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शहनाई की मंगल धुन पर काशी में गूंजा वंदे मातरम

शहनाई की मंगल धुन पर काशी में गूंजा वंदे मातरम

आज के दिन हुआ था कांग्रेस का अधिवेशन

वाराणसी। धर्म, कला और संस्कृति की नगरी काशी में बुधवार की दोपहर सिगरा स्थित भारत माता मंदिर में वंदे मातरम, सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम... की धुन शहनाई पर गूंजी तो लोग भावविभोर हो उठे।

काशी के विख्यात शहनाई वादक पं. महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मधुर धुन के साथ राष्ट्र गीत प्रस्तुत कर देश की आजादी की लड़ाई के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अमर शहीदों को नमन किया। इससे पहले भारत माता के मंदिरों को फूलों से सजा कर उनकी आरती उतारी गई।

आज के दिन हुआ था कांग्रेस का अधिवेशन

पं. महेंद्र प्रसन्ना ने बताया कि आज 7 सितंबर है। आज ही के दिन वर्ष 1905 में बनारस में कांग्रेस के अधिवेशन में वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया था। वंदे मातरम बंकिम चंद्र चट्‌टोपाध्याय की कालजयी रचना है।

उन्हें याद करते हुए उनको श्रद्धांजलि देकर उनकी कालजयी रचना के सम्मान में भारत माता मंदिर में भारत मां की पूजा की गई। उसके बाद भारत मां की प्रतिमा के सामने शहनाई की मंगल धुन पर वंदे मातरम प्रस्तुत किया गया।

शहनाई वादन का समापन शहीदों का स्मरण करते हुए ऐ मेरे वतन के लोगों की धुन के साथ हुआ।

शहनाई की मंगल धुन पर काशी में गूंजा वंदे मातरम

20 वर्ष से बजा रहा हूं यह धुन

पं. महेंद्र प्रसन्ना ने बताया कि वह बीते 20 वर्ष से भारत माता मंदिर में 7 सितंबर को शहनाई बजाते चले आ रहे हैं। इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य यही है कि सभी लोग अपने राष्ट्र गीत और राष्ट्रगान के प्रति सदैव श्रद्धाभाव रखें।

देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले अमर शहीदों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहें। देश सेवा से कभी पीछे ना हटें और सब लोग मिल-जुल कर एक साथ रहें।

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