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वाराणसी में अमेरिका से आए अनोखे औघड़ बाबा बोले- दारु-चिलम वाले अघोरियों से अलग हैं हम

Ganga Ghats were once gurukuls of knowledge: अमेरिका से आए औघड़ बाबा बोले- दारु-चिलम वाले अघोरियों से अलग हैं हम

Ganga Ghats were once gurukuls of knowledge: अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले बाबा हरिहर राम अपने मूल स्थान वाराणसी आए थे। यहां पर अघोर फाउंडेशन के स्थापना दिवस में शामिल हुए।

 ''काशी के घाट जो कभी ज्ञान के गुरुकुल थे, आज पार्टी स्पॉट, बाजार और फैशन के हब बनते जा रहे हैं। यहां की आध्यात्मिक शांति और सुकून गायब होकर एक विलासितापूर्ण लाइफ में कनवर्ट होती जा रही है।

 

 

आज यहां पर संस्कृत के श्लोकों के बजाय डीजे की धम-धम सुनाई देती है। मां गंगा अब श्रद्धालुओं के स्नान से ज्यादा पिकनिक स्पॉट के तौर पर पहचानी जा रही हैं। हमें काशी को लास वेगास जैसा भड़कीला तो नहीं बनाना था।

 

 

वो भी न बन पाएगा। मगर, काशी की आइडेंटिटी तो यहां की पौराणिकता, धर्म, विरासत, म्यूजिक और कल्चर है। यह संरक्षित क्यों नहीं की जा रही है। हम विदेशियों से सीख सकते हैं कि कैसे विरासत को छेड़े बगैर विकास को जारी रखते हैं।''

 

 

ये बातें अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के सोनामा आश्रम से आए औघड़ बाबा हरिहर राम ने  वे अघोरेश्वर भगवान राम के शिष्य और अघोर गुरु सेवा पीठ ( अघोर फाउंडेशन) के संस्थापक भी हैं।

 

 

34 साल पहले अमेरिका में बनाया आश्रम

 

34 साल पहले अमेरिका में सोनामा आश्रम और साल 2000 में वाराणसी के अघोर फाउंडेशन की स्थापना करने वाले बाबा हरिहर राम काशी प्रवास पर आए हैं। वह साल में एक ही बार महाशिवरात्रि पर फाउंडेशन के स्थापना पर यहां आते हैं। उनका जन्म वाराणसी के एक छोटे से गांव में हुआ था। मगर, गुरु की आदेश से वह बीते 50 साल से अमेरिका में रह रहे हैं।

70 के दशक में वे अमेरिका के सेटल्ड बिजनेसमैन थे। मगर, पूरा कारोबार छोड़ वह अघोर को ज्वाइन कर लिए। आज यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर विदेशों में उनके प्रत्यक्ष अनुयायियों की संख्या 20 हजार से ज्यादा है। अपनी आध्यात्मिक शक्ति से विदेशी विश्वविद्यालयों में लोगों को अघोर की शिक्षा और भारतीय संस्कृति से परिचय करा रहे हैं।

'हम करतब दिखाने वाले अघोरियों से अलग हैं'

बाबा हरिहर राम ने कहा कि हम अघोर से अलग नहीं है। हम भी बाबा कीनाराम के ही संप्रदाय-वर्ग से आते हैं। मगर, उस धारा को एक नई दिशा दी है। घाट पर बैठक करके दारु-चिलम पीने वाले लोगों यह बहुत अलग है। यह अघोर वैसा सनसनीखेज या डरावना नहीं है। नेचर, स्प्रिचुआलिटी और सोशल सर्विस के द्वारा अघोर को सिद्ध कर रहे हैं।

हमारा और उनका सिद्धांत एक ही है, पूर्णता पाने का। इसे पाने के लिए साधना करनी होती है। अघोर को समाज से जोड़ने के लिए हर व्यक्ति को प्रेरित किया जाए। हमारा सिद्धांत है पहले साधना और फिर सेवा। साधना सेवा के रूप में समाज में फैलती है। आप अपने लिए जीते हैं, तो पैसा आपको मिल जाएगा, मगर शांति नहीं मिलेगी।

'मुझे बिजनेस में शांति नहीं मिली'


बाबा हरिहर राम ने अपनी कहानी सुनाते हुए कहा, ''मैं भी अमेरिका में बिजनेस कर रहा था, धनोपार्जन के लिए अमेरिका गया था। मुझे भी शांति नहीं मिली। एक सफलता के बाद दूसरी सफलता के चक्कर में लगा रहा। मैं बाबा अघोरेश्वर राम के संपर्क में आया। उनसे ज्ञान प्राप्त किया और फिर सब कुछ छोड़ दिया।

गुरुदेव ने मुझे कहा कि दूसरों की सेवा करो। मैं वापस अमेरिका आया और 1976 में सोनामा आश्रम की स्थापना की। वाराणसी में मेरी मातृभमि थी और कर्मभूमि बना अमेरिका। यहां हमने अनाथालय, आंख का अस्पताल, स्कूल और पार्क आदि बनाया है।''

बाहर से आने वालों को शांति कहां मिल रही है

बाबा हरिहर राम ने बनारस के विकास पर थोड़ी चिंता जताई। बोले कि बाहर से आने वालों को हम शांति कहां दे पा रहे हैं। डीजे बज रहा है। फायरवर्क्स हो रहा है। LED स्क्रीन लगे हैं। बनारस में हम जहां गंगा में सूर्य को जल देते थे, आज वहां क्रूज खड़ी है। काशी के आश्रमों और संस्कृत पाठशालाओं को रेनोवेट करना चाहिए।

लेकिन, केवल खाटी टूरिज्म के लिए यहां पर मॉल और होटल्स डेवलप हो रहे हैं। बनारस में पर्यटन बढ़े और तमाम विकास हो, लेकिन विरासत और इतिहास को भी प्रचारित किया जाए।

टेंट सिटी के बगल में बनाया स्प्रिचुअल पार्क

गंगा में रेत पर एक ओर जहां, टेंट सिटी बनाई गई है, ताे वहीं दूसरी ओर बाबा हरिहर राम ने गंगा पार रेत पर एक स्प्रिचुअल पार्क डेवलप किया है

यहां तन और मन दोनों को सुकून मिलता है। बाबा हरिहर राम ने कहा कि काशी आता हूं, तो सुबह 5 बजे तक गंगा पार करके पार्क में पहुंच जाता हूं। वहां पर रामनगर से आने वाले हिंदू-मुस्लिम हर कोई योग, ध्यान और सेवा संदेश पार्क में प्राप्त करता है।

दिन में एक बार केवल 5 मिनट चुपचाप बैठ जाइए


हरिहर राम ने कहा कि मेडिटेशन लोगों को ठीक से सिखाया नहीं जा रहा है। धर्मगुरुओं की इच्छाशक्ति घटी है। जितनी बड़ी भीड़ है, उतने बड़े गुरु हैं। गुरु-शिष्य परंपरा का लोप हो गया है। लेकिन, मुझे लगता है कि एक बार में एक व्यक्ति के मन और दिल को ही बदल दो।

आम आदमी और युवा कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं है। जीवन में तमाम तरह की समस्याएं हैं। मन शांत नहीं हो पाता है। काम हैं, बिजी हैं। आपको अपना मन शांत करना है। चुप-चाप बैठना होगा। 5-10 मिनट तक एक जगह बैठकर श्वांस की आवाजाही पर ध्यान देना होगा। मंत्र भी पढ़ सकते हैं।

कुछ करिए या न करिए, कोई फर्क नहीं पड़ता है, पहले चुप-चाप बैठने का आदत डालिए। आप श्वांस के आने-जाने पर ही ध्यान लगाए और सोहम मंत्र का जाप करें। फिर देखें, आपका दिन थोड़ा बदल जाएगा।

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