पंडित कमलापति त्रिपाठी की जयंती, ठुकरा दिया था प्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव

वाराणसी/लखनऊ। भारतीय राजनीति के संत स्वभावी, सरल और सिद्धांतनिष्ठ नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी की जयंती आज पूरे प्रदेश में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार और देश की राजनीति में ‘मार्गदर्शक’ की भूमिका निभाने वाले पं. कमलापति त्रिपाठी ने अपने त्याग और सादगी से भारतीय राजनीति में अमिट छाप छोड़ी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से जननायक तक
1905 में चंदौली जनपद के सीतापुर गाँव (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में जन्मे पं. कमलापति त्रिपाठी बचपन से ही राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और कई बार जेल भी गए। जेल में रहते हुए उन्होंने साहित्य रचना की और अपनी लेखनी से भी स्वतंत्रता संग्राम को धार दी।
राजनीति में ऊँचाई पर भी सादगी
स्वतंत्र भारत में पं. त्रिपाठी कांग्रेस के स्तंभों में गिने गए। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1971-73) रहे और केंद्र सरकार में रेल मंत्री बने। उनके कार्यकाल में रेल सेवाओं के विस्तार और यात्री सुविधाओं में सुधार के कई कदम उठाए गए।
एक पुलिस विद्रोह ने छीन ली थी कुर्सी
मुख्यमंत्री रहते हुए 1973 में पं. कमलापति त्रिपाठी को बड़े संकट का सामना करना पड़ा। उत्तर प्रदेश पुलिस ने वेतनमान और अन्य मांगों को लेकर आंदोलन छेड़ दिया, जो धीरे-धीरे विद्रोह का रूप ले बैठा। यह घटना भारतीय राजनीति और प्रशासनिक इतिहास में अभूतपूर्व थी। हालात इतने बिगड़े कि प्रदेश में अराजकता का वातावरण पैदा हो गया और अंततः पं. त्रिपाठी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव भी ठुकराया
1979 के राजनीतिक संकट के समय, जब देश में सत्ता अस्थिरता का दौर था, तब कांग्रेस नेतृत्व की ओर से पं. कमलापति त्रिपाठी को प्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव मिला। वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर वे उस पद के लिए सबसे उपयुक्त माने जा रहे थे। लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर उठकर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और इंदिरा गांधी का समर्थन किया। यह निर्णय उनकी निष्ठा, संगठन के प्रति समर्पण और त्यागमयी राजनीति का प्रमाण है।
साहित्यकार और चिंतक
राजनीति के साथ-साथ साहित्य में भी उनकी गहरी रुचि थी। पं. त्रिपाठी ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख लिखे, जो आज भी राजनीतिक व सामाजिक चिंतन का आधार माने जाते हैं।