UP News: यूपी के एक थाने में लगती है दो थानेदारों की कुर्सियां, इस थाने में अफसर की कुर्सी पर विराजते हैं भगवान

देवता को कहा जाता है काशी का कोतवाल, यहा कोतवाली में थानेदार नहीं बाबा बैठते हैं
UP News: वाराणसी काशी की परम्परा ही निराली है,ऐसा काशीवासी नहीं बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक भी कहते हैं।इस पवित्र नगरी के बारे में आप जितना जानना या सुनना चाहेंगे,वो कम ही होगा और उसका मुख्य कारण हैं यहां के अतरंगी लोग और उनकी संस्कृति व परम्परा।काशी को भोले की नगरी के नाम से जाना जाता है यानी कि महादेव की नगरी या महादेव का घर।
यहां हर गली,हर मोहल्ले महादेव के भक्त मिल जाएंगे,जो अपनी सुबह की शुरुआत काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद के साथ करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि काशी में एक ऐसा मंदिर है,जिसे काशी कोतवाल के नाम से पूजा जाता है।
काशी के मुख्य देवता हैं काशी कोतवाल अगर आप कभी काशी गए होंगे तो आपको पता होगा और अगर नहीं मालूम है तो कोई बात नहीं।हम बताने जा रहे हैं आपको काशी के कोतवाल के बारे में।वाराणसी में एक काल भैरव का मंदिर है,जो मैदागिन इलाके में स्थित है।काशी के सभी मंदिरों की तरह इस मंदिर की भी अपनी एक अलग पहचान और अपनी एक अलग पौराणिक मान्यता है,जिन्हें बाबा काल भैरव या काशी कोतवाल के नाम से जाना जाता है।रविवार के दिन इस मंदिर में काफी भीड़ देखने को मिलती है।
काशी कोतवाल के नाम से पूजे जाते हैं काल भैरव
जैसा कि हर शहर में कोतवाली थाना होता है और उसकी मुख्य कुर्सी पर थानेदार बैठता है।लेकिन काशी के कोतवाली थाने की मुख्य सीट पर कोई थानेदार नहीं बल्कि बाबा काल भैरव विराजते हैं और थानेदार की कुर्सी कोतवाल के ठीक बगल में लगती है,जिस पर थानेदार बैठता है।यही कारण है कि बाबा को काशी कोतवाल कहा जाता है।
काशी के कई इलाकों के लोग बाबा को शादी या किसी मुख्य अवसर का पहला कार्ड भी चढ़ाते हैं और उनका मानना है कि ऐसा करने से सभी काम अच्छे से हो जाते हैं और बाबा का आशीर्वाद उन पर बना रहता है।
काशी कोतवाल के पीछे की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, विष्णु जी और ब्रह्मा जी में बहस हो रही थी कि आखिर दोनों में से श्रेष्ठ कौन है ? फिर दोनों शिव जी के पास पहुंचें,इसके बाद बहस के दौरान दोनों की किसी बात से शिव जी नाराज हो गए,जिससे काल भैरव की उत्पत्ति हुई और फिर ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काल भैरव ने काट दिया, जिसके बाद उनके नाखुनों में ही ब्रह्मा जी का सिर फंसा रह गया और उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष भी लग गया, जिससे मुक्ति पाने के लिए शिव जी के कहे अनुसार काल भैरव तीनों लोक की पैदल यात्रा पर निकल पड़े और काशी में आते ही ब्रह्मा जी का सिर उनके उंगलियों से अलग हो गया,जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें काशी में ही रहने का आदेश दिया और वरदान भी दिया वे काशी के कोतवाल के नाम से जाने जाएंगे।
काशी विश्वनाथ से पहले काशी कोतवाल की पूजा
वर्तमान समय में अगर कोई भी भक्त काशी आता है और काशी विश्वनाथ का दर्शन करना चाहता है तो उन्हें सबसे पहले काशी कोतवाल के दर्शन करना होता है और फिर काशी विश्वनाथ के दर्शन। तभी उनकी यात्रा सफल मानी जाती है।
कहा जाता है कि काशी कोतवाल ही काशी के कर्ता-धर्ता हैं और उनकी मर्जी के बगैर काशी में कोई प्रवेश भी नहीं कर सकता है।
बाबा का विशेष प्रसाद है- मदिरा
काल भैरव के मंदिर में शराब का भोग लगाया जाता है।मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इसका कोई मुख्य कारण आज तक नहीं मिल पाया है लेकिन शराब को बाबा के मुख्य प्रसाद के रूप में जाना जाता है,जो मंदिर में उत्सव के दौरान मुख्य रूप से चढ़ाया भी जाता है।
अगर किसी भक्त के काम नहीं बनते और बाबा के दरबार में हाजिरी लगाकर वे मन्नत मांगते हैं और जब वो पूरी हो जाती है तो वे बाबा को शराब का भोग लगाते हैं।वैसे इसके पीछे कई मान्यताएं है जो भिन्न-भिन्न है।
तो इसलिए अपनी कुर्सी पर नहीं बैठते थानेदार
विश्वेश्वरगंज स्थित कोतवाली पुलिस स्टेशन के प्रभारी बताते हैं कि ये परंपरा सालों से चली आ रही है।यहां कोई भी थानेदार जब पोस्टिंग होकर आया,तो वो अपनी कुर्सी पर नहीं बैठा। कोतवाल की कुर्सी पर हमेशा काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव विराजते हैं। क्राइम कंट्रोल के साथ-साथ सामाजिक मेल-मिलाप, आने-जाने वालों पर बाबा खुद नजर बनाए रखते हैं वो शहर के रक्षक हैं।इसीलिए इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।
बाबा की पूजा के बाद ही यहां तैनात पुलिसकर्मी काम शुरू करता है।ऐसा माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ ने पूरी काशी नगरी का लेखा-जोखा का जिम्मा काल भैरव बाबा को सौंप रखा है। शहर में बिना काल भैरव की इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता।
शहर की सुरक्षा के लिए थानेदार की कुर्सी पर बाबा काल भैरव को विराजा गया है।हालांकि,इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की,ये कोई नहीं जानता। लेकिन माना जाता है कि अंग्रेजों के समय से ही ये परंपरा चली आ रही है।
ऐसा है बाबा काल भैरव का महत्व
साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था।वास्तुशास्त्र के अनुसार बना यह मंदिर आज तक वैसा ही है।
हमेशा से एक खास परंपरा रही है की यहां आने वाला हर बड़ा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबसे पहले बाबा के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेता है। काल भैरव मंदिर में रोजाना 4 बार आरती होती है।
रात की शयन आरती सबसे प्रमुख है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। मगर उस दौरान पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है।एक अखंड दीप हमेशा जलता रहता है।
disclamer
लाइव भारत न्यूज़ एक वैबसाइट पोर्टल है । लाइव भारत न्यूज वैबसाइट पोर्टल लोकल खबरों के साथ-साथ राजनीति, अपराध, मनोरंजन, व्यापार और खेल के तमाम खबरों को दिखाता है। हम प्रत्येक खबरों को सच्चाई के साथ आपके सामने प्रस्तुत करते हैं। हमारा उद्देश्य यह है कि हम आपके क्षेत्र से जुड़े हर मुद्दों को अपने चैनल के माध्यम से दिखाएं और उसपर तत्परता से कार्यवाही करवाएं।
About website portal:
Live Bharat News is a Hindi news website porta. Live Bharat News website porta shows all the news of politics, crime, entertainment, business and sports along with local news. We present each and every news to you with the truth. Our aim is to show every issue related to your area through our website porta and get prompt action taken on it.
Our News Website - https://www.livebharatnews.in
Our Facebook Page - https://www.facebook.com/livebhartnews
Our Twitter Page - https://twitter.com/livebharatnews
Our Instagram Page - https://instagram.com/livebharatnews
Our Koo Page - https://www.kooapp.com/profile/livebharatnews
Our Pinterest Page - https://in.pinterest.com/livebharatnews/
Our LinkedIn Page - https://www.linkedin.com/company/livebharatnews/