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श्रीलंकाई नौसेना द्वारा पकड़े गए भारतीय मछुआरे रिहा, केंद्र ने SC में बताया

श्रीलंकाई नौसेना द्वारा पकड़े गए भारतीय मछुआरे रिहा, केंद्र ने SC में बताया

पीठ ने कहा, "हम अंतरराष्ट्रीय संधियों के मुद्दों में नहीं पड़ सकते।"

 

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका का निपटारा किया, जिसमें भारत संघ को गिरफ्तार किए गए भारतीय मछुआरे और उनकी मशीनीकृत नाव को रिहा करने के लिए श्रीलंका सरकार के अधिकारियों के साथ बातचीत करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

 

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने संघ द्वारा दायर की गई स्टेटस रिपोर्ट पर विचार करने के बाद बताया गया कि दिसंबर, 2021 में श्रीलंकाई नौसेना द्वारा पकड़े गए सभी 68 भारतीय मछुआरों को रिहा कर दिया गया और भारत वापस भेज दिया गया। मामले को लंबित रखने का कोई कारण नहीं है।

 

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने अदालत से भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा से संबंधित मुद्दे पर गौर करने का अनुरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी घटनाएं हुईं।

 

इस पर पीठ ने कहा, "हम अंतरराष्ट्रीय संधियों के मुद्दों में नहीं पड़ सकते।"

 

पीठ ने वकील से कहा कि मछुआरों की मशीनीकृत नौकाओं की रिहाई के संबंध में क्षेत्राधिकारी अदालत का दरवाजा खटखटाएं। उकक्तम न्यायालय के समक्ष मुद्दा उन मछुआरों के संबंध में था, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था और

श्रीलंकाई नौसेना द्वारा 18 से 20 दिसंबर, 2021 के बीच मछली पकड़ने के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा को पार करने के आधार पर 10 नौकाओं को जब्त कर लिया गया था।

 

याचिकाकर्ता ने कहा कि तमिल मछुआरे हमेशा कच्चातीवू द्वीप के आसपास मछलियां पकड़ते हैं, जो भारत संघ के नियंत्रण में था, लेकिन इसे श्रीलंका सरकार को सौंप दिया गया, जिसने भारतीय मछुआरों को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

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बेरुबारी फैसले का हवाला देते हुए याचिका में यह तर्क दिया गया कि 1974 में भारतीय प्रधानमंत्री और श्रीलंका के प्रधानमंत्री के बीच हस्ताक्षरित समझौता अमान्य है, क्योंकि इसे पहले नहीं रखा गया और न ही इस पर संसद और जनता की राय ली गई। इस समझौते द्वारा भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार को द्वीप सौंप दिया था।

 

याचिका में आरोप लगाया गया कि श्रीलंकाई नौसेना ने कच्छथीवू द्वीप को केंद्र में रखा और भारतीय मछुआरों और उनकी नावों और जालों पर हमला कर उन्हें नष्ट कर रही है।

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि तमिलनाडु सरकार ने भारतीय मछुआरों की सुरक्षा के लिए 3 मई, 2015 को अपनी विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया और इसे केंद्र सरकार को भेजा, लेकिन केंद्र सरकार इस संबंध में कोई कार्रवाई करने में विफल रही।

 

याचिका में कहा गया कि 100 से अधिक मछुआरों को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया और श्रीलंकाई जेल में रखा गया, जहां उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है, जो मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।

यह कहा गया कि यदि स्थिति बनी रही तो भारतीय मछुआरों का भविष्य सवालों के घेरे में आ सकता है। याचिकाकर्ता ने इस प्रकार भारत सरकार को मछुआरों और उनकी नौकाओं की रिहाई के लिए बातचीत करने और श्रीलंकाई नौसेना के कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने की प्रार्थना की।

याचिका में आगे यह निर्देश देने की प्रार्थना की गई कि भारतीय नौसेना जहाज अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पर भारतीय मछुआरों को सुरक्षा प्रदान करे।

 

याचिकाकर्ता ने इस प्रकार भारत सरकार को मछुआरों और उनकी नौकाओं की रिहाई के लिए बातचीत करने और श्रीलंकाई नौसेना के कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने की प्रार्थना की।

याचिका में आगे यह निर्देश देने की प्रार्थना की गई कि भारतीय नौसेना जहाज अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पर भारतीय मछुआरों को सुरक्षा प्रदान करे।

केस : के के रमेश बनाम भारत संघ और अन्य।

 

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