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ग्राउंड-रिपोर्ट - क्या वाराणसी में रैली करके प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे पाएंगी चुनौती?

priyanka gandhi
वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यह तो हम सभी जानते हैं कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक उत्तर प्रदेश से ही सांसद हैं। लोकसभा में सर्वाधिक 80 सीट उत्तर प्रदेश से ही है।

कांग्रेस पार्टी का हिंदी बेल्ट कहे जाने वाले राज्यों में और खास तौर से उत्तर प्रदेश और बिहार में बहुत बुरी हालत है। वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी के पास उत्तर प्रदेश से सिर्फ एक सांसद रायबरेली से खुद कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं।

आज प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ वाराणसी में "प्रतिज्ञा रैली + किसान रैली" को संबोधित करती हैं। अपने वाराणसी दौरे की शुरुआत प्रियंका गांधी बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर और दुर्गाकुंड स्थित मां कुष्मांडा देवी के मंदिर में जाकर करती है। यह उनकी सोची-समझी रणनीति है। जिससे वह बीजेपी के हिंदुत्व वोट में सेंध लगा सकें।
वाराणसी की रैली प्रियंका गांधी का एक तरह से कहे तो पहला सियासी रैली है अपने सरीखे नेताओं के साथ। जहां पर उन्होंने महंगाई, पेट्रोल-डीजल की कीमत, किसान-बिल, भ्रष्टाचार और उद्योगपतियों को लेकर वर्तमान नरेंद्र मोदी और राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार पर कई निशाने साधे हैं। उन्होंने कहा "देश में सिर्फ वही सुरक्षित है जो बीजेपी के साथ है या बड़ा उद्योगपति है"।

आज प्रियंका गांधी ने एक सरीखे नेता की तरह अपना भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत मां दुर्गा के शक्ति मंत्रों से की। इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में सर्वप्रथम ब्राह्मणों द्वारा सरस्वती मंत्र का पाठ, उसके बाद मुस्लिम बंधुओं द्वारा शांति का पाठ और फिर सिख भाइयों द्वारा गुरुवाणी का पाठ करवाकर किया। जिससे वह देश को देश की सांस्कृतिक राजधानी से यह संदेश देना चाहती हैं कि वह सभी धर्मों और सभी संप्रदायों को साथ लेकर चलेंगी। जैसे कर्नाटक के बेल्लारी की घटना ने इंदिरा गांधी को एक संजीवनी दी थी वैसे ही लखीमपुर हिंसा मामले ने प्रियंका गांधी को भी एक संजीवनी देने का काम किया है। लखीमपुर हिंसा मामले में मुख्य रूप से प्रियंका गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस मुखर विरोध कर रही थी और जगह-जगह प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाने की जायज कोशिश की। आज उन्होंने अपने रैली में संबोधित करते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कहा कि "हम लड़ेंगे, लड़ेंगे और लड़ेंगे" जब तक मंत्री का इस्तीफा नहीं ले लेंगे तब तक लड़ेंगे" अभी तो सिर्फ बेटा गिरफ्तार हुआ है अब मंत्री के इस्तीफे की बारी है। कांग्रेस पार्टी ने 1 लाख भीड़ जुटाने का दावा किया था लेकिन लगभग 45 से 50 हजार की भीड़ जुटी हुई थी।

आज रैली में कुछ सूत्रों द्वारा अंदरखाने से यह भी खबर मिली कि प्रियंका गांधी 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए नहीं 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में माहौल बना रही हैं। अंदर खाने में तो सपा और कांग्रेस के गठबंधन तक की बात चल रही है। हालांकि सूत्रों ने इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ साफ-साफ नहीं बोला। लेकिन आज जिस तरीके से प्रियंका गांधी ने अपना भाषण दिया है उनमें उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक देखने को मिली है। भीड़ को देखकर वह उत्साह से भरपूर भरी हुई थी। लेकिन भीड़ को मोहने की कला और अपने पार्टी के तरफ वोट डलवाने की कला में उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी । जिस प्रकार नरेंद्र मोदी अपने रैली और भाषा शैली से पब्लिक को मोह कर वोट तक ले जाते हैं कुछ उसी तरह प्रियंका गांधी को भी करना होगा। और इस पर उन्हें काफी मेहनत भी करनी होगी यह इतना आसान भी नहीं होगा।

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2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को अगर हम उठाकर देखें तो भाजपा और कांग्रेस में मात्र 15 करोड़ वोट का ही अंतर है। इस बात को बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी कबूल करते हैं कि कांग्रेस पार्टी एक पुरानी ट्रक की तरह जैसे टाटा का ट्रक होता है दूर से देख कर ही समझ में आ जाता है वैसे ही कांग्रेस पार्टी है। उसके अस्तित्व को बार-बार ललकारा जाता है। स्वयं इंदिरा गांधी को तो पब्लिक रैली में पत्थर भी पढ़े थे। उसके बावजूद इंदिरा गांधी रुकने का नाम नहीं ली और बेल्लारी की घटना ने कांग्रेस पार्टी को वापस सत्ता में पहुंचा दिया था। लखीमपुर हिंसा मामले में जिस प्रकार से कांग्रेस मुखर थी उससे केंद्र और राज्य की योगी सरकार पर भारी दबाव पड़ा जिसके परिणाम स्वरूप अंततः गृह राज्य मंत्री के पुत्र आशीष मिश्रा को गिरफ्तार किया गया। जबकि वह स्वयं खुद को निर्दोष कह रहे थे और उनके पार्टी के नेता उनके बचाव में उतर चुके थे। एक बात और गौर करने वाली है कि प्रियंका गांधी और कई नेता जिन्होंने भाषण दिया जैसे भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा राज्यसभा सांसद, वाराणसी के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा इन लोगों ने राहुल गांधी का ज्यादा नाम नहीं लिया। स्वयं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा प्रियंका गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए नजर आए। भूपेश बघेल ने तो अपने राज्य के कई कार्यक्रम को भी गिनाया और बीजेपी को केवल बड़े उद्योगपतियों की सरकार करार दिया। प्रियंका गांधी ने भी अपने पूरे भाषण में राहुल गांधी का एक भी बार नाम नहीं लिया।

तो क्या यह इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रियंका गांधी राहुल गांधी को हटाकर जिनकी छवि को बीजेपी ने बहुत ज्यादा दुष्प्रचार कर दिया है और कांग्रेस के कई नेता उनकी काबिलियत पर भी सवाल उठाते हैं। उनको साइडलाइन कर कर खुद को आगे बढ़ाएंगी और अगर ऐसा होता है तो 2024 का चुनाव क्या कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी के नाम पर लड़ेगी? क्योंकि वर्तमान उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 का चुनाव मैं कांग्रेस पार्टी भी जानती है कि वह सीधी लड़ाई में कहीं नहीं है। यूपी के सत्ता की लड़ाई में मुख्य रूप से टक्कर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी कि ही है। उन्होंने आज अपने मंच से अखिलेश यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लखीमपुर हिंसा को लेकर भारी निशाना साधा है। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री लखनऊ आ सकते हैं लेकिन लखीमपुर जाकर लोगों के आंसू नहीं पोछ सकते हैं। योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री कहते हैं प्रियंका गांधी को झाड़ू लगाने का काम जनता ने दिया है तो क्या वह करोड़ों दलित सफाई कर्मचारियों और महिलाओं जो कि घर में रोजाना झाड़ू लगाती हैं उनका अपमान नहीं किया है। उन्होंने डीजल पेट्रोल और गैस जैसे मुद्दे को उछाला जिससे आम आदमी का सरोकार है।

वैसे अगर देखा जाए तो कई बार पार्टी में ऐसे मौके भी आए जब प्रियंका ने खुद को सामने लाकर पार्टी को संभाला है। कई सूत्रों और अंदरखाने से यह मुझे बताया कि पार्टी एकमत से प्रियंका गांधी को अपना नेता मानने के लिए तैयार है। लेकिन कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी कलह इतनी ज्यादा है कि वह इतना आसान भी नहीं है सूत्र इस बात को भी कबूल करते हैं।
वर्तमान समय की कांग्रेस पार्टी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में बट चुकी है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले ढाई वर्षो से कांग्रेस पार्टी के पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी ही पार्टी संभाल रही हैं।

प्रियंका गांधी भले ही वाराणसी में रैली करके कार्यकर्ताओं में जोश भरी हो। लेकिन उनके आगे की राह तनिक भी आसान नहीं है। पार्टी में भारी अंदरूनी कलह है। जहां-जहां पार्टी सत्ता में है पंजाब,राजस्थान,छत्तीसगढ़ वहां से कई दफे बगावत के सुर उठ चुके हैं। इन राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं का बोलबाला है और पार्टी का हाईकमान कल्चर भी उसे बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। तो ऐसे में प्रियंका गांधी का रास्ता आसान नहीं होने वाला है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रियंका गांधी वाकई 2024 के लोकसभा चुनाव के तैयारी में हैं या फिर वह और उनकी पार्टी मुंगेरीलाल के हसीन सपने ही देख रही है।

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