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Zara Hatke Zara Bachke: कैसी है सारा अली खान और विक्की कौशल की 'जरा हटके जरा बचके'

Zara Hatke Zara Bachke: कैसी है सारा अली खान और विक्की कौशल की 'जरा हटके जरा बचके'

Zara Hatke Zara Bachke: 'देखो मैंने देखा है ये एक सपना फूलों के शहर में हो घर अपना' सुपरहिट गाना अपने घर की चाहत रखने वाले हर मध्यम वर्गीय जोड़े का सपना होता है, मगर अपने उस आशियाने को पाने के लिए कोई किस हद तक जा सकता है? यह एक पेचीदा सवाल है?

'लुका छिपी' और 'मिमी' जैसी चर्चित फिल्में दे चुके निर्देशक लक्ष्मण उटेकर मिडल क्लास कपल के इसी सपने के इर्द गिर्द अपनी फिल्म 'जरा हटके जरा बचके' बुनते हैं, मगर पात्रों के कमजोर चरित्र चित्रण के कारण वे दर्शकों को कहानी से जोड़ने में नाकाम रहते हैं।

हालांकि कहानी मजेदार नोट पर शुरू होती है। सौम्या दुबे चावला (सारा अली खान) और कपिल दुबे (विक्की कौशल) पिछले दो साल से शादीशुदा हैं। इनकी लव मैरिज हुई है और ये दोनों एक जॉइंट फैमिली में रहते हैं, जिसमें कपिल योगा गुरु है और सौम्या एक टीचर हैं।

इंदौर के इस खुशहाल जोड़े की दिक्कत ये है कि घर में मामा-मामी और उनके बच्चे के आने के कारण दोनों को अपनी शादीशुदा जिंदगी में प्रायवेसी नहीं मिल पा रही है और उन्हें घर के हॉल में सोना पड़ रहा है।


कॉमिडी-ड्रामा फिल्म की पकड़ तब मजबूत होती है, जब आप उनके चरित्रों के साथ दर्शकों को जोड़ पाते हैं। मगर यहां दिक्कत ये होती है कि दर्शक उन पात्रों से खुद को रिलेट नहीं कर पाता। किरदार टुकड़ों-टुकड़ों में दिलचस्प हैं, मगर उनमें डेप्थ की कमी नजर आती है। डायरेक्टर लक्ष्मण उटेकर मिडल क्लास जॉइंट फैमिली का एक मजेदार संसार रचते हैं, जहां कई जगहों पर हास्य के खूबसूरत पल आते हैं, मगर उनकी कहानी का कोर कमजोर साबित होता है।

सवाल ये उठता है कि एक खुशहाल मैरिड कपल किन मुश्किल हालात में घर पाने के लिए तलाक लेने का कठोर फैसला कर सकता है? फर्स्ट हाफ अपनी रफ्तार के साथ आगे बढ़ता है, मगर सेकंड हाफ में कहानी खिंची हुई लगती है।

कहानी में मामा-मामी के चरित्रों से कॉमेडी और इमोशन दोनों पैदा होते हैं, मगर अंत में इन किरदारों का उपयोग न होते देख निराशा होती है और क्लाइमैक्स में कहानी कमजोर पड़ जाती है। मनीष की एडिटिंग को कसा जा सकता था। संगीत फिल्म का खुशनुमा पहलू है। सचिन -जिगर के संगीत में कुछ गाने अच्छे बन पड़े हैं।


अभिनय की बात करें, तो विकी कौशल ने छोटे शहर के पैसे बचाने वाले लड़के की भूमिका में रंग जमाया है। उन्होंने इंदौर की बोली को भी सही ढंग से पकड़ा है। कॉमिक दृश्यों में वे मजे करवाते हैं और इमोशनल सीन्स में भी अच्छे साबित होते हैं।

सारा के साथ उनकी केमेस्ट्री जमी है। जहां तक सारा के अभिनय का सवाल है, उन्होंने अपनी साड़ी-चूड़ी और बिंदी लुक से अपने किरदार को मजबूत बनाने की पूरी कोशिश की है, मगर उन्हें अपनी डायलॉग डिलीवरी और इमोशंस पर थोड़ा और ध्यान देना होगा।

सहयोगी किरदारों में मामी की भूमिका निभाने वाली वाली कनुप्रिया पंडित ध्यान आकर्षित करती हैं। दरोगा के रूप में शारिब हाशमी और स्टेट एजेंट भगवान दास की भूमिका में इनामुलहक याद रह जाते हैं। इन दोनों ने ही अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। अन्य सहयोगी पात्र ठीक-ठाक हैं।


क्यों देखें-ओटीटी पर परिवार के साथ देखने के लिए यह फिल्म अच्छी साबित हो सकती है।

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