पापा को नहीं चाहिए थी बेटी…, लेकिन वही बेटी बनी BHU की गोल्ड मेडलिस्ट
वाराणसी। कहते हैं किस्मत उन्हीं का साथ देती है, जो हालात से हार मानने के बजाय उनसे लड़ना सीख लेते हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की गोल्ड मेडलिस्ट बनीं श्रेया तिवारी की कहानी इसी जज़्बे, संघर्ष और आत्मविश्वास की मिसाल है।
कपसेठी क्षेत्र के कुरु गाँव की रहने वाली श्रेया तिवारी का जन्म एक साधारण ग्रामीण परिवार में हुआ। परिवार और समाज की सोच ऐसी थी कि बेटी का जन्म खुशी की वजह नहीं माना जाता था। कहा जाता है कि पिता को बेटी नहीं चाहिए थी, लेकिन समय ने करवट बदली और वही बेटी आगे चलकर पूरे परिवार, गाँव और जिले का नाम रोशन करने वाली बनी।
ग्रामीण परिवेश, सीमित आर्थिक संसाधन और सामाजिक दबावों के बीच श्रेया ने कभी अपने सपनों से समझौता नहीं किया। काशी नगरी में रहकर उन्होंने देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से Hospital Administration and Management विषय में अध्ययन किया और विश्वविद्यालय स्तर पर स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
यह सम्मान उन्हें BHU के 105वें दीक्षांत समारोह में प्रदान किया गया। वह क्षण केवल एक छात्रा की सफलता नहीं, बल्कि उन तमाम सोचों की हार थी, जो आज भी बेटियों को कमजोर मानती हैं।
श्रेया की यह उपलब्धि वर्षों की कड़ी मेहनत, अनुशासन और आत्मविश्वास का परिणाम है। पढ़ाई के साथ-साथ जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए उन्होंने खुद को लगातार बेहतर बनाया। असफलताओं से सीख लेकर आगे बढ़ना ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी।
वर्तमान में श्रेया तिवारी Hospital Administration and Management में MBA कर रही हैं। इसके साथ ही वे सरकारी सेवा में योगदान देने के उद्देश्य से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रही हैं। उनका सपना है कि वे स्वास्थ्य प्रशासन के क्षेत्र में कार्य कर आम लोगों को बेहतर, पारदर्शी और संवेदनशील स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा सकें।
श्रेया तिवारी की सफलता उन विद्यार्थियों और बेटियों के लिए प्रेरणा है, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर बड़े सपने देखने का साहस रखते हैं। उनकी कहानी यह संदेश देती है कि कठिन परिस्थितियां भी मजबूत इरादों के आगे टिक नहीं पातीं।
अपने इस स्वर्ण पदक को श्रेया तिवारी ने अपने परिवार, शिक्षकों और महामना मदन मोहन मालवीय की पावन नगरी काशी को समर्पित किया है। उनकी इस उपलब्धि से पूरे क्षेत्र में गर्व और उत्साह का माहौल है।
जो बेटी कभी बोझ समझी गई, आज वही समाज के लिए प्रेरणा बन चुकी है।