Supreme Court's decision on Election Commission: चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अहम क्यों, इससे कितने बदलेंगे देश में होने वाले चुनाव?
Supreme Court's decision on Election Commission: सर्वोच्च अदालत ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पैनल बनाने का फैसला दिया। इस पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शामिल होंगे। यही पैनल मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। जबकि अंतिम फैसला राष्ट्रपति का ही होगा।
Supreme Court's decision on Election Commission: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पैनल बनाने का फैसला दिया।
इस पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शामिल होंगे। यही पैनल मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। जबकि अंतिम फैसला राष्ट्रपति का ही होगा।
कोर्ट के इस आदेश के बाद सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर ये फैसला इतना अहम क्यों है? इससे चुनावी प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा? क्या सरकार कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दे सकती है? ये फैसला कब से लागू किया जा सकता है? आइए समझते हैं...
पहले जानिए कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने की मांग को लेकर याचिका दायर हुई थी। इस पर गुरुवार को न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी।
https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2953008738960898" crossorigin="anonymous">जबकि, नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहेगा। पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल थे। खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सर्वसम्मत से सुनाया है।
ये फैसला अहम क्यों, इससे क्या-क्या बदलेगा?
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से बात की। अश्विनी ने 2017 में एक जनहित याचिका दायर कर चुनाव आयुक्त को और अधिक मजबूत और स्वतंत्र बनाने के लिए ठोस कदम की मांग की थी। इस याचिका में मुख्य चुनाव आयुक्त समेत अन्य आयुक्तों की नियुक्ति को भी पारदर्शी बनाने की बात कही गई थी।
उन्होंने बताया कि कोर्ट का ये फैसला देश के लिए क्रांति साबित होगा। देश में हर साल कोई न कोई चुनाव होते हैं और जीत या हार के बाद ज्यादातर राजनीतिक दल सीधे चुनाव आयोग पर आरोप लगाने लगते हैं। इससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे थे।
चूंकि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी सरकार के जरिए होती थी, इसलिए ये आरोप और भी ज्यादा लगने लगते थे। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव आयोग और देश में होने वाले चुनावों में तीन बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
स्वतंत्र होकर काम कर पाएगा चुनाव आयोग
जब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से होगी और पैनल की सिफारिशों पर होगी तो चुनाव आयोग स्वतंत्र होकर काम कर सकेगा। चूंकि आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में विपक्ष का नेता भी शामिल होगा, इसलिए चुनाव के बाद आयोग पर विश्वास बढ़ेगा।
राजनीतिक दलों और नेताओं पर हो सकेगी सख्त कार्रवाई
अब तक चुनाव के दौरान नेताओं, उम्मीदवारों पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। मामले भी दर्ज होते हैं और चुनाव आयोग में शिकायतें भी होती हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो पाती। भले ही चुनाव आयोग को स्वतंत्र कहा जाता है लेकिन हमेशा सत्ता पक्ष के दबाम में काम करने का आरोप भी लगता रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद चुनाव आयोग के पास रूल पॉवर भी आ गई है। ऐसे में आयोग स्वतंत्र होकर राजनीतिक दलों और नेताओं पर कार्रवाई कर पाएगा।
अनुभवी और चुनाव कराने के एक्सपर्ट बन पाएंगे आयुक्त
अभी तक सत्ता में बैठी पार्टी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त बनाती थी, चूंकि अब इनका चयन पैनल के जरिए होगा, ऐसे में नियुक्ति प्रक्रिया में कुछ योग्यता भी परखी जाएगी। इससे अनुभवी और चुनाव के एक्सपर्ट लोग इन पदों पर बैठ सकेंगे।
क्या कोर्ट के इस फैसले को सरकार चुनौती दे सकती है?
कोर्ट के किसी भी फैसले को चुनौती दी जा सकती है। इस मामले में केस थोड़ा अलग है। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने एकमत होकर फैसला सुनाया है। ऐसे में इतिहास देखें तो जब भी एकमत होकर कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कोई फैसला दिया है तो चुनौती के बाद भी वह कम ही बदला है। बल्कि न के बराबर बदलाव हुआ है।
इस मामले में भी ऐसा ही है। सरकार चुनौती दे सकती है, लेकिन कोर्ट का ये फैसला बदलना मुश्किल है। हां, संसद अगर चाहे तो कोर्ट का ये फैसला बदल सकती है।
कब तक लागू होगा ये फैसला?
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय बताते हैं, 'अगर सबकुछ सही रहा और कोर्ट में इसे दोबारा चुनौती नहीं दी गई तो मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की अगली नियुक्ति इसी पैनल के जरिए हो सकती है। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। मतलब इनके कामकाज पर अभी के फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा।'
अभी तक कैसे होती थी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं।
चुनाव आयुक्त का एक तय कार्यकाल होता है, जिसमें 6 साल या फिर उनकी उम्र (जो भी ज्यादा हो) को देखते हुए रिटायरमेंट दिया जाता है।
चुनाव आयुक्त के तौर पर कोई सेवानिवृत्ति की अधिकतम उम्र 65 साल निर्धारित की गई है। यानी अगर कोई 62 साल की उम्र में चुनाव आयुक्त बनता है तो उन्हें तीन साल बाद ये पद छोड़ना पड़ेगा।
कैसे हटते हैं चुनाव आयुक्त?
रिटायरमेंट और कार्यकाल पूरा होने के अलावा चुनाव आयुक्त कार्यकाल से पहले भी इस्तीफा दे सकते हैं और उन्हें हटाया भी जा सकता है। उन्हें हटाने की शक्ति संसद के पास है। चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जजों की ही तरह वेतन और भत्ते दिए जाते हैं।