जन्म के 3 से 4 माह में ही इलाज कराना जरूरी, इस बीमारी से ग्रसित बच्चे का तुरंत कराएं रजिस्ट्रेशन

वाराणसी। नवजात बच्चों में पैर तिरछे होने की शिकायत पर अभिभावक डर जाते हैं। वे इसे ठीक नहीं होने वाले बीमारी समझते हैं। खासकर यह बीमारी किसी लड़के के अलावा, लड़की को होने पर परिजन की परेशानी और बढ़ जाती है, क्योंकि उसकी शादी की चिंता रहती है। लेकिन इसका इलाज पूरी तरह से संभव है। जन्म से पैर तिरछे होने की समस्या को ‘क्लब फुट’ कहते हैं। यह बीमारी लाइलाज नहीं है, समय से इलाज कराने पर बच्चे पूर्णतः स्वस्थ हो जाते हैं।
इसके लिए पं. दीनदयाल उपाध्याय चिकित्सालय में शनिवार, एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय, कबीरचौरा में बुधवार तथा बीएचयू ट्रामा सेंटर में गुरुवार को सुबक 9 बजे से 2 बजे तक क्लब फुट की ओपीडी होती है। इसकी जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी ने दी।
सीएमओ ने बताया कि यह कार्यक्रम स्वास्थ्य विभाग के आरबीएसके कार्यक्रम और अनुष्का फाउंडेशन संस्था द्वारा चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम जनपद में 2019 से चलाया जा रहा है, जनपद में इसके तहत 512 बच्चों का इलाज चल रहा है, 64 बच्चे स्वस्थ हो चुके हैं। अप्रैल 2025 में 9 बच्चे इलाज के लिए आये हैं, जिसमें 6 बच्चों का आपरेशन हो चुका है।
क्लब फुट का इलाज पोनसेटी विधि से किया जाता है, पहले चरण में कास्टिंग की जाती है जिसमें पैर को धीरे-धीरे एक कास्ट (प्लास्टर) का उपयोग करके सीधा किया जाता है जो हर हप्ते 4 से 8 सप्ताह के लिए बदल जाता है। दूसरे चरण में टेनोटामी किया जाता है, इसमें एक मामूली 10 मिनट कि आउट पेशेंट प्रक्रिया जिसमें एकिलीज टेंडन को पैर के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए काट दिया जाता है। तीसरे चरण में ब्रेसिंग लगायी जाती है, जिसमें ब्रेस को पैर की सही स्थिति बनाए रखने और लौटने से रोकने के लिए 4 से 5 वर्षों के लिए पहनाया जाता है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं आरबीएसके कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ संजय राय* ने बताया कि इस बीमारी से ग्रसित किसी भी बच्चे की जानकारी होने पर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र, आशा, एएनएम, आंगनबाड़ी के माध्यम से आरबीएसके टीम को अवश्य सूचित करें ताकि इन बच्चों का निःशुल्क एवं समुचित इलाज हो सके। इन बच्चों का रजिस्ट्रेशन sabalkashi.com पर किया जाता है, ताकि इनका समुचित इलाज व नियमित मानीटरिंग हो सके।
यह एक ऐसा रोग है, जिसमें जन्म से ही बच्चे के पैरों में टेढ़ापन रहता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 800 बच्चों में एक बच्चा इस रोग से प्रभावित होता है। प्रत्येक वर्ष क्लबफुट वाले 33,000 बच्चे भारत में पैदा होते हैं, पूर्ण इलाज के बाद क्लबफुट के साथ पैदा हुआ बच्चा अन्य सामान्य बच्चों की तरह सब कुछ कर सकता है। बशर्ते बच्चा पैदा होते ही उसका इलाज शुरू हो जाये। ‘क्लब फुट’ से प्रभावित लगभग 50 फीसदी बच्चों में ऐसा टेढ़ापन दोनों पैरों में होता है। इसका इलाज दो तरीके से होता है। प्लास्टर व सर्जरी। यह निर्णय चिकित्सक बीमारी देखने के बाद लेते हैं।
अनुष्का फाउंडेशन की जिला समन्वयक सरिता मिश्रा ने बताया कि जन्म के 3 से 4 माह में ही इलाज कराना जरूरी होता है, यदि जन्म के पहले 3 से 4 महीने में बच्चे का इलाज कराएं तो पैर ठीक होने के 100 फीसदी चांस होते हैं। अगर जन्म के 2 साल बाद बच्चों का इलाज कराया जाता है तो उसमें 50 फीसदी ही चांस होता है कि बच्चों के पैर सीधे होंगे या न नहीं। इस तरह की समस्या होने पर इलाज के लिए मोबाइल नंबर 9136945515 पर तुरंत सम्पर्क करें।