भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बाबा विश्वनाथ का धाम है सभी भक्तों का आश्रय, क्योंकि यहां माता पार्वती स्वयं मां अन्नपूर्णा की भूमिका में विराजमान हैं

वाराणसी। चौबेपुर क्षेत्र में स्थितसोनबरसा में चल रहे शिव महापुराण एवं रूद्र चंडी महायज्ञ में कथा के दूसरे दिन बोलते हुए स्वामी आशुतोष आनंद गिरि जी महाराज ने कहा काशी को आनंदवन भी कहते हैं, क्योंकि माता पार्वती को यहां सबसे अधिक आनंद आया था l
भगवान वेदव्यास जी के दस हजार शिष्यों को एक साथ भोजन करा कर काशी वासियों को श्राप से मुक्त कराया था। भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी के बीच में निर्णायक स्थिति ना होने के कारण आधार के रूप में दोनों के बीच में सर्वप्रथम स्वर्णमयी शिवलिंग प्रकट हुआ था।
जो आदि अंतररहित था, प्रथम पूजा के अधिकारी बनने के लिए ब्रह्मा जी असत्य बोल गए उन्होंने कहा मैंने इसका ओर छोर पता लगा लिया है ।गवाही के लिए केतकी को रखा आतम केतकी का पुष्प इसीलिए शंकर जी को नहीं चढ़ता परंतु शंकर जी प्रकट होकर समाधान करते हुए भगवान शंकर को मुख्य बनाएं उसी समय भगवान ब्रह्मा व विष्णु मिलकर स्वर्णमई शिवलिंग की पूजा कि उसके बाद से आज तक निराकार शिव की पूजा शिवलिंग में होती आ रही है।
उधर 9 दिन से चल रहे रूद्र चंडी महायज्ञ में मुख्य आचार्य रमाशंकर तिवारी उर्फ भोपा गुरु ने बताया यज्ञ की परिक्रमा मात्र से जीवन धन्य हो जाता है यज्ञ में दी हुई आवती सबसे बड़ा परोपकार कहलाता है। कार्यक्रम के संयोजक पवन चौबे एवं यजमान मुन्नू चौबे, सावित्री देवी, सुनील तिवारी, राजेश जायसवाल, अंकुर चौबे, मनोज चौबे सहित सैकड़ों की संख्या में श्रोता गण उपस्थित थे।
चौबेपुर क्षेत्र में स्थितसोनबरसा में चल रहे शिव महापुराण एवं रूद्र चंडी महायज्ञ में कथा के दूसरे दिन बोलते हुए स्वामी आशुतोष आनंद गिरि जी महाराज ने कहा काशी को आनंदवन भी कहते हैं, क्योंकि माता पार्वती को यहां सबसे अधिक आनंद आया था l
भगवान वेदव्यास जी के दस हजार शिष्यों को एक साथ भोजन करा कर काशी वासियों को श्राप से मुक्त कराया था। भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी के बीच में निर्णायक स्थिति ना होने के कारण आधार के रूप में दोनों के बीच में सर्वप्रथम स्वर्णमयी शिवलिंग प्रकट हुआ था।
जो आदि अंतररहित था, प्रथम पूजा के अधिकारी बनने के लिए ब्रह्मा जी असत्य बोल गए उन्होंने कहा मैंने इसका ओर छोर पता लगा लिया है ।गवाही के लिए केतकी को रखा आतम केतकी का पुष्प इसीलिए शंकर जी को नहीं चढ़ता परंतु शंकर जी प्रकट होकर समाधान करते हुए भगवान शंकर को मुख्य बनाएं उसी समय भगवान ब्रह्मा व विष्णु मिलकर स्वर्णमई शिवलिंग की पूजा कि उसके बाद से आज तक निराकार शिव की पूजा शिवलिंग में होती आ रही है।
उधर 9 दिन से चल रहे रूद्र चंडी महायज्ञ में मुख्य आचार्य रमाशंकर तिवारी उर्फ भोपा गुरु ने बताया यज्ञ की परिक्रमा मात्र से जीवन धन्य हो जाता है यज्ञ में दी हुई आवती सबसे बड़ा परोपकार कहलाता है। कार्यक्रम के संयोजक पवन चौबे एवं यजमान मुन्नू चौबे, सावित्री देवी, सुनील तिवारी, राजेश जायसवाल, अंकुर चौबे, मनोज चौबे सहित सैकड़ों की संख्या में श्रोता गण उपस्थित थे।