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वाराणसी की मशहूर Malaiyo कैसे होती है तैयार? इसमें छिपा है सेहत का खजाना

वाराणसी की मशहूर Malaiyo कैसे होती है तैयार? इसमें छिपा है सेहत का खजाना
Varanasi में ओस की बूंदों से तैयार होती है बनारसी मिठाई 'Malaiyo', इसमें छिपा है सेहत का खजाना

वाराणसी। बनारस अपने जायके के लिए दुनियाभर में फेमस है। नवम्बर के महीनें में गुलाबी ठंड के बीच यहां ओस की बूंदों से खास बनारसी मिठाई मलाइयों (Malaiyo) को तैयार किया जाता है। 

मलाइयों की मिठास ऐसी है कि इसका स्वाद चखने वाला हर कोई इसका दीवाना हो जाता है। नवम्बर से फरवरी महीने के बीच ही लोग इसका स्वाद चख पाते हैं।

यदि आप भी इस बनारसी मिठाई का स्वाद चखना चाहते हैं तो आज ही बनारस आइए।

वाराणसी में लंका, रथयात्रा, गोदौलिया, चौक, मैदागिन क्षेत्र में मलाइयों के कई दुकाने हैं। जहां गुलाबी ठंड में सुबह से शाम तक इसके कद्रदानों की भीड़ लगी रहती है। ये बनारसी मिठाई सेहत के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद है।

ओस की बूंदों से इसे तैयार किया जाता है लिहाजा इसके सेवन से आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। दुकानदार मनोज कुमार यादव ने बताया कि इस देशी मिठाई का स्वाद चखने के लिए दूर दूर से लोग यहां आते हैं।

बेहद खास है इसका स्वाद


मलाइयों का स्वाद चख रही गरिमा ने बताया कि उन्होंने इस बनारसी मिठाई के बारे में सुना था अब बनारस आई हैं तो उन्होंने इसका स्वाद चखा है।

उन्होंने बताया कि जितना सुना था मलाइयों का स्वाद उससे भी लाजवाब है। बताते चले कि मिट्टी के कुल्हड़ में इस मिठाई को परोसा जाता है। जैसे ही इस मिठाई को जीभ पर रखते है इसकी मिठास मुंह में घुलने लगती है।

ऐसे तैयार होता है ये मिठाई


ठंड के मौसम में कच्चे दूध को ख़ौलाकर पूरी रात उसे खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। इसके बाद उसे मथनी से मथा जाता है। जिससे उसमें झाग पैदा होता है।

इसी झाग को अलग बर्तन में रखा जाता है। फिर उसमें केसर, इलाइची, पिस्ता, बादाम और ड्राई फ्रूट्स डालकर उसे कुल्हड़ में परोसा जाता है।

दूध से बनने वाली इस मिठाई को बनाने की शुरुआत सैकड़ों साल पहले बनारस से ही शुरू हुई थी। पहले कच्चे दूध को उबालकर खुले आसमान के नीचे ओस यानि कुहासे मे रखा जाता है।

फिर दूध को काफी मथने से निकले झाग में चीनी, केसर, पिस्ता, इलायची और मेवा मिलाया जाता है।


उन्होंने बताया कि भले ही रसोई में अत्याधुनिक मशीनें आ गई हो लेकिन बनारसी मलइयो को तैयार करने में आज भी पारंपरिक सील-लोढे का ही इस्तेमाल होता है।

दूध और ओस की बूंदों से तैयार होने की वजह से मलइयो सेहत और आंखों की रोशनी के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है।

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