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Pitru Paksha 2022: आज से शुरू पितृ पक्ष , काशी के पिशाच मोचन कुंड पर श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है मुक्ति!

Pitru Paksha 2022: Pitru Paksha starting from today, performing Shradh at Kashi's Vampire Mochan Kund, the ancestors get salvation!

आज श्राद्ध पूर्णिमा है। गया तीर्थ की मान्यता रखने वाले काशी के पिशाचमोचन कुंड पर आज से पितरों (पूर्वजों) को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध शुरू हो गया है।

पितृ पक्ष का समापन 25 सितंबर को होगा। इस दौरान जिसके पितर जिस तिथि को परलोक सिधारे होंगे, उसी तिथि को उनका श्राद्ध कर्म किया जाएगा। बीते दो साल कोरोना महामारी की काली छाया के कारण पितृ पक्ष में सनातन धर्मी पिशाचमोचन कुंड नहीं आ पाए थे।

इस बार तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि अब सब कुछ सामान्य हो गया है तो पहले के जैसे ही पितृ पक्ष में रोजाना 40 से 50 हजार श्रद्धालु अपने पितरों के श्राद्ध कर्म के लिए पिशाचमोचन कुंड आएंगे। 


 

भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इस कुंड के बारे में गरुड़ पुराण में भी बताया गया है। काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। 

वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड में ये मान्यता है कि हजार साल पुराने इस कुंड किनारे बैठ कर अपने पितरों जिनकी आत्माए असंतुष्ट हैं उनके लिए यहा पितृ पक्ष में आकर कर्म कांडी ब्राम्हण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिल जाती है।

मान्यता के अनुसार यहां कुंड़ के पास एक पीपल का पेड़ है जिसको लेकर मान्यता है कि इस पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है। इसके लिए पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सके।

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प्रेत बधाएं तीन तरीके की होती हैं। इनमें सात्विक, राजस, तामस शामिल हैं। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं।इसको भगवान शंकर, ब्रह्म और कृष्ण के ताप्‍तिक रूप में मानकर तर्पण और श्राद का कार्य किया जाता है। 

प्रधान तीर्थ पुरोहित के अनुसार, पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है। उन्होंने बताया कि यहां के पूजा-पाठ और पिंड दान करने के बाद ही लोग गया के लिए जाते हैं। उन्‍होंने बताया कि जो कुंड वहां है वो अनादि काल से है भूत-प्रेत सभी से मुक्ति मिल जाती है।

श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा 


पौराणिक कथा के अनुसार, जब महाभारत युद्ध में महान दाता कर्ण की मृत्यु हुई, तो उसकी आत्मा स्वर्ग चली गई, जहां उसे भोजन के रूप में सोना और रत्न चढ़ाए गए। हालांकि, कर्ण को खाने के लिए वास्तविक भोजन की आवश्यकता थी और स्वर्ग के स्वामी इंद्र से भोजन के रूप में सोने परोसने का कारण पूछा।

इंद्र ने कर्ण से कहा कि उसने जीवन भर सोना दान किया था, लेकिन श्राद्ध में अपने पूर्वजों को कभी भोजन नहीं दिया था। कर्ण ने कहा कि चूंकि वह अपने पूर्वजों से अनभिज्ञ था, इसलिए उसने कभी भी उसकी याद में कुछ भी दान नहीं किया।

इसके बाद कर्ण को 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति दी गई, ताकि वह श्राद्ध कर सके और उनकी स्मृति में भोजन और पानी का दान कर सके। इस काल को अब पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है।

पितृपक्ष तर्पण विधि

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पितृपक्ष में हर दिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगे। 

पितृपक्ष का महत्व 


हिंदू धर्म में मान्यता है कि पूर्वजों की तीन पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में निवास करती हैं, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का स्थान माना जाता है। ये क्षेत्र मृत्यु के देवता यम द्वारा शासित है, जो एक मरते हुए व्यक्ति की आत्मा को पृथ्वी से पितृलोक तक ले जाता है।

मान्यता है कि जब अगली पीढ़ी का व्यक्ति मर जाता है, तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में जाती है और भगवान के साथ फिर से मिल जाती है, इसलिए श्राद्ध का प्रसाद किसी को नहीं दिया जाता है। इस प्रकार पितृलोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध संस्कार दिया जाता है, जिसमें यम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

पितृ पक्ष में भूलकर भी ना करें ये गलतियां 

1. मान्यताओं को पितृ पक्ष को कड़े दिन कहते हैं. इन दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है। इसलिए इन दिनों में आप कोई भी मांगलिक का शुभ काम करने से बचें। इन दिनों में नए कपड़े भी ना खरीदें। 

2. हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, कड़े दिनों में पुरुषों को बाल और दाढ़ी नहीं कटवाने चाहिए। अगर कोई ऐसा करता है तो पूर्वज नाराज हो सकते हैं। 

3. कई लोग रोजमर्रा में परफ्यूम या सेंट लगाते हैं लेकिन पितृ पक्ष के 16 दिनों में सेंट, इत्र या परफ्यूम लगाने से बचें। 

4. कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान तामसी भोजन और मांसाहार भोजन से बचना चाहिए और सात्विक भोजन ही करना चाहिए।  इसके अलावा कुछ मत यह भी कहते हैं कि पितृ पक्ष में बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए।

5.पुराणों में कहा गया है पितृ पक्ष के आखिरी दिन यानी आश्विन माह की अमावस्या को सभी पूर्वजों को ध्यान करके उनका श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध से वह प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। 

पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां

10 सितंबर 2022- पूर्णिमा का श्राद्ध

11 सितंबर 2022 - प्रतिपदा का श्राद्ध

12 सितंबर 2022- द्वितीया का श्राद्ध

12 सितंबर 2022- तृतीया का श्राद्ध

13 सितंबर 2022- चतुर्थी का श्राद्ध

14 सितंबर 2022- पंचमी का श्राद्ध

15 सितंबर 2022- षष्ठी का श्राद्ध

16 सितंबर 2022- सप्तमी का श्राद्ध

18 सितंबर 2022- अष्टमी का श्राद्ध

19 सितंबर 2022- नवमी श्राद्ध

20 सितंबर 2022- दशमी का श्राद्ध

21 सितंबर 2022- एकादशी का श्राद्ध

22 सितंबर 2022- द्वादशी/संन्यासियों का श्राद्ध

23 सितंबर 2022- त्रयोदशी का श्राद्ध

24 सितंबर 2022- चतुर्दशी का श्राद्ध

25 सितंबर 2022- अमावस्या का श्राद्ध

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