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अगर आप भी नहीं जाते मंदिर! तो मिस कर रहे है ये अद्भुत अनुभूति... रोज़ पूजा करने से मिलते हैं ये लाभ

There are many benefits of going to the temple: मंदिर जाने के एक नहीं अनेक हैं लाभ, प्रतिदिन पूजा करने से मिलते हैं ये 36 लाभ

There are many benefits of going to the temple: हर हिंदू परिवार में प्रतिदिन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन घर पर पूजा-पाठ के साथ ही मंदिर भी जाना चाहिए। प्रतिदिन मंदिर जाकर पूजा-दर्शन करने के एक-दो नहीं बल्कि 36 लाभ हैं और इन लाभों को शास्त्रों के साथ ही वैज्ञानिक आधार पर भी लाभकारी माना गया है।

 

There are many benefits of going to the temple: भगवान के प्रति हर व्यक्ति की श्रद्धा होती है। इसलिए तो जब भी हम किसी मुसीबत में होते हैं तो सबसे पहले भगवान को याद करते है। 

 

 

हर हिंदू परिवार में प्रतिदिन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन घर पर पूजा-पाठ के साथ ही मंदिर भी जाना चाहिए। प्रतिदिन मंदिर जाकर पूजा-दर्शन करने के एक-दो नहीं बल्कि 36 लाभ हैं और इन लाभों को शास्त्रों के साथ ही वैज्ञानिक आधार पर भी लाभकारी माना गया है।

 

 

पंडित सुरेश श्रीमाली बताते हैं कि, देव दर्शन नियम हों, मंदिर में जाकर नमन, प्रार्थना, पूजा, का सशक्त आधार हो. इससे जीवन में कई सुखद परिवर्तन, शांति, संपन्नता आदि होने के प्रति विश्वास का सुफल अवश्य मिलेगा इसलिए हर व्यक्ति को प्रतिदिन मंदिर जाने का नियम स्वयं के लिए अवश्य बनाना चाहिए।

 

 

मंदिर जाने से सुबह ब्रह्म महुर्त में उठने का नियम बनता है।  सुबह जल्दी उठने से हम अपने नित्य कर्म जैसे उषापान, शौच, दन्त धावन, स्नान आदि से निवृत हो जाते है।

 

अपने घर के निकटम मंदिर तक पैदल चलकर जाने से हमारा भ्रमण व्यायाम होता है, प्राणवायु मिलती है और उगते हुए सुर्य की दिव्य लालिमा का अवलोकन होता है।

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मंदिर की  घंटी को 7 सेकंड की बजाने से और इसकी टन्कार  पर ध्यान केन्द्रित होने से हमारा मन सभी सांसारिक विषमताओं से हटकर प्रभु के चरणों मे अर्पित हो जाता है।

मंदिर में भगवान को अर्पित सुगंधित फूलों की खश्बू से स्वास्थ्य लाभ मिलता तथा उत्साह वर्धन होता है।

मंदिर में अर्पित भिन्न-भिन्न फूलों के विविध रंगो से हमारे को सुकून मिलता है।

मंदिर में कपूर, अगरबत्ती और धूप की दिव्य सुगंध से हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और नकारात्मकता समाप्त होती है।

मंदिर में हम अपने जीवन के उद्देश्यों को दोहराते हैं और ईश्वर से सफलता का आशिर्वाद मांगते हैं।

सुबह उठते ही हम उस दिन की कार्य सूची लिखते है और उसे मंदिर लेकर जाते है. वहां उन सभी कार्य को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम का संकल्प भी लेते हैं।

जब हम मंदिर में आरती और कीर्तन के दौरान ताली बजाते हैं तो हमें इस एक्यूप्रेशर से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

आरती मे बजाई जाने वाली छोटी घंटी से हमारा  पित्त दोष सन्तुलित होता है. शायद इसी कारण से गऊमाता के गले मे भी घंटी बांधी जाती है, क्योंकि ये सर्वमान्य है कि गाय मे पित्त ज्यादा होती है।

आरती के दौरान चालीसा के जाप से हमारी वाणी मे दिव्यता आती है. ओम् के उच्चारण से हमारा चित एकाग्र होता है।

आरती के बाद शंख बजाया जाता जो श्रद्धालुओ के लिए बहुत सुखदायी तथा स्वास्थ्य वर्धक है।

आरती के बाद हम भारत माता की, गंगा मैया  की जय बोलते हैं, जिससे हमारी देश भक्ति जागृत होती है।

हर मंदिर मे आरती के बाद गो रक्षा तथा गौ हत्या बंद होने का संकल्प जरूर दोहराते हैं।

आरती के बाद हम ज्योत पर अपना हाथ घुमा कर अग्नि स्पर्श करते हैं. इससे हमारी कोशिकाओं को दिव्य उषमता मिलती है और हमारे भीतर पल रहे सभी जीवाणु संक्रमण समाप्त हो जाते हैं।

ज्योत पर हाथ फैरने के उपरांत अपनी ऊष्म हाथेलियों को आंखों से लगाते हैं. इसकी गरमाहट आंखो के पीछे की सुक्ष्म रक्त वाहिकाओं को खोल देती है और उनमें ज्यादा रक्त प्रवाहित होने लगता है हमारी आंखो कि ज्योति मे वृद्धि होती है।

ज्योत पर हथेली रखना हमारे द्वारा हुई सभी भूल-चूक के प्रायश्चित का भी प्रतीक है।

आरती के बाद हम दण्डवत होकर माथा धरती पर लगाते है, इससे हमारा अहंकार खत्म होकर धरती मे समाहित हो जाता है।

मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद हमें तुलसी, चरणामृत और प्रसाद मिलता है. चरणामृत एक दिव्य पेय प्रसाद है जिसे गाय के दुग्ध, दही, शहद, मिस्री, गंगाजल और तुलसी से बनाकर विशेष धातु के बर्तन में रखा जाता है. आयुर्वेद के मुताबिक यह चरणामृत हमारे शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखता है।

चरणामृत के साथ दी गई तुलसी हम बिना चबाए निगल लेते हैं जिससे हमारे सभी रोग ठीक हो जाते हैं।

मंदिर में पूजा अर्चना के बाद जब हम भगवान की मूर्ति की परिक्रमा करते हैं. इससे पूरे ब्रह्मांड की दैवीय उर्जा गर्भस्थान के शिखर पर विघ्यमान धातु के कलश से प्रवाहित होकर ईश्वर की मूर्ति के नीचे दबाई गई धातु पिंड तक जाती है और धरती में समा जाती है।

गर्भस्थान की प्ररिक्रमा के दौरान हमे इस ब्रह्मांडिय उर्जा से लाभ मिलता है।

मंदिर की भूमि को सकारात्मक ऊर्जा का वाहक माना जाता है. यह ऊर्जा भक्तों में पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है. इसलिए हम मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं।

मंदिर से बाहर आते हुए फिर से घंटी बजाकर हम संसारिक जिम्मेदारियों मे वापिस आ जाते हैं।

मंदिर में सूर्य को जल अर्पित करने से हम उसकी आलौकिक किरणों से लाभान्वित होते हैं।

पीपल, बड़, बरगद को जल अर्पण करने से हमे वहां फैली खास तरह की ऑक्सिजन मिलती है. ये सभी एक दिव्य वृक्ष है जो बहुत अघिक मात्रा में प्राणवायु को चारों और विसर्जित करते हैं. इसके पत्ते इतने संवेदनशील होते हैं कि वे रात्रि मे भी चंद्रमा की किरणों से ऑकसीजन पैदा करते हैं।

मंदिर में हम तुलसी के पौधे और केले के पेड़ को भी जल देकर तृप्ति होते हैं।

मंदिर मे बाहर आकर हम वहां मौजूद जरूरतमंदों को दान-पुण्य करते हैं, जिससें हमारे मन मे शान्ति आती है।

मंदिर के माध्यम से हम अपनी कमाई का दशम सामाजिक कार्यो में लगाते हैं और समाज में समरसता, सौहार्द आता है।

आजकल शहर मे घरों में गो माता रखने का प्रावधान नहीं है. लेकिन हम मंदिर जा कर गो को ग्रास देकर अपने संस्कारों को जारी रख सकते हैं।

प्रतिदिन मंदिर जाने से हमारा नए-नए और धार्मिक लोगों से परिचय होता है।

मंदिर जाने से हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढती है।

मंदिर जाने से वहां के पुरोहित से आशिर्वाद मिलता है और हमें पंचांग आदि जैसी कई जरूरी सांस्कृतिक जानकारी मिलती है।

पंचांग के श्रावण या पाठन से  हमें अपनी धार्मिक जिम्मेदारियों का पालन करने में मदद मिलती है और हमारा कल्याण होता है।

मंदिर में सभी वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत, आदि  शास्त्र मौजूद होते हैं जिन्हें पढ़कर हम अपना जीवन सफल कर सकते हैं।

 

इसलिए हम सभी को प्रतिदिन मंदिर जाने का संकल्प लेना चाहिए। इससे हमारा समाज संगठित होगा, संस्कृति  की रक्षा होगी और हमारा प्यारा भारत पुन: विश्व गुरू बनेगा।

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