सांस्कृतिक उत्सव लोक संस्कृति के आईने में बनारस कार्यक्रम का आयोजन

वाराणसी। उत्तर प्रदेश क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, प्रयागराज आयोजक - महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोध एवं अध्ययन केंद्र, संस्था वाराणसी में सांस्कृतिक उत्सव के तहत परिचर्चा, नाटक, गायन, वादन तथा नृत्य एकल व सामूहिक का आयोजन 28 फरवरी तथा 1मार्च को 2025 को चित्रकूट आश्रम, नक्खीघाट, सारंग चौराहा में संपन्न हुआ।
सांस्कृतिक उत्सव के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में परिचर्चा लोक संस्कृति के आईने में बनारस विषयक परिचर्चा में अध्यक्ष पद से काशी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुरेन्द्र प्रताप ने कहा कि विश्व स्तर पर बनारस का महत्व इसके विभिन्न स्वरूप पौराणिक धार्मिक भौगोलिक एवं ऐतिहासिक स्थित गंगा जी के किनारे इसकी अनूठी छटा इसे भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित करती है।
विशिष्ट अतिथि - राजेश गौतम निदेशक, दूरदर्शन व आकाशवाणी ने कहा बनारस घराने की अपनी खुद की नृत्य एवं संगीत की परंपरा है इस लोक संगीत और लोक नाटक विशेष रामलीला का एक बहुत समृद्ध भंडार है। संगीत समारोह मेलों , त्योहारों अखाड़ों एवं खेल की समृद्ध परंपरा से परिपूर्ण है काशी अपना वक्तव्य देते हुए डॉ श्रद्धानंद ने कहा कि बनारस साहित्य , कला , नृत्य और संगीत से बढ़कर आध्यात्मिकता और कलात्मक Pविरासत का प्रतीक है। स्कूलों, अकादमियों और सांस्कृतिक उत्सव के माध्यम से पोषित यहां की कला , अतीत और वर्तमान को जोड़ती है और वाराणसी की विरासत को संरक्षित करती है।
मुख्य अतिथि पद से संबोधित करते ही आकर्षण का केंद्र रहा है।आचार्य शुक्लअपने साहित्य में लोकमंगल को महत्व देते हैं। यहाँ की गली मोहल्ले में हर प्रदेश की संस्कृति के दर्शन होते हैं जिसका आधार लोकमंगल है। बनारस की लोकगायकी ,ठुमरी, टप्पा, कजरी ने पूरे देश में शास्त्रीय गायन के समकक्ष जगह बनाई है।साहित्य, संगीत, कला का उद्गम स्थल रहा है काशी। अनूठे लक्खी मेलों का शहर है बनारस। वरिष्ठ नवगीतकार सुरेन्द्र बाजपेयी ने कहा जब लोक मंगल की परम्पराएँ रीति रिवाज के साथ जारी रहती हैं तो लोक-संस्कृति समृद्ध होती है। बनारस इस बात का साक्षात् प्रमाण है। डाॅ मञ्जरी पाण्डेय ने लोक-संस्कृति के आइने में बनारस को देखनै के लिये बौद्ध धर्म को भी देखना, समझना पड़ेगा।
धरोहरों से लेकर बौद्ध रीति परंपराओं में उपयोग में आने वाले खास रेशमी परिधानों, खाता ,पात्र आदि लखौरी ईंटों से लेकर बनारस के कला कौशल, रेशम, धातुएं और काष्ठकलाओं जिनका उपयोग आज भी पारंपरिक तरीके से हो रहा है जो आज भी अपसंस्कृति के प्रभाव से बचा है।अपने वक्तव्य में विशिष्ट अतिथि के रुप प्रो मंजुला चतुर्वेदी ने कहा कि लोक संस्कृति के आईने में जब हम बनारस को देखते हैं तो हम इसे बहुत समृद्ध पाते हैं चाहे वह कला की दृष्टि हो, चाहे संगीत की अथवा लोक साहित्य की लोक संस्कृति सर्वत्र अपने समृद्ध स्वरूप में विराजमान रही है जिसने जीवन को जीने के मूल मंत्र दिए हैं किंतु वर्तमान समय में अपसंस्कृति के प्रभाव से लोक जीवन के प्रभाव छिन्न-भिन्न हुए हैं जिनको पुनर्जीवित करना अथवा उनका संरक्षण करना हमारे जीवन की आवश्यकता है।
अपने वक्तव्य में प्रो रचना शर्मा ने कहा प्रो. रचना शर्मा ने कहा कि आदि देव शिव की नगरी काशी एक विलक्षण नगरी है l शिव लोक के देवता हैं इसलिए काशी भी लोक संस्कृति में रंगा हुआ सात वार नौ त्योहार का शहर है। जहाँ शिव के द्वारा पार्वती का गौना करा कर लाने का भी लोकोत्सव मनाया जाता है l
इस अवसर पर काशी के वरिष्ठ साहित्यकार और रंगकर्मी उपस्थित रहे। लोक साहित्यिक गोष्ठी में क्षेत्र की महिलाओं ने भी लोकगीत व लोक नृत्य का झूम झूम कर आनंद लिया।
द्वितीय सत्र के सांस्कृतिक उत्सव में गायन , नृत्य व वादन में योगेश कुमार तबला वादक, प्रशांत साहनी गायक , लोक गायिका सरोज वर्मा, हारमोनियम नागेंद्र शर्मा, सुभाष कनौजिया नाल वादन, अनूप मिश्रा गायन , लोक-नृत्य समृद्धि श्रीवास्तव, नगर निगम के ब्रांड एंबेसडर अमित श्रीवास्तव ने जटायु की सद्गति नामक नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की।
द्वितीय दिवस 1 मार्च 2025 को मुख्य अतिथि प्रो मंजुला चतुर्वेदी तथा विशिष्ट अतिथि डॉ श्रद्धानंद रहे। स्मृति चिन्ह और अंग वस्त्र से उनका स्वागत सचिव ने किया।
सांस्कृतिक उत्सव के अंतर्गत नाट्य मंचन तथा समूह नृत्य प्रस्तुत किया गया। जिसमें प्रेमचंद के नाटक बेटी का धन की नाट्य प्रस्तुति हुई। नाट्य रूपांतरण प्रो अरुण जैन तथा निदेशक डॉ शुभ्रा वर्मा ने किया। शुभ्रा वर्मा के निर्देशन में ही रेलिया बैरन और होली नृत्य की प्रस्तुति हुई।
सभी 50-55 कलाकारों को अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह और सर्टिफिकेट मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि द्वारा प्रदान किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रो रचना शर्मा, स्वागत संस्था सचिव डॉ संगीता श्रीवास्तव तथा संयोजन बी एल प्रजापति व कृष्ण मुरारी ने किया।