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नवाज़ शरीफ़ की 4 साल बाद पाकिस्तान वापसी, नवाज ने अदालत से मांगी प्रोटेक्टिव बेल

नवाज़ शरीफ़ की 4 साल बाद पाकिस्तान वापसी, नवाज ने अदालत से मांगी प्रोटेक्टिव बेल 
नवाज शरीफ के पाकिस्तान लौटने से पहले ही कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दी गई है और उसमें अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है, याचिका में कहा गया है कि नवाज पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, लेकिन जब देश अर्थव्यवस्था और अन्य मोर्चों पर अब तक के सबसे बुरे संकट के दौर से गुजर रहा है तो वह देश लौट रहे हैं  

पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) अध्यक्ष ब्रिटेन में अपने चार साल के स्व-निर्वासन को समाप्त करते हुए 21 अक्टूबर को पाकिस्तान लौटने वाले हैं, नवाज़ शरीफ़  इससे पहले जुलाई 2018 में अपनी बेटी मरियम नवाज़ शरीफ़ के साथ चुनावों से एक महीना पहले देश लौटे थे. तब वो गिरफ़्तार होने के लिए वापस आए थे और पाकिस्तान में उतरते ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था. इस बार भी वो ऐसी ही स्थिति में होंगी और उन्हें अदालत के सामने आत्मसमर्पण करना होगा, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की शनिवार को स्वदेश वापसी से पहले उनके वकीलों ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में संरक्षण जमानत याचिका दायर कर अधिकारियों को उनके यहां पहुंचने पर गिरफ्तार करने से रोकने का अनुरोध किया है. शरीफ (73) को एवेनफील्ड और अल-अजीजिया मामलों में दोषी ठहराया गया था और तोशाखाना वाहन मामले में भगोड़ा अपराधी घोषित किया गया था. तोशाखाना मामला इस्लामाबाद में एक जवाबदेही अदालत के समक्ष लंबित है.

नवाज जब 2019 में इलाज के लिए ब्रिटेन गये थे तो इन मामलों में जमानत पर थे. नवाज़ शरीफ़ की तरफ से याचिका में कहा गया है कि नवाज पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, लेकिन जब देश अर्थव्यवस्था और अन्य मोर्चों पर अब तक के सबसे बुरे संकट के दौर से गुजर रहा है तो वह देश लौट रहे हैं. अदालत से न्याय के हित में शरीफ को संरक्षण जमानत देने की गुहार लगाई गयी है. इस्लामाबाद उच्च न्यायालय अगले दो दिन में याचिका पर सुनवाई कर सकता है

नवाज की याचिका के अनुसार नवाज ने अदालत में आत्मसमर्पण करने से पहले संरक्षण जमानत का अनुरोध किया है. याचिका में अनुरोध किया गया है कि इस्लामाबाद उच्च न्यायालय अधिकारियों को नवाज को हवाईअड्डे पर गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दे ताकि वह अदालत में आत्मसमर्पण कर सकें. इसमें कहा गया है कि नवाज स्वास्थ्य कारणों से समय पर नहीं लौट सके और कोविड-19 महामारी के कारण सेहत संबंधी समस्या और बढ़ गयी थी.

गौरतालाब है की 2019 में ब्रिटेन के लिए जाने से पहले उन्होंने अदालत को जो वचन दिया था, उसका उन्होंने उल्लंघन किया और वो लंबे समय तक अनुपस्थित रहे. इसलिए अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया था, उनकी पार्टी फिलहाल इसका क़ानूनी विकल्प तलाश रही है और उसे उम्मीद है कि वो नवाज़ शरीफ़ के लिए ज़मानत हासिल कर लेगी. ऐसे में नवाज़ शरीफ़ को अदालत के समक्ष सरेंडर करने से पहले अपने परिवार से मिलने और समर्थकों को संबोधित करने का वक़्त मिल सकता है, हालांकि नवाज़ शरीफ़ के सामने परिस्थितियां ऐसी ही लग रही हैं जैसी की साल 2018 में थीं. हालांकि वास्तविकता में बहुत कुछ बदल चुका है.

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सबसे पहले तो देश की सेना के साथ उनकी पार्टी का रिश्ता बदल गया है. 2018 में उनकी पार्टी और देश की सेना के बीच टकराव था. पाकिस्तान में सेना को ही असली किंगमेकर माना जाता है. तब सेना इमरान ख़ान को सत्ता में लाने पर आमदा थी और पीएमएल (एन) का आरोप है और कई राजनीतिक टिप्पणीकार भी ये मानते हैं कि अदालतों की मदद से, ये सुनिश्चित किया गया कि पीएमएल-एन के शीर्ष नेता को चुनाव ना लड़ने के लिए क़ानूनी रूप से मजबूर कर दिए जाए.

अब परिस्थितियां उलट चुकी हैं और 9 मई के घटनाक्रमों के बाद इमरान ख़ान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ सेना की नाराज़गी का सामना कर रही है. इस दिन इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद उनके समर्थकों ने सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे और कई जगह आगज़नी की घटनाएं हुई थी.

अल कादिर ट्रस्ट भ्रष्टाचार मामले में इमरान ख़ान को 9 मई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट से हिरासत में ले लिया गया था. 9 मई को पाकिस्तान की सेना का 9/11 कहा जाता है. इस दिन ने पीटीआई और पाकिस्तान की सेना के रिश्तों को भी बदल दिया.राजनीतिक टिप्पणीकार मुनीब फ़ारूक़ की राय में इमरान ख़ान ही 9 मई के घटनाक्रम के लिए ज़िम्मेदार हैं. वो कहते हैं कि ये एक तथ्य है कि इमरान ख़ान सेना प्रमुख के ख़िलाफ़ साजिश कर रहे थे. वो मौजूदा सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर की नियुक्ति को रोकना चाहते थे- और इमरान ख़ान ने उनके ख़िलाफ़ साज़िश रची थी.

मुनीब कहते हैं, “इमरान ख़ान को सेना के भीतर से समर्थन हासिल था और पूर्व सेना प्रमुख जनरल बाजवा इस बात से वाक़िफ़ थे. इमरान ख़ान ने पिछले साल नवंबर में लॉन्ग मार्च की घोषणा की थी, उन्होंने ऐसा जनरल आसिम मुनीर की नियुक्ति को प्रभावित करने के लिए किया था. इमरान ख़ान ने जनरल के क़रीबी अधिकारियों को बदनाम करने के लिए एक सुनियोजित अभियान भी चलाया. उन्होंने डर्टी हैरी, मीर जाफ़र, मीर सादिक़ जैसे शब्दों का जनरलों के लिए सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल भी किया.”

इससे सेना में इमरान के प्रति मूड बदल गया. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी को लगा कि इमरान और सेना का टकराव उनके लिए मौक़ा है और वो इसका फ़ायदा उठाना चाहते थे.

पीएमएल-एन के पंजाब प्रांत के अध्यक्ष राणा सनाउल्लाह ये स्वीकार कर चुके हैं कि पार्टी का सेना के साथ रिश्ता और सहजता मायने रखती है. उन्होंने कहा, “पिछली बार जब मियां नवाज़ शरीफ़ को 2018 में देश वापस लौटना पड़ा था, हमारे समर्थकों को एयरपोर्ट तक भी नहीं आने दिया गया था. हमें उम्मीद है कि इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा.”नवाज़ शरीफ़ की अनुपस्थिति में सिर्फ़ सेना और इमरान ख़ान के बीच रिश्ते ही नहीं बिगड़े हैं बल्कि और भी बहुत कुछ हुआ है.

 

 

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