्भय हो वन में भ्रमण करो। ऋषि राज जहां आज्ञा दें उसी स्थान पर तीर्थों के जल को रख देना।

 

अत्रि मुनि के आदेश पर भरत ने पहाड़ के निकट एक सुंदर कूप के पास राजतिलक के लिए जल को रख दिया। अत्रि मुनि ने कहा कि यह अनादि स्थल जिसे काल ने नष्ट कर दिया था। इस पवित्र जल के संयोग से यह स्थल संसार के लिए कल्याणकारी हुआ। इस कूप को आज से भरत कूप कहा जाएगा। ऋषि श्रीराम को भी भरत कूप की महिमा बताते हैं।

 

श्रीराम व मुनि की आज्ञा मानकर भरत पांच दिनों तक चित्रकूट की प्रदक्षिणा करते हैं। प्रातः काल भरत सभी लोगों के साथ प्रभु श्रीराम से आज्ञा मांगते हैं और उनके द्वारा दिए गए खड़ाऊं को सिर पर बांध कर आनंदित होकर विदा मांगते हैं। इस पर श्रीराम गले लगाते हुए भरत को विदा करते हैं।

 

लीला के दूसरे चरण में श्रीराम उदास होकर लक्ष्मण और सीता से कहते हैं कि भरत की दृढ़ता स्वभाव व मधुर जबान की तुलना नहीं की जा सकती। देवतागण श्रीराम से कहते हैं कि जो अत्याचार देवताओं ने आप पर किया है उसे क्षमा करें। श्रीराम देवतागणों से कहते हैं कि अपने कल्याण के लिए काम कर रहे हैं, इसलिए धीरज धारण करिए। यहीं पर लीला की प्रथम आरती होती है। 

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श्रीराम का खड़ाऊं लेकर अयोध्या लौटे भरत

 

जाल्हूपुर के टूड़ी नगर की रामलीला में बृहस्पतिवार को भरत का चित्रकूट से विदा होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान और नंदीग्राम में कुटी में बनाकर रहने की लीला का मंचन किया गया। श्रीराम ने भरत को सब प्रकार से समझाया तो वे अयोध्या लौटने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन लौटने से पूर्व चित्रकूट के पावन स्थलों को देखने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

 

अयोध्या लौटने पर भरत श्रीराम की खड़ाऊं राजसिंहासन पर रखकर उसकी जिम्मेदारी शत्रुघ्न को सौंप देते हैं और स्वयं नंदीग्राम में निवास करने चले जाते हैं। सभी को विदा करके श्रीराम अपनी कुटिया में गए और वहां चित्रकूट में राम सीता और लक्ष्मण की आरती होती है। इसी के साथ रामलीला को विराम देते हैं।

भरत ने बनाया नंदीग्राम में पर्ण कुटी

भगवान श्रीराम की पादुका लेकर लौटे भरत सेवकों से कहते हैं हम सब महाराज के सेवक हैं और सेवक को ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे स्वामी को झूठा न बनना पड़े। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पाकर भरत श्रीराम की चरण पादुका को मंत्रोच्चार के बीच राज सिंहासन पर स्थापित करते हैं और फिर नंदीग्राम में पर्ण कुटीबनाकर 14 वर्ष के लिए वास करते हैं। यहीं पर भरत के नंदीग्राम वास की प्रसिद्ध आरती लेकर लीला प्रेमी भरत की जय जयकार करते हैं।

राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ पहुंचे जनकपुर

नियार की रामलीला में छठवें दिन विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ गंगा जी के किनारे पहुंचते हैं। विश्वामित्र द्वारा राम और लक्ष्मण को गंगा के महात्मय के बारे मे बताते हैं और गंगा में स्नान कर आगे बढ़ते हैं। मार्ग में राजा जनक अपने सचिव के साथ विश्वामित्र से मिलते हैं। इस दौरान राम और लक्ष्मण आते हैं।

दोनों भाइयों को देखकर जनक जी के द्वारा विश्वामित्र से दोनों भाइयों के बारे में जानकारी लेते हैं और शीतल औराई में जनक जी विश्वामित्र को निवास करने का अनुग्रह करते हैं। राम लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र का आदेश लेकर जनकपुर घूमने जाते हैं। इस दौरान जनकपुर की नर नारी राम लक्षण को देखकर प्रफुल्लित होती हैं और इसके साथ ही लीला समाप्त होती है।

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