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Brazil President Election 2022 :वामपंथी लूला डा सिल्वा फिर बने ब्राजील के राष्ट्रपति...

Brazil President Election 2022 :वामपंथी लूला डा सिल्वा फिर बने ब्राजील के राष्ट्रपति

लूला को 50.83 फीसदी वोट मिले, प्रतिद्वंद्वी बोल्सोनारो को 49.17 फीसदी वोट प्राप्त करते हुए जायर बोल्सोनारो को हराकर लूला डा सिल्वा तीसरी बार ब्राजील के राष्ट्रपति बने। लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने इस चुनाव में अपनी पिछली उपलब्धियों को गिनाया था।

 

साओ पाउलो: ब्राजील में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में वामपंथी ‘वर्कर्स पार्टी’ के लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने निवर्तमान राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो को हरा दिया है। निर्वाचन प्राधिकरण ने रविवार को यह जानकारी दी।

 

 

प्राधिकरण के मुताबिक आम चुनाव में पड़े कुल मतों में से 98.8 प्रतिशत मतों की गिनती के अनुसार लूला डा सिल्वा को 50.8 फीसद और बोलसोनारो को 49.2 प्रतिशत मत मिले। लूला डा सिल्वा 2003 से 2010 के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं।

 

लूला डा सिल्वा (77) को 2018 में भ्रष्टाचार के मामले में कैद की सजा सुनाई गई थी जिस वजह से उन्हें उस साल चुनाव में दरकिनार कर दिया गया था। इस कारण तत्कालीन उम्मीदवार बोलसोनारो की जीत का मार्ग प्रशस्त हुआ था।

76 वर्षीय लूला ने जनता से किया था ये वादा


न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार इस साल के चुनावों ने 156 मिलियन से अधिक लोगों को वोट डालने की अनुमति थी। 76 वर्षीय लूला ने बोल्सोनारो को पद से हटाने के अभियान पर ध्यान केंद्रित किया और अपने पूरे अभियान में अपनी पिछली उपलब्धियों को गिनाया।

उनके अभियान में एक नई कर व्यवस्था का वादा था जो उच्च सार्वजनिक खर्च की अनुमति देगा। इसके साथ ही उन्होंने ब्राजील से भुखमरी खत्म करने का संकल्प लिया, जो बोल्सोनारो सरकार के दौरान एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी थी।

बोल्सोनारो ने किया था ये वादा


67 वर्षीय बोल्सोनारो कंजर्वेटिव लिबरल पार्टी के तहत फिर से चुनावी दौड़ में थे। उन्होंने खनन बढ़ाने और सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण करने और ऊर्जा की कीमतों को कम करने के मुद्दे पर अपना अभियान केंद्रित किया था।

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विवादों से घिरे थे लूला


लूला भी विवादों से बचे नहीं हैं इसलिए उन्हें 2017 में सरकारी तेल कंपनी पेट्रोब्रास में व्यापक “ऑपरेशन कार वॉश” जांच से उपजे आरोपों पर भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दोषी ठहराया गया था।

लेकिन दो साल से कम समय की सजा के बाद सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मार्च 2021 में लूला की सजा रद्द कर दी जिससे उनका छठी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया।

चमगादड़ों की आबादी कम होना इंसानों के लिए चिंता का विषय, आखिर क्यों...?

रिपोर्ट में खुलासा एक चौथाई चमगादड़ों की जान बिल्लियों ने ली  साथ ही साथ चमगादड़ों को फंगस और व्हाइट नोज सिंड्रोम से भी खतरा हो गया है। इस बात को भी ध्यान रख कर आइसलैंड के कुछ शहरों में ‘कैट कर्फ्यू’ लागू किया गया।

कनाडा।  सिमोन फ्रेसर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कायली बायर्स का कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में शाम के समय आसमान में केवल कुछ चमगादड़ ही घूमते दिखेंगे। सालभर में यही वह समय होता है जब चमगादड़ों की कुछ प्रजातियां नजरों से ओझल हो जाती हैं।

सर्दी के मौसम में वे चट्टानों की संकरी दरारों या गुफाओं में आराम करते हैं। अच्छी बात यह है कि चमगादड़ों का इस तरह गायब होना कुछ समय के लिए होता है। चमगादड़ स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। वे पर्यावरण में पोषक तत्वों के प्रसार और पौधों के परागण में मददगार साबित होते हैं वे कीटों को भी खाते हैं, जिससे खेती में कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है।

चमगादड़ हमारे पारिस्थितिक तंत्र को बहुत अधिक फायदा पहुंचाते हैं चूंकि वे अंधेरे में अपनी गतिविधियां करते हैं इसलिए हम उनकी तरफ से मिलने वाली मदद से अकसर अवगत नहीं होते। मौसमी तौर पर चमगादड़ों के गायब होने से ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि दशकों से उत्तरी अमेरिका में चमगादड़ों की आबादी में गिरावट देखी जा रही है।

जंगलों की कटाई से उनका आश्रय स्थल घटना, शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार से चमगादड़ों के लिए उपयुक्त जगह की कमी होती जा रही है साथ ही फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव के कारण बड़ी संख्या में चमगादड़ों की मौत भी हो जाती है।

चमगादड़ों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि फंगस और ‘स्यूडोगाइमनोस्कस’ के कारण ‘व्हाइट नोज सिंड्रोम’ फैलता है। इस घातक फंगस के कारण उत्तर अमेरिका में 60 लाख से अधिक चमगादड़ों की जान जा चुकी है।

पूर्वी कनाडा में ‘व्हाइट नोज सिंड्रोम’ विशेष रूप से विनाशकारी साबित हुआ है जहां इसके कारण भूरे रंग के छोटे मायोटिस (मायोटिस ल्यूसिफुगस) और नॉर्दर्न मायोटिस (मायोटिस सेप्टेंट्रियोनालिस) की आबादी में 90 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।

फंगस का प्रकोप पश्चिमी देशों में भी बढ़ रहा है जहां जुलाई में सस्केचेवान में इसका पहला मामला सामने आया था। ‘व्हाइट नोज सिंड्रोम’ ब्रिटिश कोलंबिया में नहीं पाया गया है, लेकिन इसका खतरा मंडरा रहा है।

कायली बायर्स का कहना है कि हमारी शोध टीम कनाडाई वन्यजीव स्वास्थ्य सहकारी विभाग की ब्रिटिश कोलंबिया इकाई में एक दशक से अधिक समय से वन्यजीव स्वास्थ्य पर काम कर रही है।

ब्रिटिश कोलंबिया में रहने वाले चमगादड़ों की 15 प्रजातियों के सामने आने वाले खतरों को समझने के लिए, हमने 2015 और 2020 के बीच मारे गए 275 चमगादड़ों पर अध्ययन किया। हमने पाया कि मृत्यु के सबसे सामान्य कारण मानव गतिविधि से जुड़ा है।
 

यह जानकारी इस समय शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के बीच चमगादड़ों की आबादी का पता लगाने में हमारी मदद कर सकती है। चमगादड़ की जान बचाने के लिए हमें यह जानना होगा कि उनकी मौत कैसे होती है।

कायली बायर्स का कहना है कि हमने जिन चमगादड़ों पर अध्ययन किया उनमें से एक चौथाई की जान बिल्लियों ने ली थी। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है- पालतू बिल्लियां वन्यजीवों की जान लेने के मामले में कुख्यात होती हैं।

ऑस्ट्रेलिया में एक अनुमान के मुताबिक आजाद घूमती पालतू बिल्लियां हर साल 39 करोड़ जंतुओं को मार डालती हैं। ये बिल्लियां न केवल चमगादड़ों के लिए बल्कि जैव विविधता के लिए भी खतरा पैदा करती हैं। आइसलैंड के कुछ शहरों ने अपने यहां पक्षियों की घटती आबादी को बचाने के लिए ‘कैट कर्फ्यू’ लागू किया है।
 


 

अध्ययन में पता चला है कि 25 प्रतिशत चमगादड़ों की मौत इंसान के इस्तेमाल में आने वाली चीजों जैसे कारों या इमारतों से टकराने के कारण हुईं। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह से मरने वाले चमगादड़ों में ज्यादातर के नर होने की संभावना है।

लेकिन शोध से पता चलता है कि नर चमगादड़ मादा चमगादड़ों की तुलना में दूर तक उड़ान भर सकते हैं, जिससे इनके वाहन या इमारतों से टकराने की आशंका बढ़ जाती है।

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