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साढ़े चार साल बेमिसाल! "सरकार कितनी फेल कितनी पास"?

विवेचना
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का चुनावी पिच तैयार हो चुका है। समस्त राजनैतिक दल अपनी-अपनी टीम के साथ मैदान में उतर चुके है। सभी के तरकश में अपने-अपने वाण है। (जैसे- प्रबुद्ध सम्मेलन, संगोष्ठी, रैली, और जातिगत सम्मेलन) वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिलों में देखा जा सकता है। 

पर यूपी का माहौल क्या है? क्योंकि यह उत्तर प्रदेश है भैया। यहाँ की राजनैतिक नब्ज को पकड़ना और समझना इतना आसान नहीं होता है। बड़े-बड़े राजनैतिक दल भी इसमें चूक जाते हैं। क्योंकि यहाँ जो दिखता है वो होता नही है और जो होता है वो दिखता नहीं है।

वर्तमान में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य रूप से यूपी के सियासत की लड़ाई दो प्रमुख पार्टियां समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में है। फिलहाल तो यही दिख रहा है।
तो आइए जानते हैं की इन पार्टियों के अंदरखाने में क्या चल रहा है। शुरआत वर्तमान सत्ता में स्थापित भारतीय जनता पार्टी से करते हैं और तीन चीज़ों का विश्लेषण करते हैं।

1. योगी सरकार के कार्यकाल की उपलब्धियां

लगभग 14 वर्षों से अधिक उत्तर प्रदेश की सत्ता से वनवास झेलने के पश्चात बीजेपी की 2017 विधानसभा चुनाव में धमाकेदार रूप से सत्ता में वापसी होती है। उत्तर प्रदेश चुनावी इतिहास में पहली बार किसी पार्टी को 300 से ऊपर सीटें मिलते हैं। बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार में उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अखिलेश यादव की सरकार में फैली नाकामियों को मुद्दा बनाया था। उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने यूपी का तख्त और प्रदेश के मुख्यमंत्री का ताज गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ के सिर पहनाया था। साथ ही साथ संगठन के तरफ से दिनेश शर्मा और और बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने में में अहम रोल निभाने वाले केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बनाया ताकि संतुलन न बिगड़ पाए। पार्टी ने नारा दिया कि अब उत्तर प्रदेश में राम-राज्य की शुरुआत होगी। अपने कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी ने अनेक काम किए हैं इसमें कोई दो राय नहीं है। राम मंदिर के फैसले को शांतिपूर्वक और सहज ढंग से लागू करवाना, राम मंदिर के फैसले के बाद कोई बवाल या दंगा न होना, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण, मथुरा-ब्रज क्षेत्र कॉरिडोर का निर्माण, चित्रकूट क्षेत्र का विकास और विंध्याचल धाम का विकास करके योगी आदित्यनाथ ने यह साबित किया कि बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी पहचान स्थापित करती रहेगी। कुंभ 2019 का आजादी के बाद का सबसे सफल आयोजन करके उन्होंने विश्व भर में सुर्खियां कमाई।

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उत्तर प्रदेश सरकार ने 4:30 लाख करोड़ नौकरी का दावा किया है लेकिन मेरी जांच पड़ताल में तीन लाख से सवा तीन लाख नौकरी लोगों को मिली है। केंद्र के सहयोग से पूरे प्रदेश में एक्सप्रेस वे का जाल बिछाकर उन्होंने विकास का नया मार्ग प्रशस्त किया है जैसे - पूर्वांचल एक्सप्रेस वे (जो कि लगभग पूरा हो चुका है), बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, गंगा एक्सप्रेस वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे, बलिया लिंक एक्सप्रेस वे का निर्माण कार्य जारी है। जिससे प्रदेश में एक्सप्रेसवे का एक जाल सा बिछा दिया है।उत्तर प्रदेश बिजनेस समिट कराकर उन्होंने कई हजार करोड़ रुपयों के एमओयू साइन करवाएं। कानून व्यवस्था को सर्वश्रेष्ठ व उत्तम बनाने के लिए उन्होंने प्रदेश के महानगरों (वाराणसी, कानपुर, नोएडा और लखनऊ) में एसएसपी व्यवस्था को कमिश्नरेट व्यवस्था में तब्दील कर दिया है। अभी आगरा और प्रयागराज को भी कमिश्नर व्यवस्था बनाने की बात चल रही है।

अपने साढ़े 4 साल के कार्यकाल पूर्ण करने के बाद उन्होंने नारा दिया "हमारे इरादे नेक और हमारे काम अनेक"। कोरोना काल में गरीबों को मुफ्त राशन वितरण और प्रवासी मजदूरों की राज्य वापसी जैसे चुनौतीपूर्ण मुद्दे को सहजता से संभाला और उसे उसके अंजाम तक पहुंचाया। स्वच्छ भारत मिशन का सुगम संचालन किया जिसके तहत उनकी सरकार बनने के बाद लगभग दो लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ है।महिला सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे को जिसे अखिलेश के कार्यकाल में उठाकर खुद बीजेपी सत्ता में आई थी। उन महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री कन्या सुमंगल योजना, मिशन शक्ति, और एंटी रोमियो स्क्वायड आदि का गठन किया। जिससे महिलाएं कानूनी रूप से पहले से ज्यादा सक्षम बनी है।

2. योगी सरकार की नाकामियां और कमजोरियां?

जहां ऊपर निम्नलिखित योगी सरकार की कामयाबियां हैं। वहीं उन्हीं में कई जगहों पर भारी भ्रष्टाचार भी हुए हैं और नाकामियां भी है। भ्रष्टाचार इसलिए ज्यादा बाहर नहीं आ सका क्योंकि भारत का राजनीतिक इतिहास रहा है की मजबूत सरकार और कमजोर विपक्ष के होते यह मुद्दे जनता तक नहीं पहुंच पाते हैं।
जैसे हिंदुत्व के सबसे अहम मुद्दे राम मंदिर के नाम पर जमीन में हुए घोटाले, भर्तियों में हुए घोटाले, कुंभ 2019 में हुए घोटाले, शिक्षा भर्ती में हुए घोटाले सहित कई अन्य घोटाले भी है। कई घोटालों कि जांच के आदेश भी हो चुके हैं और मामला विचाराधीन है।

जिस प्रकार उन्होंने सत्ता में आते ही एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन किया और जिस प्रकार से उसका संचालन हुआ वह भी सवालों के घेरे में आ गया।
योगी सरकार के कार्यशैली पर भी कई दफ़े गंभीर सवालिया निशान लगे हैं। खासतौर पर कानून व्यवस्था को लेकर चाहे वह एंटी रोमियो स्क्वायड हो या फिर विधायक कुलदीप सिंह सेंगर रेप कांड, हाथरस कांड, बुलंदशहर इंस्पेक्टर हत्याकांड, कासगंज हिंसा, विकास दुबे कांड, गोरखपुर में निर्दोष व्यापारी की हत्या और वर्तमान में लखीमपुर हिंसा का मामला। इन मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस और योगी सरकार कि कार्यशैली पर काफी कड़े गंभीर सवाल खड़े किए हैं। लेकिन सरकार इसका बचाव इससे करती है कि उसने माफियाओं ( प्रमुख रूप से अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी और आजम खान) के घर बुलडोजर चलवाए हैं। कई बड़े अपराधियों का एनकाउंटर किया और बाकियों को जेलों में भेजा है। "उत्तर प्रदेश पुलिस अब यूपी पुलिस नहीं एनकाउंटर पुलिस के नाम से मशहूर है" यह बयान भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही दिया था।

बिजनेस इन्वेस्टर सम्मिट करा कर उन्होंने कई बड़े-बड़े एमओयू तो साइन करवाए लेकिन उन्हें जमीनी स्तर पर उतारने में वह नाकाम साबित होते दिखाई दे रहे हैं। रोजगार के मुद्दे पर योगी सरकार उस तरीके से काम नहीं कर पायी जिस प्रकार उसने जनता से वादा किया था। परिणाम स्वरूप वर्तमान में उत्तर प्रदेश में देश के सर्वाधिक बेरोजगारो वाले राज्यों में दूसरे स्थान पर है। यह बात नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भी स्पष्ट की है। स्वच्छ भारत मिशन के शौचालय निर्माण और प्रधानमंत्री आवास योजना में भी कई जगह घोटाले हुए है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर यह भी आरोप लगते हैं कि वह अधिकारियों के इशारों पर चलते हैं न कि कार्यकर्ता और पार्टी पदाधिकारियों के इशारे पर ।

3. क्या है बीजेपी के चुनाव जीतने की रणनीति?

बीजेपी चुनाव जीतने में अपनी पुरानी हिंदुत्व वाली रणनीति पर काम कर रही है और साथ ही साथ विकास का भी नारा दे रही है यहां तक कि पार्टी और संगठन की लड़ाई जमीन तक ना पहुंचे इसकी भी वह भरसक कोशिश कर रही है। यह तो सर्वमान्य है कि योगी आदित्यनाथ का संगठन मंत्री सुनील बंसल और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या से उनके रिश्ते कैसे हैं। पर जब बात सत्ता की हो तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने धुर विरोधी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के घर जाते हैं। इस घटना से उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी सकते में आ जाते हैं। क्योंकि यूपी में साढे 4 साल तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एक दूसरे के धुर-विरोधी रहे हैं। यह बात जगजाहिर है।लेकिन सवाल जब कुर्सी का हो तो सब जायज है। मौका भले ही केशव प्रसाद मौर्य के पुत्र के शादी के बाद पुत्र वधू और पुत्र को आशीर्वाद का हो। लेकिन योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य की तस्वीर ने सारे चीजों को अपने आप ही बयान कर दिया था। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ का केशव मौर्या के विभाग के अधिकारियों की मीटिंग बुलाना और उसमें लोक निर्माण विभाग जिसके मंत्री खुद केशव प्रसाद मौर्य हैं। उनके बिना ही उनके अधिकारियों को आदेश देना योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य की सियासी घमासान की सच्चाई बताने के लिए काफी है। योगी आदित्यनाथ बार-बार केशव प्रसाद के लोक निर्माण विभाग में भी दखल दे रहे हैं और वह प्रदेश में गड्ढा मुक्त सड़कें बनाने का वादा वापस दोहरा रहे हैं जिसका वादा उपमुख्यमंत्री ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहकर किया था कि "हम 15 दिन में प्रदेश की समस्त सड़कों को गड्ढा मुक्त बना देंगे"। अब प्रदेश की सड़कें कितनी गड्ढा मुक्त हुई हैं यह तो आने वाले चुनाव में जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करके हमे बता ही देगी। वैसे भी उत्तर प्रदेश में सरकार चाहे किसी की भी बनी हो 1997 के बाद से राज्य का प्रत्येक मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही राज्य को गड्ढा मुक्त बनाने का वादा करता है।

अगर 2017 में बीजेपी को भारी-भरकम सत्ता मिली थी। तो उस जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बाद अगर किसी की सबसे ज्यादा मेहनत थी तो वो थे केशव प्रसाद मौर्य जिन्होंने अपने दम पर ओबीसी वोट को बीजेपी की तरफ मोड़ कर रख दिया था। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अपने मंत्रियों और विधायकों से भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कई मंत्री और विधायक उनके कार्यशैली तक पर गंभीर सवाल उठा चुके हैं।

बीजेपी और आरएसएस इसे चुनाव से पहले ठीक करने में जुट गए है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले एक और गंभीर चुनौती उनके सामने है और वो है राज्य में जारी अफ़सरशाही। राज्य सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे मौके आये हैं जब अधिकारियों ने योगी सरकार की अच्छे से भद्द पिटवाई है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस वाली नीति भी योगी सरकार पर गंभीर सवाल खड़े करती है। कई जिलों में अधिकारियों का मनमाना रवैया जनता को साफ-साफ देखने में मिल रहा हैं। इसका खामियाजा भी योगी सरकार को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।

बीजेपी और आरएसएस इन सारे चुनौतियों को अच्छे से जानती है और वह यूपी चुनाव के पहले यह सारी चीज ठीक करने में जुट चुकी है।
भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश जीतने का प्लान यह है कि एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे किया जाएगा। आने वाले 50 दिनों में प्रधानमंत्री मोदी की 30 से अधिक रैलियां उत्तर प्रदेश में होगी जिसमें वह कई परियोजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण करेंगे। बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा बूथ स्तर को मजबूत करने के काम में लग चुके हैं। वही गृह मंत्री अमित शाह भी अपने अन्य सहयोगी राजनीतिक दलों के साथ बातचीत और सीट समझौता करने में लग गए हैं सूत्रों के मुताबिक वह उम्मीदवार भी तय कर रहे हैं। बीजेपी राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर  प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना, मुफ़्त वैक्सीनेशन, किसान सम्मान निधि, को उत्तर प्रदेश चुनाव में अहम मुद्दा बनाने में जुट चुकी है इसके अलावा पार्टी जगह-जगह प्रबुद्ध सम्मेलन, जातिगत सम्मेलन भी करवा रही है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इन सभी चीज़ों को कैसे मैनेज करके पार्टी को एक बार फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में वापस सत्ता वापसी करा पाती है।

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