ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी विवाद मामले में वाराणसी कोर्ट का अहम फैसला आज, जिले में हाई अलर्ट, धारा 144 लागू

वाराणसी का ज्ञानवापी-मां शृंगार गौरी केस सुनवाई योग्य है या नहीं है, इस महत्वपूर्ण मसले पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट आज अपना आदेश सुनाएगी। इससे पहले बीती 24 अगस्त को दोनों पक्षों की बहस पूरी हुई थी और जिला जज की कोर्ट ने आदेश सुनाने के लिए 12 सितंबर की डेट फिक्स की थी।
आज आने वाले फैसले के मद्देनजर वाराणसी में शहर से लेकर गांवों तक हाई अलर्ट है। एहतियातन धारा-144 लागू कर मिश्रित आबादी वाले संवेदनशील इलाकों में फोर्स तैनात की गई है। सोशल मीडिया की लगातार मॉनिटरिंग करने के साथ ही पुलिस ने लोगों से संयम बरतने और शांतिपूर्वक रहने की अपील की है।
वहीं, जिला अदालत परिसर में चप्पे-चप्पे पर चौकसी बरतते हुए फोर्स के साथ बम निरोधक दस्ता और डॉग स्क्वॉड तैनात किया गया है।
मसाजिद कमेटी ने ज्ञानवापी को शाही मस्जिद आलमगीर बताया
मसाजिद कमेटी की जवाबी बहस 22 अगस्त से लगातार जारी है। बहस में एडवोकेट शमीम अहमद, रईस अहमद, मिराजुद्दीन सिद्दीकी, मुमताज अहमद और एजाज अहमद ने कहा कि वर्ष 1936 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। वर्ष 1944 के गजट में यह बात सामने आई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम शाही मस्जिद आलमगीर है।
संपत्ति शहंशाह आलमगीर यानी बादशाह औरंगजेब की बताई गई थी। वक्फ करने वाले के तौर पर भी बादशाह आलमगीर का नाम दर्ज था। इस तरह से बादशाह औरंगजेब द्वारा 1400 साल पुराने शरई कानून के तहत वक्फ की गई (दान दी गई) संपत्ति पर वर्ष 1669 में मस्जिद बनी और तब से लेकर आज तक वहां नमाज पढ़ी जा रही है।
इसके अलावा, 1883-84 में अंग्रेजों के शासनकाल में जब बंदोबस्त लागू हुआ तो सर्वे हुआ और आराजी नंबर बनाया गया। आराजी नंबर 9130 में उस समय भी दिखाया गया था कि वहां मस्जिद है, कब्र है, कब्रिस्तान है, मजार है, कुआं है। पुराने मुकदमों में भी यह डिसाइड हो चुका है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है।
इसलिए मां शृंगार गौरी का मुकदमा सिविल कोर्ट में सुनवाई योग्य नहीं है। सरकार भी तो इसे वक्फ प्रॉपर्टी मानती है, इसी वजह से काशी विश्वनाथ एक्ट में मस्जिद को नहीं लिया गया। वर्ष 2021 में मस्जिद और मंदिर प्रबंधन के बीच जमीन की अदला-बदली हुई वह भी वक्फ प्रॉपर्टी मान कर ही की गई। वह संपत्ति अल्लाह को मानने वालों यानी मुस्लिमों की थी, है और रहेगी।
मुस्लिम पक्ष ने और क्या दलीलें दी थी
ज्ञानवापी परिसर में प्लॉट नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है। वहां वाराणसी और आस-पास के मुस्लिम 5 वक्त की नमाज अदा करते हैं।
संसद ने वर्ष 1991 में दी प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) एक्ट 1991 बनाया। उसमें इस बात का प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे।
वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीकाशी विश्वनाथ अधिनियम 1983 बनाया गया। इससे संपूर्ण काशी विश्वनाथ परिसर की देखरेख के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाने का प्रॉविजन है। बोर्ड ऑफ ट्रस्टी को ही श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके परिसर के देवी-देवताओं के प्रबंध का अधिकार मिला है।
ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को है। ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।
मौलिक अधिकार के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए। मुकदमा कानूनन निरस्त किए जाने लायक है और उसे निरस्त किया जाना जरूरी है।
मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी से 2km दूर आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश किए हैं
हिंदू पक्ष के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का कहना है कि मुस्लिम पक्ष जवाबी बहस में अपनी ही दलीलों में फंस चुका है। उन्होंने कोर्ट में कागजात पेश कर बताया है कि ज्ञानवापी की संपत्ति वक्फ नंबर 100 के तौर पर दर्ज है, यह एक बहुत बड़ा फ्रॉड है। उन्होंने ज्ञानवापी से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश किए हैं।
वह मस्जिद बिंदु माधव मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी। सभी जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम आलमगीर मस्जिद नहीं है। अब वह ज्ञानवापी मस्जिद को आलमगीर मस्जिद बता रहे हैं। औरंगजेब ने यदि ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति का वक्फ किया था तो वह डीड लाकर दिखाई जाए, लेकिन मसाजिद कमेटी नहीं दिखा पाई।
मिनिस्ट्री ऑफ माइनॉरिटी अफेयर्स की वेबसाइट में भी कहीं यह उल्लेख नहीं है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है। मुस्लिम पक्ष की कहानी पूरी तरह से फर्जी है और उनकी जवाबी बहस पूरी होने के बाद हम प्रति उत्तर दाखिल करेंगे तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।
हिंदू पक्ष ने और क्या दी थी दलीलें
मुकदमा सिर्फ मां शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन के लिए दाखिल किया गया है। दर्शन-पूजन सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए।
मां शृंगार गौरी का मंदिर विवादित ज्ञानवापी परिसर के पीछे है। वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है।
वक्फ बोर्ड ये तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी। देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक मां शृंगार गौरी की नियमित पूजा होती थी।
साल 1993 में सरकार ने अचानक बैरिकेडिंग लगाकर दर्शन और पूजा बंद करा दिया।
दावा ज्ञानवापी की जमीन पर नहीं है। दावा सिर्फ मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन और पूजा के लिए है। देवता की संपत्ति नष्ट नहीं होती है। मंदिर टूट जाने से उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होगा।
वर्ष 1937 में बीएचयू के प्रोफेसर एएस अलटेकर ने अपनी पुस्तक में ज्ञानवापी स्थित मंदिर टूट जाने के बाद इस तथ्य का जिक्र किया है कि वहां क्या क्या बचा है और कहां पूजा हो रही है।
वर्ष 1937 के दीन मोहम्मद केस का फैसला आया था। वह सभी पर बाध्यकारी नहीं है क्योंकि उसमें हिंदू पक्षकार कोई नहीं था।
हिंदू लॉ में अप्रत्यक्ष देवता भी मान्य हैं। देवता को हटा दिए जाने से भी उनका स्थान वही रहता है।
मुस्लिम लॉ में स्पष्ट है कि जो प्रॉपर्टी वक्फ को दी जाती है वह मालिक द्वारा ही दी जा सकती है। ज्ञानवापी के संबंध में कोई वक्फ डीड नहीं है।
डीके मुखर्जी की पुस्तक हिंदू लॉ और श्रीराम-जानकी मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्वयंभू देवता कौन होते हैं, कितने प्रकार के होते हैं। उनकी पूजा कैसे की जाती है।
धार्मिक अधिकार मौलिक अधिकार से परे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उपेंद्र सिंह के मुकदमे में स्पष्ट किया है कि धार्मिक अधिकार सिविल वाद के दायरे में आते हैं।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है। सिविल प्रक्रिया संहिता में संपत्ति का मालिकाना हक खसरा या चौहद्दी से होता है। इस मामले में खसरा का जिक्र मुकदमे में किया गया है।
हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वह शिवलिंग नहीं बल्कि पुराना खराब पड़ा फव्वारा है।
हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वह शिवलिंग नहीं बल्कि पुराना खराब पड़ा फव्वारा है।
एक साल पहले दाखिल हुआ था केस
मां शृंगार गौरी से जुड़ा हुआ मुकदमा सिविल कोर्ट में 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक ने दाखिल किया था। मुकदमे की सुनवाई करते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का आदेश दिया था।
एडवोकेट कमिश्नर के सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग मिला है। वह एक अहम साक्ष्य है, इसलिए उसे संरक्षित किया जाए। हिंदू पक्ष के दावे पर कोर्ट ने वजूखाने को सील करने का आदेश दिया था।
मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में सर्वे के आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मुकदमे की सुनवाई जिला जज की कोर्ट करे। जिला जज की कोर्ट यह देखे कि मां शृंगार गौरी का मुकदमा सुनवाई योग्य है या नहीं है।