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गुरु वशिष्ठ के वचनों से दुखी महात्मा भरत को मिली शांति - आचार्य कृपा शंकर जी महाराज

गुरु वशिष्ठ के वचनों से दुखी महात्मा भरत को मिली शांति - आचार्य कृपा शंकर जी महाराज

गोरखपुर। अयोध्या की घटना से महात्मा भरत के दुख का पारावार नहीं रहा। उनके प्रश्नों का उत्तर पूरा अयोध्या मंत्रिमंडल नहीं दे सका। गुरु वशिष्ट के उपदेशों से उन्हें परम शांति मिली।

उक्त बातें अयोध्या धाम से पधारे आचार्य कृपा शंकर जी महाराज ने कही। वह विकासखंड पाली के ग्राम सजनापार में चल रहे श्री राम महायज्ञ के आठवें दिन व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को कथा रसपान का कर रहे थे। उन्होंने कथा विस्तार करते हुए कहा कि- जैसे सिर पर पिता की  साया न होने पर पुत्र अनाथ हो जाता है उसी भाव का एहसास करके भरत की पिता के शव को देखकर बालकों की भांति रोने लगे।


गुरु वशिष्ठ ने कहा कि हे भारत तुम्हारे पिता बडे़ भाग्य से मिलते हैं। उन्होंने अपने जीवन में अनेक धर्मार्थ व परि हितार्थ कार्य किए हैं। उनकी ख्याति तो देवताओं में भी बनी थी। ऐसे महान परोपकारी पिता के लिए सोच नहीं करना चाहिए बल्कि उन पर गर्भ करना चाहिए।


सोचने योग्य वह तपस्वी है, जिसे तप के बजाय भोग अच्छे लग रहें हैं। सोच तो उस व्यापारी की करनी चाहिए, जो धनवान होकर भी कंजूस है। सोच तो उस राजा का करना चाहिए,जिसे नीति के बजाय चापलूसी प्रिय है। सोचनीय तो वह स्त्री है, जो विपरीत परिस्थितियों पति का साथ छोड़ देती है। हे भारत तुम्हारे जैसा पिता और तुम्हारे जैसा भाई तीनों लोक में किसी के पास नहीं है। उक्त अवसर पर मुख्य अजमान पूर्व प्रधान वीरेंद्र यादव उनकी धर्मपत्नी संगीता यादव, रविंद्र यादव, हसनू चौधरी, चैन चौधरी, सुदामा चौधरी, रिंकू चौधरी समेत कई लोग मौजूद थे।

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