Gyanvapi Masjid Case: वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की आपत्ति खारिज की, हिंदू पक्ष की 3 मांगों पर कोर्ट करेगी सुनवाई, क्या अब हिंदुओं को मिल जाएगा ज्ञानवापी परिसर
ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने, शिवलिंग की पूजा का अधिकार देने और ज्ञानवापी में मुस्लिमों का प्रवेश प्रतिबंधित करने की मांग करने वाली याचिका को अदालत ने सुनवाई योग्य माना है। सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत में किरन सिंह इस बारे में याचिका दाखिल की थी।
गुरुवार को अदालत ने किरन सिंह की और से दाखिल वाद पर मुस्लिम पक्ष यानि अंजुमन इंजामिया मसाजिद की तरफ से वाद की पोषणीयता को ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत दी गई चुनौती को खारिज कर दिया और वाद को सुनवाई योग्य पाया।
कोर्ट ने इसी के साथ पक्षकारों को लिखित बयान दाखिल करने और वाद बिंदु तय करने के लिए दो दिसंबर की तिथि नियत कर दी। इस तारीख पर मुद्दे पर सुनवाई होगी कि पूजा की इजाजत मिले या नहीं। उधर श्रृंगार गौरी वाद की चार महिलाओं की तरफ से भगवान आदि विश्वेश्वर का मुकदमा श्रृंगार गौरी वाद के साथ सुनवाई किए जाने की अर्जी जिला जज की अदालत में दी है। जिस पर 21 नवंबर को सुनवाई होनी है।
इस मामले में बीते 15 अक्तूबर को ही अदालत में दोनों पक्षो की दलीलें पूरी हो गई थी। प्रकरण में वादिनी किरन सिंह की तरफ से ज्ञानवापी में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित करने, परिसर हिंदुओं को सौंपने और पूजा पाठ रागभोग की अनुमति मांगी गई थी।
इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि तीन मांगों से जुड़ा मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। इसकी सुनवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश दिया है कि मुकदमा सुनने योग्य है।
हिंदू पक्ष के वकील के अनुसार यह बहुत बड़ी सफलता है। हमारा केस पहले से ही बहुत मजबूत है। यहां पर भी वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता। अब हिंदू पक्ष अगली सुनवाई में ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की पूजा का अधिकार मांगेगा और परिसर का एक और सर्वे की मांग करेगा। वहीं मुस्लिम पक्ष सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ जिला जज की अदालत में जा सकता है।
विश्व वैदिक सनातन संघ के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह बिसेन की पत्नी किरन सिंह ने 24 मई को वाद दाखिल किया था। इसमें वाराणसी के डीएम, पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतेजामिया कमेटी के साथ ही विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को प्रतिवादी बनाया गया था।
बाद में 25 मई को जिला जज ने मुकदमे को फास्ट ट्रैक अदालत में ट्रांसफर कर दिया था। मुस्लिम पक्ष ने वाद की पोषणीयता पर सवाल खड़ा किया और इसे 1991 वर्शिप एक्ट के तहत चुनौती दी थी।
अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों और पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों और कानून की नजीरों के आधार पर मुस्लिम पक्ष के आवेदन में बल न पाते उनकी तरफ से दिए गए ऑर्डर 7 रूल 11 के आवेदन को खारिज करते हुए नाबालिग भगवान आदि विश्वेश्वर के वाद को सुनवाई योग्य पाया। सभी पक्षकारों को लिखित बयान दाखिल करने के साथ वाद बिंदु तय करने के लिए दो दिसंबर की तिथि नियत कर दी।
वादिनी के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह, शिवम गौड़ और अनुपम द्विवेदी ने दलील में कहा था कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन की तरफ से जो आपत्ति उठाई गई है वो साक्ष्य व ट्रायल का विषय है।
ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का है। यह भी दलील दी थी कि विशेष धर्म स्थल स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। वक्फ एक्ट हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है।
वहीं अंजुमन की तरफ से मुमताज अहमद, तौहीद खान, रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान और एखलाक खान ने कोर्ट में प्रतिउत्तर में सवाल उठाया था कि जब देवता की तरफ से मुकदमा किया गया तब वादी पक्ष की तरफ से पक्षकार 4 और 5 विकास शाह और विद्याचन्द्र कैसे वाद दाखिल कर सकते है।
यह वाद किस बात पर आधारित है इसका कोई पेपर दाखिल नहीं किया गया है और कोई सबूत नहीं है। साथ ही कानूनी नजीरें दाखिल कर कहा था कि वाद सुनवाई योग्य नहीं है।
मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि ज्ञानवापी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है। ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का अधिकार नहीं है। इस पर वादिनी पक्ष की दलील थी कि वक्फ बोर्ड में वही मुकदमा चल सकता है जिसमे दोनों पक्ष मुस्लिम पक्षकार हो।
बता दें कि इसी तरह श्रृंगार गौरी वाद में भी जिला जज की अदालत ने सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद ऑर्डर 7 रूल 11 के अंजुमन के आवेदन को खारिज करते हुए वाद को सुनवाई योग्य पाया था।