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भक्ति के प्रिय पुत्र हैं, ज्ञान व वैराग्य-आचार्य इंद्रासन मिश्र

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गोरखपुर। जिस प्रकार माता को अपनी संतान प्राणों से प्रिय होती है,उसी प्रकार माँ भक्ति के दो पुत्र हैं-ज्ञान व वैराग्य। शास्त्रों में वर्णित है की भक्ति अपने पुत्रों के बिना नहीं रह सकती ? जहां भक्ति नहीं है वहां भगवान कैसे रह सकते हैं ? भक्ति ही मनुष्य को भगवान से साक्षात्कार कराती है,जिससे उसे सुख और मोक्ष दोनों की प्राप्ति हो जाती है।

उक्त बातें-आचार्य इंद्रसेन मिश्रा ने कही। वह नगर पंचायत घघसरा के ग्राम डुमरी में श्रीमद् भागवत व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को कथा रसपान कर रहे थे। उनहोंने कथा विस्तार करते हुए कहा कि मनुष्य कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच जाए परंतु भक्ति के बगैर उसका कल्याण नहीं हो सकता है, क्योंकि भक्ति अपने साथ- विनय, करुणा, दया, दान तथा क्षमा जैसे देवी गुण प्रदान करती हैं,जो भगवान को सबसे प्रिय है। शास्त्रों ने सत्य कहा है कि- तरहिं बिन सेएं मम स्वामी।राम नमामि नमामि नमामी।। भक्ति के अनेक मार्गो में शरणागति सर्वोपरि है। ज्ञान रहित होकर मनुष्य यदि भगवान की शरणागति हो जाता है, तो भगवान तत्क्षण उसे संभाल लेते हैं।

उक्त अवसर पर  आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी, आचार्य विनय शास्त्री, आचार्य धर्मदेव चौबे उर्फ पतरू बाबा, विजय प्रताप राज, रवि राज राज,अमरेंद्र प्रताप राज, दिनेश चौबेरमे, दुर्गेश चौबे, शैलेश चौबे, यदुवंश चौबे, विनय तिवारी, रूपचंद,संतोष, हनुमान चौबे समेत कई लोग मौजूद थे।

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