राष्ट्रीय ज्योति सम्मेलन में भारतीय ज्योतिष की सनातन परंपरा पर गहन मंथन

वाराणसी। प्राचीन ज्ञान की नगरी काशी में शनिवार की दोपहर जब वैदिक मंत्रों की गूंज और दीप की लौ ने सिगरा स्थित एक होटल के सभागार को आलोकित किया, तो वहां उपस्थित हर चेहरे पर एक भाव झलक रहा था-भारतीय ज्योतिष की जीवंत परंपरा का पुनर्स्मरण।
राष्ट्रीय ज्योति सम्मेलन-2025 का यह आयोजन ज्योतिष विज्ञान समिति के तत्वावधान में हुआ, जिसमें देशभर से आए नामचीन ज्योतिषविद, शोधकर्ता और अध्यात्मप्रेमी विद्वान एकत्र हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारीलाल शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “भारतीय ज्योतिष केवल भविष्य बताने की कला नहीं, बल्कि यह मानव जीवन को दिशा देने वाला विज्ञान है, जो ग्रहों, नक्षत्रों और ऊर्जा के सामंजस्य से जुड़ा है।
प्रो. शर्मा ने कहा कि भारत सदियों से ज्ञान-विज्ञान की भूमि रहा है, और ज्योतिष वह साधना है जिसने मानव, ग्रह और काल के रहस्यों को जोड़ा। आज जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का युग तेजी से फैल रहा है, तब भी भारतीय ज्योतिष अपनी मानवीय संवेदना और आत्मिक दृष्टि के कारण विशिष्ट और सशक्त बना हुआ है। यह विज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना वैदिक काल में था।
मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल ने अपने वक्तव्य में विज्ञान और अध्यात्म के मिलन को “चेतना का नया क्षितिज” बताया। उन्होंने कहा,“जब ज्योतिष विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे से मिलते हैं, तो यह केवल गणना या तकनीकी प्रयोग नहीं रह जाता, बल्कि आत्मा की खोज का माध्यम बन जाता है। सहस्राब्दियों से ज्योतिष मानव जीवन और ब्रह्मांड के रहस्यों का अध्ययन कर रहा है, और यह प्रक्रिया आज भी अविरल जारी है।”
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विनय पांडेय ने ज्योतिष को “मानव चेतना का दर्पण” बताया। उनके अनुसार, “ज्योतिष केवल गणना नहीं, बल्कि भावनाओं, कर्मों और चेतना को समझने का विज्ञान है। असली फलादेश तभी संभव है जब विद्वान अपनी गणना को प्रामाणिक सिद्धांतों के आधार पर करें। ग्रहों की स्थिति सिर्फ गणित नहीं, मनुष्य के कर्म और मन की गति का प्रतिबिंब होती है।”
वहीं प्रसिद्ध ज्योतिषविद प्रो. कामेश्वर उपाध्याय ने भारतीय सनातन परंपरा को देश की “अक्षय धरोहर” कहा। उन्होंने कहा, “ज्योतिष के माध्यम से न केवल व्यक्ति का भाग्य, बल्कि समाज और राष्ट्र की दिशा भी देखी जा सकती है। भारत की ज्योति, भारतीय संस्कृति की आत्मा है—इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ाना ही हम सबका कर्तव्य है।”
विख्यात विद्वान प्रो. रामचंद पांडेय ने कहा कि समसामयिक युग में ज्योतिष भविष्यवाणी से कहीं अधिक “मानवता की आत्मखोज” का नया अध्याय है। उन्होंने कहा, “जब तक मनुष्य रहेगा, उसकी चेतना और ज्योतिष की साधना अमर रहेगी। ‘वेदांग ज्योतिष’ समय और कर्म का विज्ञान है, जो ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों की गति और जन्मकाल के विश्लेषण से जीवन की दिशा बताता है।”
ज्योतिष विज्ञान समिति के अध्यक्ष नागेंद्र पांडेय ने अतिथियों का स्वागत करते कहा कि ज्योतिष केवल गणना नहीं, बल्कि मनुष्य की चेतना, भावनाओं और परिवेश को समझने की साधना है। उन्होंने कहा कि, “जब कोई अनुभवी ज्योतिषी किसी की कुंडली देखता है, तो वह केवल ग्रहों की स्थिति नहीं पढ़ता, बल्कि आत्मा की तरंगों को महसूस करता है। उसकी दृष्टि में गणना से अधिक अनुभूति होती है।”
मुंबई के सिद्धविनायक मंदिर के कोषाध्यक्ष डा. पवन पांडेय ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आधुनिक पीढ़ी को ज्योतिष को अंधविश्वास नहीं, बल्कि एक अनुशासित अध्ययन और अनुसंधान की दृष्टि से देखना चाहिए।
सम्मेलन के प्रथम सत्र का समापन प्रो. चन्द्रमौलि उपाध्याय के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कहा, “ज्योतिष गणना से आगे बढ़कर जीवन के भावनात्मक और कर्मप्रधान पक्ष को भी पढ़ता है। यह मनुष्य के भीतर झांकने वाला विज्ञान है।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित अनंत चन्द्र पांडेय ने की, जबकि संचालन प्रो. सदानंद शुक्ल ने किया। सम्मेलन में देशभर से आए प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य श्रीमती गीता शर्मा, शांतिकी कृष्णा खरे, पवन त्रिपाठी, रामेश पांडेय, राधेश्याम शर्मा, विकास जी, राजीव पांडेय, रमा जी, आमोद दंत शुक्ल, अभिषेक मिश्रा, आचार्य शिष्य प्रसाद और शैलेश उपाध्याय सहित अनेक विद्वान उपस्थित रहे।
दूसरे सत्र में बनारस की जानी-मानी ज्योतिषाचार्य शालिनी खरे ने पारंपरिक सूत्रों के रहस्य और उनके वैज्ञानिक आधार की विवेचना की। कई विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए, जिनमें ज्योतिष के व्यवहारिक पक्षों, ग्रहों की ऊर्जा और मानव मनोविज्ञान के संबंधों पर चर्चा हुई। कार्यक्रम के संयोजक दिलीप कुमार श्रीवास्तव ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया।
वाराणसी की सजीव ऊर्जा, वैदिक परंपरा की गूंज और शोध की गंभीरता से सजे इस सम्मेलन ने यह संदेश दिया कि ज्योतिष भविष्य बताने की कला नहीं, बल्कि आत्मा को समझने का विज्ञान है।