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कोरोना मरीजों को लेकर आई चौंकाने वाली स्टडी

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शोध बताती है कि जो लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं, उनमें ब्लड क्लॉटिंग और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। गैर-संक्रमितों की तुलना में संक्रमितों में मौत का खतरा भी ज्यादा होता है।

कोरोना से ठीक होने के बाद भी क्या कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं? इसका जवाब है- हां. लंदन की क्वींस मैरी यूनिवर्सिटी में एक स्टडी में कोरोना के बाद होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है.

ये शोध बताती है कि कोरोना से संक्रमित हो चुके लोगों में ब्लड क्लॉटिंग और दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा ज्यादा होता है।

इतना ही नहीं, गैर-संक्रमितों की तुलना में संक्रमितों में मौत का खतरा भी ज्यादा रहता है। क्वींस मैरी यूनिवर्सिटी ने ये स्टडी लंदन के 54 हजार से ज्यादा संक्रमित और गैर-संक्रमित व्यक्तियों पर की थी।

शोध में सामने आया कि ऐसे कोरोना मरीज, जो अस्पताल में भर्ती नहीं हुए, उनमें गैर-संक्रमितों की तुलना में ब्लड क्लॉटिंग का खतरा 2.7 गुना ज्यादा रहता है। इसके अलावा ऐसे मरीजों में मौत का खतरा भी गैर-संक्रमितों के मुकाबले 10.2 गुना ज्यादा पाया गया.

शोध में ये भी सामने आया कि जो लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं, उनमें दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, जिन कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती, उनमें ब्लड क्लॉटिंग का खतरा ज्यादा रहता है.

शोध में क्या आया सामने?

जिन कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उनमें गैर-संक्रमितों के मुकाबले ब्लड क्लॉटिंग और हार्ट डिसीज का खतरा ज्यादा रहता है।

अस्पताल में भर्ती होने वाले कोरोना मरीजों में गैरसंक्रमितों की तुलना में ब्लड क्लॉटिंग का 27.6 गुना, हार्ट फेल्योर का 21.6 गुना, स्ट्रोक का 17.5 और कार्डिक अर्थिमिया का 10 गुना खतरा ज्यादा रहता है। इतना ही नहीं, ऐसे कोरोना मरीजों में मौत का खतरा भी गैर-संक्रमितों के मुकाबले 118 गुना ज्यादा होता है।

इसी तरह जिन कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी, उनमें ब्लड क्लॉटिंग का खतरा 2.7 गुना ज्यादा होता है। ऐसे मरीजों की मौत का खतरा भी 10 गुना से ज्यादा रहता है।

शोध ये भी बताती है कि कोरोना से संक्रमित होने के 30 दिन के भीतर ब्लड क्लॉटिंग और दिल से जुड़ी बीमारी होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। ये खतरा कोरोना से रिकवर होने के बाद भी लंबे समय तक बना रह सकता है।

अब अगर क्वींस मैरी यूनिवर्सिटी की शोध ने चिंता बढ़ाई है, दूसरी तरफ कैलिफोर्निया के Smidt Heart Institute ने भी इसी विषय पर एक शोध की है।उस शोध में ये बात सामने आई है कि कोरोना की वजह से हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा बढ़ गया है।

रिसर्च के मुताबिक 24 से 44 एज ग्रुप के लोगों में हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा देखा गया है। आंकड़ा तो ये भी है कि कोरोना काल से पहले हार्ट अटैक मौत होने वाले लोगों की संख्या 1.44 लाख रही थी लेकिन कोरोना काल में ये आंकड़ा 1.64 लाख पहुंच गया यानी सीधे-सीधे 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

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