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स्थापना दिवस आज: मध्यप्रदेश के इतिहास का गवाह है मोती महल, जहां पहले मुख्यमंत्री ने ली थी शपथ

स्थापना दिवस आज: मध्यप्रदेश के इतिहास का गवाह है मोती महल, जहां पहले मुख्यमंत्री ने ली थी शपथ

मोती महल का निर्माण 19 वीं शताब्दी में सिंधिया घराने के राजा जयाजीराव सिंधिया ने कराया था।  1947 में देश की आजादी के बाद मोतीमहल को मध्यभारत की विधानसभा बनाया गया था। मोती महल में 1203 कमरे, 52 चौक और 9 बावड़ियां हैं।

ग्वालियर: ग्वालियर के किले की पहचान सात समंदर पार भी बड़े अदब से होती है लेकिन ग्वालियर शहर किले के अलावा भी कई और चीजों के लिए प्रसिद्ध है। उन्हीं में से एक है मोती महल। रियासतकालीन दौर में  मोतीमहल सिंधिया राज्य का सचिवालय था।

आजादी के बाद 1947 में मध्यभारत राज्य की स्थापना के साथ मोतीमहल को विधानसभा बनाया गया। तत्कालीन राजप्रमुख जीवाजी राव सिंधिया ने मध्यभारत के पहले मुख्यमंत्री को शपथ दिलाई थी।

मोती महल का निर्माण 19 वीं शताब्दी में सिंधिया घराने के राजा जयाजीराव सिंधिया ने कराया था। कहा जाता है कि मोती महल और जयविलास पैलेस का निर्माण एक साथ कराया गया था।जय विलास पैलेस जहां महाराजा के रहने की जगह थी, तो वहीं मोती महल को प्रशासनिक कामकाज की देखरेख के लिहाज से तैयार किया गया।

यही वजह है कि इसे सिंधियाओं का सचिवालय भी कहा जाता है। सबसे अहम बात ये है कि कभी महाराजा की शान और शौकत की मिसाल रहा मोती महल आजादी के बाद विधानसभा बना था।

1947 में जब देश को आजादी मिली तो इसके बाद ग्वालियर को मध्य भारत की राजधानी बनाया गया। उस वक्त इसी मोती महल में मध्य भारत की विधानसभा बैठा करती थी। मध्य भारत में छोटी बड़ी 22 रियासतें शामिल थीं।

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राजनीतिक जानकारो ने बताया कि 1947 में तत्कालीन राजप्रमुख महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने मध्यभारत के पहले मुख्यमंत्री लीलाधर जोशी को शपथ दिलाई थी। सन् 1947 से 31 अक्टूबर 1956 तक मोतीमहल मध्यभारत राज्य की विधानसभा रही है।


राजशाही दौर में जयाजीराव सिंधिया ने मोती महल बनवाया था। महल में 1203 कमरे, 52 चौक और 9 बावड़ियां हैं। मोती महल के अंदर बने दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास में सामंतों के साथ बैठकें किया करते थे और रियासत की रीति-नीति तय होती थी।

मोती महल को मोती महल नाम दिए जाने की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। कहते हैं सिंधिया राजाओं को मोतियों का राजा कहा जाता था। लिहाजा जब उन्होंने इस महल का निर्माण कराया तो लोगों ने इसे मोती महल कहना शुरू किया और फिर इसका नाम मोती महल हो गया। मोती महल के अंदर जाकर देखें तो इसे मोती महल कहने में शायद ही किसी को गुरेज हो।

दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास की खूबसूरती इस कदर है कि बस देखते ही लोग मंत्रमुग्ध हो जाएं। दीवारों पर बाकायाद मोती के आकार की बनावट है। कहा तो ये भी जाता है कि दीवारों और छत पर बनी कला कृतियों पर असली सोने का पानी चढ़ा है।

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