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मरवाही में रीडर सतपाल सिंह ने तहसीलदार के आदेश को दिखाया ठेंगा, दो महीने बाद भी तहसीलदार के आदेश का नहीं किया पालन

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मरवाही। एक ओर तो जहां छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित सभी नेता मंत्री व उच्च अधिकारीगणों द्वारा किसानों की राजस्व सम्बन्धी समस्याओं व अन्य परेशानियों का जल्दी निराकरण करने के आदेश दे रहे हैं तो वहीं मरवाही तहसील कार्यालय के रीडर (बाबू) ग्रेड के कर्मचारी उनके आदेशों को नजरअंदाज कर ठेंगा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

 

तहसील कार्यालयों में किसानों की मजबूरी का फायदा उठाने की बात कोई नई नहीं है, भूमि संबंधित कार्यों के लिए तहसील कार्यालय में प्रतिदिन किसानों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन किसानों को क्या पता उनका काम कितने महीनों में होगा।

 

 ऐसा ही एक मामला मरवाही विकासखंड के ग्राम पीपरडोल का है, जहां के एक किसान ने जनवरी 2022 में अपनी पैतृक भूमि संपत्ति के खाता बंटवारा के लिए तहसील न्यायलय में आवेदन किया था, जो कि मरवाही नायब तहसीलदार के अन्तर्गत अ - 27 प्रकरण चल रहा है, लेकिन आज एक वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी आज पर्यन्त तक आवेदक के प्रकरण का निराकरण नहीं हो पाया है, जबकि ऐसे प्रकरण के निराकरण लिए शासन के द्वारा न्यूनतम 6 माह व अधिकतम  माह की अवधि निश्चित की गई है।

आवेदक का कहना है कि अपने प्रकरण के संबंध में पेशी आते आते थक गया है, लेकिन संबंधित अधिकारी किस प्रकार कार्य करते हैं कि आज 1 वर्ष पर्यन्त भी मेरे भूमि खाता विभाजन का कार्य नहीं हो पाया है।

आवेदक के द्वारा बताया गया कि तहसीलदार व नायब तहसीलदार द्वारा तो बंटवारा संबंधित कार्यों व दस्तावेज तैयार करने के लिए तो आदेश कर दिया गया है, लेकिन आदेश के दो महीने बीत जाने के बाद भी वहां के संबंधित रीडर (बाबू) सतपाल सिंह द्वारा अपने उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन नहीं किया गया, आखिर ऐसा कौन सा विशेष कारण रहा, जिस वजह से सतपाल सिंह दो महीनों में भी तहसीलदार के आदेश का पालन नहीं कर पाए।

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वहीं आवेदक के द्वारा अपने प्रकरण के विषय में रीडर (बाबू) सतपाल सिंह से पूछने पर यह कहा जाता था कि आज कर दूंगा,  कल कर दूंगा करके किसान को घुमाया जाता था, जबकि एक दो बार आवेदक के सामने ही नायब तहसीलदार के द्वारा सतपाल सिंह को आदेश का पालन कर, ज्ञापन जारी करने के लिए भी कहा गया था, लेकिन उसके बाद भी रीडर (बाबू) सतपाल सिंह ने अपने उच्च अधिकारी की बात नहीं मानी।

जबकि शासन प्रशासन के आदेशानुसार संभागायुक्त व कलेक्टर द्वारा अधीनस्थ अधिकारियों कर्मचारियों को यह सख्त निर्देश है कि भूमि सम्बन्धित प्रकरणों में बार बार पेशी बुलाकर किसानों को बिल्कुल भी परेशान ना किया जाए, उनका कार्य अतिशीघ्र किया जाए, लेकिन यहां जमीनी हकीकत कुछ और ही है, मुख्य बात यह है तहसील कार्यालय के अधिकारी तो अपना कार्य कर देते हैं, लेकिन तहसील कार्यालय के रीडर (बाबू) जिन्हें अन्तिम कार्य करना होता है, वो किसानों को घुमाते रहते हैं।

अब पीड़ित किसान का कहना है कि अपने राजस्व समस्या निराकरण के लिए मैं तहसील कार्यालय के चक्कर लगा लगाकर थक गया हूं, अब उच्च अधिकारियों से गुहार लगाकर, जिस रीडर (बाबू) सतपाल सिंह के वजह से मेरे राजस्व सम्बन्धी कार्यों में देरी हुई उस पर कार्यवाही करने के लिए जिला कलेक्टर से शिकायत करूंगा।

अब देखने वाली बात यह रहेगी कि समाचार पत्र में इस खबर के प्रकाशन से जिला कलेक्टर एवं राजस्व विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही की जाएगी या फिर इस खबर को भी पढ़कर नजर अंदाज करके ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

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