Pitru Visarjan 2024: कब है पितृ विसर्जन 2024, क्या है इसका महत्व? जानें तिथि व शुभ मुहूर्त
Pitru Visarjan 2024: पितृ विसर्जन अमावस्या भी हिंदुओं का एक धार्मिक कार्यक्रम है जिसे प्रत्येक घर में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।आश्विन मास की अमावस्या ही पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से विख्यात है। यहा धार्मिक कार्य क्रम का आयोजन अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करने के लिए किया जाता है।पंजाब-हरियाणा के कई क्षेत्रों में इसे बड़मावस (Badhmavas) भी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में हिन्दू धर्म में ही अपने से बड़ों के प्रति आदर एवम श्रद्धा करने के भाव को पाया जाता है।
इस दिन ब्राह्मण को भोजन तथा दान देने से पित तृप्त हो जाते हैं तथा वे परिजनों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों को विदा करने से पितृ देव बहुत प्रसन्न होते हैं। क्योंकि यह मोक्ष देने वाले भगवान विष्णु की पूजा का दिन माना जाता है।यह पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है। हिंदू धर्म में इस दिन का महत्व बहुत अधिक है।
मान्यता है कि हर साल पितृपक्ष आरंभ होने पर सभी पितृ धरती पर आते हैं और पितृपक्ष के आखिरी दिन यानी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वापस अपने लोक चले जाते हैं। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है या पितरों की तिथि ज्ञात होने पर भी यदि समय पर किसी कारण से श्राद्ध न हो पाए, तो उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या को कर देने से पितर सन्तुष्ट हो जाते हैं। जिनकी अकल मृत्यु हो गई हो उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या के दिन किया जा सकता है।
कुछ लोग इस पर्व को पितृ पक्ष का समापन पर्व भी कहते हैं।आख़री पितृ पक्ष की शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान बनाकर दरवाजे पर रखा जाता हैं। जिसका अर्थ है कि पितृ देवता जाते समय भूखे न रह जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके रास्ते को आलोकित करना है।
पितृ विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध पर्व कही भी किया जा सकता है जैसे किसी नदी, या सरोवर के तट पर या निजी आवास में भी हो सकता है। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है या पितरों की तिथि ज्ञात होने पर भी यदि समय पर किसी कारण से श्राद्ध न हो पाए, तो उनके लिए इस अमावस्या को श्रद्धा तर्पण और दान किया जाता है ।
तर्पण करने का महत्व:-
तर्पण करने का बहुत ही आधिक महत्व होता है।समस्त ब्रह्मांड का कल्याण होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।इस बात का आवश्यक ध्यान रखना चाहिए है कि बिना कुश धारण किए केवल हाथ से तर्पण नहीं करना चाहिए। तर्पण और श्राद्ध कर्म को एक विद्वान ब्राह्मण की देखरेख में करना चाहिए।
दान का महत्व :-
श्राद्ध करते समय ब्राह्मणों को दान देना अनिवार्य होता है, लेकिन इसके यदि आप किसी गरीब, जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करते हैं, तो आपको अधिक पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा, श्राद्ध के दिन गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भोजन का एक अंश अवश्य निकल लेना चाहिए।
श्राद्ध करने का स्थान और विधि का महत्व :-
अगर संभव हो सके, तो गंगा नदी के किनारे या किसी भी नदी के किनारे श्राद्ध कर्म करना चाहिए। संभव न हो, तो घर पर भी विधिपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, श्राद्ध पूजा सही समय पर प्रारंभ करनीण की सहायता से मंत्रोच्चार के साथ तर्पण और पूजा की विधि सही तरीके से करनी चाहिए।
पितृ विसर्जन तिथि व शुभ मुहूर्त:-
पितृ विसर्जन के आश्विन माह की अमावस्या तिथि 01 अक्टूबर, 2024 को रात्रि 09 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो जाएगी। वहीं, इसका का समापन 03 अक्टूबर को रात 12 बजकर 18 मिनट पर होगा. सर्व पितृ अमावस्या बुधवार, 02 अक्टूबर को मनाया जाएगा। पितरों का विसर्जन इस दिन ही किया जाएगा ।
कुतुप मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 46 मिनट a.m से 12 बजकर 33 मिनट p.m तक रहेगा. तो कुल अवधि ही 47 मिनट की होगी.
रोहिणी मुहूर्त - 12 बजकर 33 से 1 बजकर 20 मिनट तक (47 मिनट अवधि)
अपराह्न काल - 1 बजकर 20 मिनट से 3 बजकर 42 मिनट तक होगा. (2 घंटे 22 मिनट की अवधि है )