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वरुथिनी एकादशी पर विशेष, वाराणसी में गंगा किनारे यहां बुलाते हैं आदिकेशव

वरुथिनी एकादशी पर विशेष, वाराणसी में गंगा किनारे यहां बुलाते हैं आदिकेशव

 

वाराणसी। काशी की पहचान गंगा के घाटों से है। गंगा घाटों की पहचान और परंपरा के क्रम में आदिकेशव घाट का महात्म्य कम नहीं है। आदिकेशव घाट काशी का प्रमुख व प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है । ग्यारहवीं सदी में गढ़वाल वंश के राजाओं ने आदिकेशव मंदिर व घाट का निर्माण कराया था। मान्यता है कि ब्रह्मालोक निवासी देवदास को शर्त के अनुसार ब्रह्मा जी ने काशी की राजगद्दी सौंप दिया और देवताओं को मंदराचल पर्वत जाना पड़ा। शिवजी इससे बहुत व्यथित हुये क्योंकि काशी उनको बहुत प्यारी थी। तमाम देवताओं को उन्होंने काशी भेजा ताकि वापस उन्हें मिल जाय लेकिन जो देवता यहां आते यहीं रह जाते। अखिर हारकर उन्होंने भगवान विष्णु और लक्ष्मी से अपना दर्द बताया और उन्हें काशी वापस दिलाने का अनुरोध किया। लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु काशी में वरुणा व गंगा के संगम तट पर आये।

 

यहां विष्णु जी के पैर पड़ने से इस जगह को विष्णु पादोदक के नाम से भी जाना जाता है। यहीं पर स्नान करने के उपरान्त विष्णु जी ने तैलेक्य व्यापनी मूर्ति को समाहित करते हुये एक काले रंग के पत्थर की अपनी आकृति की मूर्ति स्थापना की और उसका नाम आदि केशव रखा। उसके बाद ब्रह्मालोक में देवदास के पास गये और उसको शिवलोक भेजा और शिवजी को काशी नगरी वापस दिलायी। कहा- अविमुक्त अमृतक्षेत्रेये अर्चनत्यादि केशवं ते मृतत्वं भजंत्यो सर्व दु:ख विवर्जितां, अर्थात अमृत स्वरूप अवमुक्त क्षेत्र काशी में जो भी हमारे आदि केशव रुप का पूजन करेगा वह सभी दु:खों से रहित होकर अमृत पद को प्राप्त होगा। आदिकेशव मंदिर के अंग शिखरों से युक्त शिखर पुंज सहज ही ध्यानाकर्षित करते हैं । एक मंदिर में ही आदिकेशव, ज्ञानकेशव, पंचदेवता और संगमेश्वर हैं। स्थापत्य की दृष्टि से भी ये मंदिर दर्शनीय हैं।

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आदिकेशव मंदिर का रंगमंडप लाल पाषाण के कलात्मक स्तंभों से समृद्ध हैं। बाहर की दीवारों पर भी सुंदर कारीगरी है। गर्भगृह में आदिकेशव विराजमान हैं। उनके दाईं ओर केशवादित्य हैं। दूसरे मंदिर में ज्ञानकेशव की मूर्ति स्थापित है। नीचे ज्ञानकेश्वर महादेव प्रतिष्ठित हैं। तीसरे मंदिर में संगमेश्वर महादेव के दर्शन हैं जिनकी गणना चतुर्दश आयतनों में होती है। स्कंद पुराण के अनुसार इनका दर्शन कर मनुष्य पाप रहित हो जाता है। चौथा पंचदेवता मंदिर है। जहां एक पीठिका पर विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य, गणेश का अंकन उनके वाहन द्वारा किया गया है। पूस मास में अंतगृही मेला, चैत्र में वारुणी मेला में श्रद्धालु यहां संगम स्नान कर आदिकेशव के दर्शन करते हैं। भादो में वामन द्वादशी के दिन भी स्नान होता है।

नीचे वामन भगवान का मंदिर भी है। मंदिर के बाहर चिंताहरण गणेश जी के साथ वेदेश्वर, नक्षत्रेश्वर के शिवलिंग विराजमान हैं। काशीखंड में बिंधुमाधव कहते हैं- श्वेतद्वीप में मैं ज्ञानकेशव नाम से स्थित होकर मनुष्य को ज्ञान प्रदान करता हूं। आदिकेशव घाट काशी का प्रमुख व प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है।  सन् 1985 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का मरम्मत कराया गया एवं वर्तमान में इसकी स्वच्छता को बनाये रखने के लिये सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं। हमें गर्व है कि हमने नमामि गंगे की ओर से आदिकेशव जी की आरती उतारकर आदि केशव प्रांगण की साफ-सफाई की है।

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