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Holi 2023: एक गाव ऐसा भी जहां नहीं खेली जाती होली, 15 पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा...

Belief behind not celebrating Holi: देश के ऐसे गांव जहां नहीं खेली जाती होली, 15 पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा, आप वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

Belief behind not celebrating Holi: ग्रामीणों की कुलदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन बताते हुए ग्रामीण कहते हैं कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे लोग सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं।

 

Belief behind not celebrating Holi: रुद्रप्रयाग/चमोली, उत्तराखण्ड इस बार रंगों का त्योहार होली 8 मार्च को मनाई जाएगी। जिसकी तैयारियां पूरे देशभर में चल रहीं है। होलिका दहन से लेकर होली खेलने के लिए हर कोई तैयार है। सभी शहर और गांव में रंग, गुलाल से बाजार सज गए है। 

 

 

 

क्या आप जानते है कि भारत में ऐसे भी कई गांव है जहां होली नहीं मनाई जाती। तो आज हम आपको बताएंगे कि उत्तराखंड के उन तीन गांवों के बारे में जहां कई पीढ़ियों होली नहीं खेली जाती साथ ही बताएंगे इसके पीछे का राज कि आखिर क्या है इसके पीछे की वजह।

 

 

अब आप इसे अंधविश्वास कहें या अपनी कुलदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी के प्रति ग्रामीणों की आस्था, लेकिन सच यह है कि इन तीन गांवों के लोग 15 पीढ़ियों से अपने विश्वास पर कायम हैं। जिसकी वजह से इन तीन गांवों में पीढ़ियों से होली नहीं खेली जाती।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली,कुरझण और जौंदला गांव इस उत्साह से कोसों दूर हैं। यहां न कोई होल्यार आता है और न ग्रामीण एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।

होली न मनाने के पीछे की मान्यता

गांव वालों ने पूरे 373 सालों से होली नहीं मनाई है। होली न मनाने के पीछे लोक मान्यता और विश्वास है। जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सभी ने संजोए रखा है। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 372 वर्ष पहले यहां आकर बस गए थे।

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ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति भी लाए थे और होली न खेलने का विश्वास इन्हीं देवी के साथ जुड़ा है।

ग्रामीणों की कुलदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन बताते हुए ग्रामीण कहते हैं कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे लोग सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं।

कुछ लोग बताते हैं कि 150 साल पहले इन गांवों में होली खेली गई थी, तब यहां हैजा फैल गया था। इस बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई थी, तब से आज तक गांवों में होली नहीं खेली गई।

रुद्रप्रयाग/चमोली, उत्तराखण्ड इस बार रंगों का त्योहार होली 8 मार्च को मनाई जाएगी। जिसकी तैयारियां पूरे देशभर में चल रहीं है। होलिका दहन से लेकर होली खेलने के लिए हर कोई तैयार है। सभी शहर और गांव में रंग, गुलाल से बाजार सज गए है। 

क्या आप जानते है कि भारत में ऐसे भी कई गांव है जहां होली नहीं मनाई जाती। तो आज हम आपको बताएंगे कि उत्तराखंड के उन तीन गांवों के बारे में जहां कई पीढ़ियों होली नहीं खेली जाती साथ ही बताएंगे इसके पीछे का राज कि आखिर क्या है इसके पीछे की वजह।

अब आप इसे अंधविश्वास कहें या अपनी कुलदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी के प्रति ग्रामीणों की आस्था, लेकिन सच यह है कि इन तीन गांवों के लोग 15 पीढ़ियों से अपने विश्वास पर कायम हैं। जिसकी वजह से इन तीन गांवों में पीढ़ियों से होली नहीं खेली जाती।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली,कुरझण और जौंदला गांव इस उत्साह से कोसों दूर हैं। यहां न कोई होल्यार आता है और न ग्रामीण एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।

होली न मनाने के पीछे की मान्यता

गांव वालों ने पूरे 373 सालों से होली नहीं मनाई है। होली न मनाने के पीछे लोक मान्यता और विश्वास है। जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सभी ने संजोए रखा है। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 372 वर्ष पहले यहां आकर बस गए थे।

ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति भी लाए थे और होली न खेलने का विश्वास इन्हीं देवी के साथ जुड़ा है।

ग्रामीणों की कुलदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन बताते हुए ग्रामीण कहते हैं कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे लोग सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं।

कुछ लोग बताते हैं कि 150 साल पहले इन गांवों में होली खेली गई थी, तब यहां हैजा फैल गया था। इस बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई थी, तब से आज तक गांवों में होली नहीं खेली गई।

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