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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद जानिए अब कौन होगा उनका उत्तराधिकारी?

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद जानिए अब कौन होगा उनका उत्तराधिकारी?

ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उत्तराधिकारी तय हो गए हैं। स्वामी स्वरूपानंद  दो पीठों ज्योतिष पीठ और द्वारकाशारदा पीठ के शंकराचार्य थे। ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ पर उनके शिष्य काशी के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को नया शंकराचार्य घोषित किया गया है।

जबकि द्वारकाशारदा पीठ पर स्वामी सदानंद सरस्वती के नाम की घोषणा की गई है। सोमवार को शिवसायुज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के पार्थिव शरीर के समक्ष दोनों के नाम की घोषणा की गई। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद को भू समाधि आज जबलपुर में दी जाएगी। 

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य घोषित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बनारस से गहरा नाता है। काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है। इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे।

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं। जानकारी के मुताबिक, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मूलनाम उमाशंकर है। प्रतापगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे गुजरात चले गए थे। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य पूज्य ब्रह्मचारी श्री रामचैतन्य जी के सान्निध्य और प्रेरणा से संस्कृत शिक्षा आरंभ हुई।

स्वामी करपात्री जी के अस्वस्थ होने पर वह ब्रह्मचारी रामचैतन्य के साथ काशी चले आए। वहां स्वामी करपात्री जी के ब्रह्मलीन होने तक उन्हीं की सेवा में रहे। वहीं पर इन्हें पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन-देवतीर्थ और ज्योतिष्पीठाधीश्वर  स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दर्शन एवं सान्निध्य मिला।

कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती


स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले है। उनका पुराना नाम उमाकांत पांडेय था. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने पठन-पाठन के साथ छात्र नेता के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी, लेकिन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से प्रभावित होकर उन्होंने ब्रह्मचारी की दीक्षा ली और उनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया। 

बाद में बनारस में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से डंडी शिक्षा लेने के बाद उन्हें नया नाम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती मिला। इसके बाद उन्हें उत्तराखंड के बद्रिका आश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिष पीठ का कार्यभार सौंपा गया है।

 फिलहाल, इन दो नामों को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। ऐसा माना जा रहा है कि इन दोनों में से किसी एक को ही उत्तराधिकारी के तौर पर जिम्मेदारी दी जा सकती है। 

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