सनबीम विमेंस कॉलेज वरुणा में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
भारत की स्वदेशी शिक्षा प्रणाली गुरुकुल से डिजिटल कक्षा तक’ विषय पर आधारित रहा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
वाराणसी। सनबीम विमेंस कॉलेज वरुणा के प्रांगण में 27 और 28 सितंबर को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के द्वारा वित्तपोषित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके मुख्य अतिथियों में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो0 आनंद कुमार त्यागी, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद उपनिदेशक डॉ विनोद कुमार, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सुरेश कुमार, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान की डीन प्रोफेसर बिंदा परांजपे तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रोफेसर हरिहर पांडा रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। सभी मुख्य अतिथियों का स्वागत सनबीम समूह के डीन ऑफ एकेडिमिक्स एण्ड क्रियेटीविटी आदित्य चौधारी द्वारा किया।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में केंद्र शासित प्रदेश सहित 16 राज्यों 10 विश्वविद्यालय जैसे दिल्ली, पटना हिमाचल, इलाहाबाद, बुंदेलखंड, अमेठी, लखनऊ, महाराष्ट्र, मिजोरम, ओडीशा, गुजरात ,झारखंड आदि तथा 40 महाविद्यालयों के लगभग 250 प्रतिभागियों ने भाग लिया एवं पेपर एवं पोस्टर प्रस्तुति के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने कहा कि गुरुकुल से डिजिटल तक के सफर का सुखद परिणाम यह है कि आज भारत विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी की ओर बढ़ रहा है।
ये भारत की पहचान ही है जहां वैदिक मंत्र का उच्चारण भी हो रहा और कंप्यूटर के क्षेत्र में क्रांति से डिजिटल भी बन रहा है।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफेसर सुनील कुमार सिंह ने कहा कि भारत की शिक्षा पद्धति सदैव उन्नत रही है जहां प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्रदान किया जाता था जहां सिर्फ शिक्षा ही नहीं अपितु भाईचारे ,मानवता, प्रेम और अनुशासन के साथ एक दूसरे को साथ रहने की भी कला सिखाई जाती थी। भारत की शिक्षा पद्धति सदैव सबके विकास और प्रगति के लिए तत्पर रही है इसीलिए यह बदलाव को भी सहर्ष स्वीकार करती है।
अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई ने विडियो के माध्यम से राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत आदिकाल से ही शिक्षा और अध्ययन के क्षेत्र में समृद्ध रहा है भारत की प्रचलित शिक्षा पद्धतियों में गुरुकुल परंपरा का स्थान सर्वोपरी है जहां गुरु और शिष्य का संबंध सभी संबंधों में ऊपर और पवित्र था। गुरुकुल पद्धति की ही देन है जो आज भी हम विश्व में वैदिक क्षेत्र में सबसे आगे है।
कार्यक्रम के पूर्णसत्र में प्रो0 विनोद चौधरी, प्रो0 मनोज राय, प्रो0 शेफाली वर्मा ठकराल, डॉ0 मयूरेश मिश्रा, डॉ0 नरेश सिंह, डॉ0 वसीम मंसूर एवं डॉ0 सूरेश कुमार आदि वक्ताओं ने संगोष्ठी विषयक पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
पैनल डिस्कशन के अध्यक्ष प्रोफेसर मनोज राय, डॉ प्रियंका सिंह, और डॉ मयूरेश मिश्रा ,डॉ सुभाष चंद्र यादव ,डॉ वसीम मंसूर, डॉ रविकांत सिंह ने विषय की गहनता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की गुरुकुल प्रणाली ने विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता ,सहानुभूति रचनात्मकता और मजबूत नैतिक मूल्यों को विकसित करने पर विशेष रूप से जोर दिया क्योंकि मानव मूल्यों की प्रगति के लिए यह सभी बहुत आवश्यक है अतः इसे नए कलेवर में स्थापित करने का प्रयास हम सभी को करना चाहिए।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन दो टेक्निकल सेशन आयोजित हुए। प्रथम टेक्निकल सेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर घनश्याम, उपाध्यक्ष डॉ0 संतोष कुमार यादव एवं डॉ वसीम मंसूर रहे जिन्होंने प्रतिभागियों के विचारों को ध्यान से सुना और उनके सवालों का जवाब दिया। दूसरे टेक्निकल सेशन के अध्यक्षा प्रोफेसर जया कुमारी आर्यन, डॉ0 रविकान्त सिंह तथा उपाध्यक्ष डॉ0 निधि मिश्रा थी।
इस टेक्निकल सेशन में गौरव कुमार बिसेन, स्वाति, निलेश कुमार ने आज की डिजिटल प्रणाली का शिक्षा पर प्रभाव प्राचीन ,भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा एवं शिक्षा संरचना पर अपने पेपर प्रस्तुत किया जिसे विद्वतजनों ने बड़े मनोयोग से सुना एवं प्रश्न भी पूछे।
दूसरे दिन के पहले टेक्निकल सेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर संजीव कुमार, उपाध्यक्ष डॉ0 आनन्द प्रकाश, एवं डॉ0 अनीता सिंह थी एवं दूसरे टेक्निकल सेशल के अध्यक्ष डॉ0 सीमा पटेल, उपाध्यक्ष एवं डॉ0 डॉ0 अजीत कुमार राय, डॉ0 कमलेश तिवारी, थे जिसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से आये हुए सहायक प्रोफेसर एवं शोध छात्रों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किये गये।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा पैनल डिस्कशन भी हुआ जिसमें उन्होंने अपने विचार रखें सभी ने भारत की स्वदेशी शिक्षा प्रणाली और डिजिटल शिक्षा का तुलनात्मक परिपेक्ष्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि, प्राचीन काल में कैसे भाषा, विज्ञान और गणित जैसे विषयों को भी समूह चर्चा और स्व शिक्षण के माध्यम से पढ़ाया जाता था। उस समय योग, दान और मंत्र जैसी गतिविधियों को भी अपने पाठयक्रम में स्थान दिया जाता था जिससे मन को शांति मिले और तन भी स्वस्थ रहे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंत में समापन समारोह का आयोजन हुआ जिसके मुख्य अतिथि संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा रहे। मुख्य अतिथि ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुरुकुल शिक्षा सिर्फ शिक्षा पद्धति ही नहीं बल्कि हमारे संस्कारों, हमारे नैतिक परंपराओं, वैदिक ऋचाओं, आपसी प्रेम, विश्वास शिष्टाचार के गुणों को भी सहेजने और एक दूसरे में प्रसारित करने का कार्य करता था।
संगोष्ठी के अन्त में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 राजीव सिंह, संगोष्ठी के संयोजक डॉ0 रविशेखर सिंह ने सभी मुख्य अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया तथा महाविद्यालय की प्रशासनिक अधिकारी डॉ0 शालिनी सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया गया।