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EWS Reservation in India: सुप्रीम कोर्ट में EWS के खिलाफ याचिका, सरकार ने कहा आर्थिक न्याय की अवधारणा के अनुकूल है EWS Reservation

EWS Reservation: सुप्रीम कोर्ट में EWS के खिलाफ याचिका, सरकार ने कहा आर्थिक न्याय की अवधारणा के अनुकूल है EWS Reservation

संविधान एक जीवंत दस्तावेज है उसकी उसी तरह से व्याख्या होनी चाहिए। संसद ने अगर महसूस किया कि अनुच्छेद 15(4) और 15(5) (ये अनुच्छेद एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण का प्रविधान करते हैं) के अलावा भी आकांक्षी वर्ग है, युवा हैं (ईडब्ल्यूएस) जिन्हें जरूरत है और उनके लिए अगर सकारात्मक कदम उठाया गया है और प्रविधान किया गया है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। संविधान की प्रस्तावना आर्थिक मजबूती देने की बात करती है।

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के संविधान संशोधन को सही ठहराते हुए कहा कि यह आर्थिक न्याय की अवधारणा के अनुकूल है।

केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि उसे मजबूती प्रदान करता है।

संविधान की प्रस्तावना में भी आर्थिक न्याय की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रविधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को चुनौती दी गई है।

 याचिकाओं में ईडब्ल्यूएस आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करने वाला बताते हुए रद करने की मांग की गई है। इस मामले पर आजकल प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

गुरुवार को केंद्र सरकार और आर्थिक आरक्षण का समर्थन करने वाली कुछ राज्य सरकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा गया।

केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा का नियम ऐसा नहीं है जिसे बदला न जा सके। 50 प्रतिशत का सामान्य नियम है,

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लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में इसे बदला जा सकता है और जो नियम बदला जा सकता हो, लचीला हो उसे संविधान का मूल ढांचा नहीं कहा जा सकता।

तुषार मेहता ने कहा कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है उसकी उसी तरह से व्याख्या होनी चाहिए। संसद ने अगर महसूस किया कि अनुच्छेद 15(4) और 15(5) (ये अनुच्छेद एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण का प्रविधान करते हैं) के अलावा भी आकांक्षी वर्ग है,

युवा हैं (ईडब्ल्यूएस) जिन्हें जरूरत है और उनके लिए अगर सकारात्मक कदम उठाया गया है और प्रविधान किया गया है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। संविधान की प्रस्तावना आर्थिक मजबूती देने की बात करती है।

मेहता ने कहा कि संविधान संशोधन को संविधान के अन्य मौजूद उपबंधों में कही गई बातों के आधार पर नहीं परखा जाएगा, उसे सिर्फ संविधान के मूल ढांचे की कसौटी पर ही परखा जाएगा। गुजरात सरकार की ओर से पेश वकील कानू अग्रवाल ने भी आर्थिक आधार पर गरीबों के आरक्षण को सही ठहराया।

कोर्ट ने भी आर्थिक आरक्षण के पक्ष में बहस कर रहे वकीलों से कई सवाल पूछे। पीठ ने कहा कि संविधान संशोधन को चुनौती देने वाले भी मानते हैं कि सामान्य वर्ग में भी गरीब लोग हैं,

लेकिन उनका कहना है कि उन्हें छात्रवृत्ति या फीस में छूट देकर अन्य तरह से मदद दी जा सकती है ताकि वे अपनी पढ़ाई कर सकें। पर आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए आरक्षण की शायद जरूरत नहीं है।

पीठ ने कहा कि आरक्षण के बारे में पारंपरिक अवधारणा आर्थिक सशक्तीकरण की नहीं, बल्कि सामाजिक सशक्तीकरण है। ये आर्थिक स्तर उठाने के लिए नहीं है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि आर्थिक स्थिति स्थायी नहीं होती, वह बदलती रहती है। जो चीज अस्थायी है, उसे स्थायी नहीं कहा जा सकता जबकि सामाजिक स्थिति कई बार पीढ़ी दर पीढ़ी भेदभाव के कारण होती है।

शोषित वर्ग को ऊपर उठने के लिए मदद की जरूरत होती है यह एक अपवाद को जन्म देता है, लेकिन सवाल है कि और कितनों को ऐसे जोड़ा जाएगा।

अगर सरकार कहती है कि यह एक विशेष वर्ग है तो इसमें कोई रोक नहीं होगी कि दूसरा भी वर्ग है। ये चलता ही जाएगा, ओपन कैटेगरी से निकलता जाएगा। मामले में मंगलवार को फिर सुनवाई होगी।  

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