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Kaal Bhairav Jayanti 2022: आखिर कब है काल भैरव जयंती? ये कैसे बने काशी के कोतवाल, यहां पढ़ें कथा

Kaal Bhairav Jayanti 2022: आखिर कब है काल भैरव जयंती कब? ये कैसे बने काशी के कोतवाल, यहां पढ़ें कथा

Kaal Bhairav Jayanti 2022: काल भैरव जंयती इस साल 16 नवंबर 2022 को मनाई जाएगी। बाबा भैरव को शिव जी का अंश माना जाता है, यह भोलेनाथ के पांचवे अवतार हैं. भैरव के दो स्वरूप हैं एक बटुक भैरव, जो शिव के बालरूप माने जाते है। यह सौम्य रूप में प्रसिद्ध है। 

 

 

वहीं दूसरे हैं काल भैरव जिन्हें दंडनायक माना गया है। अनिष्ट करने वालों को काल भैरव का प्रकोप झेलना पड़ता लेकिन जिस पर वह प्रसन्न हो जाए उसके कभी नकारात्मक शक्तियों, ऊपरी बाधा और भूत-प्रेत जैसी समस्याएं परेशान नहीं करती। 

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई। आइए जानते हैं।

शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार देवताओं ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी से पूछा कि इस संसार का सर्वश्रेष्ठ रचनाकर, विश्व का परम तत्व कौन है? ब्रह्माजी ने अपने द्वारा इस सृष्टि के सृजन की बात कहते हुए स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। 

वहीं भगवान श्रीहरि विष्णु ने कहा कि इस जगत का पालन हार मैं हूं इसलिए मैं ही परम अविनाशी तत्व हूं। ब्रह्मा और विष्णु खुद को ही श्रेष्ठ बता रहे थे ऐसे में देवताओं को जब इस सवाल का सही उत्तर नहीं मिला तो यह काम चारों वेदों को सौंपा गया।


चारों वेदों ने शिव को बताया सर्वश्रेष्ठ

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ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद चारों ने एक मत में कहा कि जो सर्वशक्तिमान हैं, सारे जीव-जंतु जिनमें समाहित है, भूत, भविष्य और वर्तमान जिनमें  समाया है, जिनका न कोई आदि है न अंत, जो अजन्मा है, जन्म-मरण के दुख से जिसका कोई नात नहीं, जिसकी पूजा से देवता, दानव, योग सभी पाप मुक्त हो जाते हैं। वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है। 

भगवान विष्‍णु ने तो वेदों की बात सहर्ष स्‍वीकार कर ली, लेकिन ब्रह्मा जी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वह खुद को सृष्टि का रचयिता मानने पर ही डटे रहे।


ब्रह्मा के इस कृत्य के बाद हुई काल भैरव की उत्पत्ति


वेदों की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी के पांचवे मुख ने शिव के निमित्त अपशब्द बोलना शुरू कर दिया। इस दौरान एक दिव्यज्योति प्रकट हुई, यह कोई और नहीं महादेव के ही रौद्र अवतार काल भैरव थे।

 शिव के इस रूप ने ब्रह्मा जी का पांचवा मुख धड़ से अलग कर दिया। उस दिन मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। काशी में जहां ब्रह्मा जी का सिर गिरा उसे कपाल तीर्थ कहा जाता है।


काल भैरव को लगा ब्रह्म हत्या का पाप


काल भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा। काल भैरव को काशी में ही इस पाप से मुक्ति मिली। शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया. तभी से काल भैरव यहां निवास करते हैं। इनकी पूजा के बिना भगवान विश्वनाथ की आराधना अधूरी मानी जाती है।


क्यों काटा था काल भैरव ने ब्रह्मा जी का पांचवा सिर?

ऐसा माना जाता है भैरव को प्रसन्न करना बहुत आसान है, वह अपने भक्तों की आराधना से बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं।

शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है।

एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है? इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का जवाब हासिल करने के लिए गए। सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे।

ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा “शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं”। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया “यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ है और वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता”।

 सामवेद ने उत्तर दिया “विभिन्न साधक और योगी जिसकी आराधना करते हैं वही सबसे श्रेष्ठ है और जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है, वो त्र्यंबकम यानि शिव है”। अथर्ववेद ने कहा “भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है, जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त करता है, मनुष्य की सारी चिंताएं हरता है, वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है”।

चारों वेदों के उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु और ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा।

उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके।

ब्रह्मा का कटा सिर अपने हाथ में लेकर भैरव विभिन्न तीर्थ स्थानों में गए, पवित्र नदियों में स्नान किया ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल सके। परंतु उन्होंने देखा कि ब्रह्म हत्या का पाप हर जगह उनका पीछा कर रहा है। लेकिन जैसे ही भैरव काशी पहुंचे, वैसे ही उनका पाप मिट गया।

भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं।

ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए। वेदों में जिस परमपुरुष को रुद्र बताया गया है, तंत्र शास्त्र में उसी रूद्र का भैरव के रूप से वर्णन किया गया है ।

अतः काशी में निवास व भ्रमण करने वाले लोगो भैरव कृपा के कारण यमराज से नहीं डरते। वरण काशी में कदम रखने से स्वयं यमराज भय खाते हैं। काशी में भैरव दर्शन से सभी अनिष्ट समाप्त होते हैं ।

भैरव या भैरो को तांत्रिक और योगियों का इष्ट देव कहते हैं। तंत्र साधक विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भैरो की उपासना करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भैरव, छाया ग्रह राहु के देवता हैं। इसलिए वे लोग जो राहु से मनोवांछित लाभ पाने के इच्छुक होते हैं वे भैरो की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।

नोट:- यह मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि livebharatnews.in किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।

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