सुप्रीम कोर्ट से यूपी सरकार ने श्रीकृष्ण के पसंदीदा पेड़ लगाने की मांगी अनुमति, कहा- पुराणों में भी इन 12 वनों का उल्‍लेख

The UP government sought permission from the Supreme Court to plant Shri Krishna's favorite trees, saying that these 12 forests are also mentioned in the Puranas.

 
यूपी सरकार का कहना है कि वो इस क्षेत्र में भगवान कृष्ण (lord krishna) की पसंद वाले कदम्ब, करील, अर्जुन, ढाक जैसे पेड़ लगाना चाहती है,

 

 सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दाखिल अर्जी (application) में यूपी सरकार का कहना है कि वो इस क्षेत्र में भगवान कृष्ण (lord krishna) की पसंद वाले कदम्ब, करील, अर्जुन, ढाक जैसे पेड़ लगाना चाहती है, ताकि ब्रज परिक्रमा (circumambulation) क्षेत्र को लेकर धार्मिक ग्रंथों में वर्णित प्राचीन (described ancient) वनों को फिर से वैसा ही बनाया जा सके.

 

मथुरा और आसपास के क्षेत्र में श्रीकृष्ण के पसंदीदा पेड़ लगाने की परमिशन सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई हैमथुरा और आसपास के क्षेत्र में श्रीकृष्ण के पसंदीदा पेड़ लगाने की परमिशन सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई है

 

 

भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा का पौराणिक और ऐतिहासिक गौरव फिर से लौटाने को कवायद में जुटी उत्तरप्रदेश सरकार ने वहां हरियाली बढ़ाने के लिए बनाई परियोजना की अर्जी सुप्रीम कोर्ट में लगाई है. मथुरा को हरा भरा बनाकर संवारने की मुहिम के तहत भगवान कृष्ण के पसंदीदा पेड़ लगाने की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने मथुरा और आसपास के ब्रज क्षेत्र में पौराणिक 12 वनों को फिर से साकार करने की परियोजना ‘प्राचीन वन क्षेत्रों के पुनर्जन्म’ तैयार की है. इसके जरिए वह भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत वाली मथुरा की महिमा को पुनर्जीवित करना चाहती है.

बता दें कि पुराणों में मथुरा और आसपास 12 वनों का जिक्र है. उनके नाम (1) मधुबन, (2) तालबन, (3) कुमुदवन, (4) बहुलावन, (5) कामवन, (6) खिदिरवन, (7) वृन्दावन, (8) भद्रवन, (9) भांडीरवन, (10) बेलवन, (11) लोहवन और (12) महावन हैं.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में यूपी सरकार का कहना है कि वो इस क्षेत्र में भगवान कृष्ण की पसंद वाले कदम्ब, करील, अर्जुन, ढाक जैसे पेड़ लगाना चाहती है, ताकि ब्रज परिक्रमा क्षेत्र को लेकर धार्मिक ग्रंथों में वर्णित प्राचीन वनों को फिर से वैसा ही बनाया जा सके. इस योजना को पूरा करने के लिए उसे सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी का इंतजार है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की सहायता कर रहे वकील एडीएन राव से सुझाव मांगे हैं.

चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ और वनस्पति लगाने का जिक्र

दरअसल, आगरा के पास स्थित मथुरा का ये क्षेत्र ताज ट्रिपेज़ियम जोन ( TTZ) में आता है. इस इलाके में किसी भी नए निर्माण कार्य के लिए सुप्रीम कोर्ट की इजाजत लेना जरूरी है. यूपी सरकार के वन विभाग ने अपनी अर्जी में कहा है कि वो एक पर्यावरण-पुनर्स्थापना अभियान शुरू करना चाहता है.

इसके तहत देसी किस्म की चौड़ी पत्तियों वाले पेड़, वनस्पति का रोपण किया जाएगा. खास तौर पर वैसे पेड़ जिनका जिक्र पुराणों और धर्म ग्रंथों में भगवान श्री कृष्ण के प्रिय वृक्षों के रूप में किया गया है. इनमें कदम्ब जैसी देशी प्रजातियों के अलावा तमाल, पीलू, बरगद, पीपल, पाकड़ यानी पिलखन, मौलश्री, खिरनी, आम, अर्जुन, पलाश, बहेड़ा आदि प्रजातियां शामिल हैं.

विदेशी प्रजाति की वनस्पति उखाड़ने की इजाजत मांगी

अर्जी में कहा गया है कि इस इलाके में लगे प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (PJ) की विदेशी प्रजाति की आक्रामक वनस्पति को उखाड़ने की इजाजत दी जाए. ये पेड़ भारत में और खासकर ब्रजमंडल के पर्यावरण और जीव जंतुओं के लिए खतरनाक है. ब्रजमंडल मैदानी और अरावली की पठारी भूमि का स्थान है. यहां का वातावरण और पर्यावरण भी अलग है.

जैव विविधता को होगा लाभ

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अर्जी में यूपी सरकार ने अपनी योजना निर्धारित करते हुए राज्य वन विभाग की ओर से मथुरा के आसपास के वन क्षेत्रों में इन पेड़ों को हटाने की इजाजत मांगी है. दलील है कि देसी प्रजाति के पेड़ों के रोपण से न केवल पुष्प और वानस्पतिक बल्कि जैव विविधता भी फिर से स्थापित होगी. पशु व जैव विविधता में भी जबरदस्त वृद्धि होगी.

यूपी सरकार ने किया ये दावा

अपनी योजना के पीछे धार्मिक दृष्टिकोण बताते हुए विभाग ने दावा किया कि मथुरा के अलावा ब्रजमंडल के 84 कोस में 137 प्राचीन वन हैं, जिनका प्राचीन भारतीय धार्मिक ग्रंथों में जिक्र है. उनमें से 48 वन और 48 देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए ब्रज मंडल की परिक्रमा का हिस्सा भी है. तीर्थयात्री परिक्रमा के हिस्से के रूप में इन प्राचीन जंगलों की पूजा करते हैं, जबकि 4 जंगल एक ही नाम और उसी स्थान पर मौजूद हैं जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है.

37 वनों का भी पता लगा लिया गया है. सात और स्थानों की पहचान करने की प्रक्रिया जारी है. इसमें कहा गया है कि 37 में से 26 आरक्षित वन क्षेत्रों में आते हैं और 11 सामुदायिक या निजी भूमि के रूप में चिह्नित हैं. अर्जी में कहा गया है कि परियोजना को अगले 3 वर्षों में तीन चरणों में लागू किया जाएगा.

अर्जी में कोर्ट को बताया गया कि साइट पर भूमि की उपलब्धता के अनुसार 1.3 हेक्टेयर से 10 हेक्टेयर क्षेत्र के पैच की पहचान की जाएगी. परियोजना की समीक्षा और वार्षिक मूल्यांकन के लिए एक निगरानी समिति होगी, जो वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट जारी करेगी.