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काल भैरव के दर्शन मात्र से दूर हो जाती है हर बाधा

काल भैरव के दर्शन मात्र से दूर हो जाती है हर बाधा

Varanasi Kaal Bhairav Mandir: वाराणसी में काल भैरव मंदिर से चंद किमी की दूरी पर काशी विश्वनाथ धाम है। मान्यता यह है कि बिना काल भैरव मंदिर का दर्शन किए काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का लाभ नहीं मिलता।


प्राचीन नगरी उत्तर प्रदेश के वाराणसी को मंदिरों का शहर कहा जाता है. यहां के हर मंदिरों के पौराणिक महत्व है. इसी कड़ी में काशी के काल भैरव मंदिर की भी अनेक मान्यताएं है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ स्वयं काशी के राजा हैं जबकि उन्हीं की ओर से कालभैरव को शहर के कोतवाल और सेनापति के तौर पर नियुक्त किया गया है।

इस मंदिर में विशेष तौर पर रविवार और मंगलवार के दिन दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं और विधि विधान से पूजन कर अपने सभी बाधाओं, क्लेश और दुख का निवारण कर सफल मनोकामनाओं की प्राप्ति करते हैं। 

वाराणसी के काल भैरव मंदिर के प्रधान पुजारी सुमित उपाध्याय ने से बातचीत के दौरान बताया कि बाबा काल भैरव भगवान शंकर के ही रुद्र अवतार हैं और उनकी पूजा का विशेष महत्व है। फल प्राप्ति के साथ-साथ बुरे कर्मों की सजा - दंड देने के लिए भी श्री काल भैरव जाने जाते हैं।

शास्त्रों में भगवान शंकर स्वयं इनके बारे में बताते हैं कि काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा था और उस दोष से मुक्ति पाने के लिए ये तीनों लोकों का भ्रमण कर रहे थे। तब जाकर काशी के गंगा तट पर पहुंचने के बाद काल भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी।

 उसी समय भगवान शंकर ने उन्हें काशी में ही रहकर तप करने का आदेश दिया था। काशी शहर के अलग-अलग हिस्सों में काल भैरव के दंड पाड़ी, लाट भैरव जैसे आठ अलग-अलग रूप हैं।

वाराणसी के विशेश्वरगंज स्थित काल भैरव मंदिर से चंद किलोमीटर की दूरी पर भगवान काशी विश्वनाथ धाम है।

मान्यता यह भी है कि बिना काल भैरव मंदिर का दर्शन किए काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का लाभ नहीं मिलता अर्थात काशी कोतवाल का दर्शन भी अनिवार्य है।

प्रमुख तौर पर रविवार और मंगलवार के दिन दूर दराज से श्रद्धालु संकरी गलियां से होते हुए मंदिर परिसर तक पहुंचाते हैं।

मंदिर के आसपास लगे फूल-माला, रंगीन धागे, पीतल-तांबे के बर्तन सहित अन्य पूजन सामग्रियां और क्षेत्र का भक्तिमय माहौल श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है। काल भैरव मंदिर में प्रमुख तौर पर दौना, बैगनी, लाल, सफेद रंग के पुष्प अर्पित किए जाते हैं। अपने ऊपर से सभी बाधाओं और क्लेश के निवारण के लिए यहां हाथ और गले में धागा बंधवाने और कुछ अवसर पर मदिरा चढ़ाने की भी परंपरा है. श्वान की पहचान बाबा काल भैरव के सवारी के रूप में है जिन्हें सफेद बर्फी खिलाई जाती है।

काल भैरव मंदिर में नियमित दर्शन करने वाले श्रद्धालु शिवांग कुमार ने बातचीत में बताया कि भगवान शंकर ने ही काल भैरव को काशी के रक्षक के रूप में नियुक्त किया है, जिन्हें हम काशी कोतवाल भी कहते हैं।

यही वजह है कि यहां पर प्रशासनिक से लेकर न्यायिक विभाग के अधिकारी, सांसद, विधायक मेयर सभी अपने पदभार ग्रहण करने से पहले यहां हाजिरी जरूर लगाते हैं। अन्यथा उनका दैनिक कामकाज तक प्रभावित होता है।

उन्होंने यह भी बताया कि पास के ही कोतवाली में थानेदार की मुख्य कुर्सी पर काल भैरव की फोटो रखी गई है, जहां इनके अनुमति से ही निर्णय लिए जाने की परंपरा है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के लिए आ चुके हैं।

 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब-जब वाराणसी के दौरे पर आते हैं काल भैरव मंदिर में दर्शन पूजन के लिए जरूर पहुंचते हैं।

 खास तौर पर इन दिनों पवित्र श्रावण मास में शहर के साथ-साथ अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु भारी संख्या में दर्शन करने के लिए पहुंच रहें हैं।

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