मैं रामजी को नहीं देख सकता पर वो तो मुझे देखते होंगे, बुजुर्ग की बातें सुन भर आएगी आंखे

I can't see Ramji but he must be seeing me, my eyes will fill with tears after listening to the old man's words.

 
इसी आस से मैं रामलीला में आता हूं कि कभी प्रभु की कृपा दृष्टि इस तुच्छ पर पड़ जाए, तो मेरा जीवन धन्य हो जाए।"

"बाबा, आप रामलीला देखने क्यों आते हैं, जब आपकी दोनों आंखें तो जन्म से ही नहीं देख सकतीं? इतनी तकलीफ उठाने की क्या जरूरत है?" इस सवाल पर स्वामी रामदास की आंखें नम हो गईं। कुछ पल बाद उन्होंने अपने भावों को नियंत्रित करते हुए कहा, "बेटा, मैं भले ही अंधा हूं, पर मेरे प्रभु श्रीराम तो मुझे जरूर देखते होंगे। इसी आस से मैं रामलीला में आता हूं कि कभी प्रभु की कृपा दृष्टि इस तुच्छ पर पड़ जाए, तो मेरा जीवन धन्य हो जाए।"

रामनगर की 223 साल पुरानी रामलीला, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है, आज भी प्राचीन परंपराओं का पालन करती है। यहां न तो आधुनिक लाइटों का प्रयोग होता है और न लाउडस्पीकर का। "चुप रहो", "सावधान" जैसे शब्दों से ही हजारों की भीड़ में शांति छा जाती है।

रामलीला से जुड़ी कई अद्भुत कहानियां प्रचलित हैं, और मान्यता है कि अंतिम आरती में भगवान स्वयं प्रकट होते हैं। रामलीला के पात्र पूरी निष्ठा, अनुशासन और संयम से इस लीला में भाग लेते हैं। कुछ पात्रों ने तो स्वयं भी दैवीय शक्ति का अनुभव किया है।

इस रामलीला में शामिल होने वाले नेमी (प्रतिभागी) एक महीने तक अपने सभी काम छोड़कर लीला को समर्पित करते हैं। इन्हीं नेमियों में अयोध्या के स्वामी रामदास भी हैं, जो जन्म से ही दृष्टिहीन हैं। 75 वर्ष की आयु में, कमजोर शरीर और कांपते पैरों के बावजूद, वे चार साल से रामलीला देखने अयोध्या से आ रहे हैं।

वे अकेले ऐसे दिव्यांग हैं जो नियमित रूप से लीला में शामिल होते हैं। रामदास जी कहते हैं, "मैं भगवान को देख नहीं सकता, पर जब उनकी लीला सुनता हूं तो मेरा शरीर सिहर उठता है।"

बिहार के छपरा जिले के मूल निवासी स्वामी रामदास बचपन से ही भगवान के प्रति समर्पित थे, इसलिए उन्होंने संन्यास धारण कर लिया और अयोध्या आ गए। मिर्जापुर के नारायणपुर में स्थित डोमरी के बाबा आनंद दास ने जब उन्हें रामनगर की रामलीला के बारे में बताया, तो वे भावुक हो गए और उनसे आग्रह किया कि क्या वे उन्हें वहां ले जा सकते हैं।

बाबा आनंद दास ने शुरुआत में हिचकिचाया, लेकिन फिर उन्हें रामलीला ले जाने का आश्वासन दिया। आज भी बाबा रामदास आनंद दास के साथ बाइक से रामलीला स्थल तक पहुंचते हैं। कभी आनंद दास न हो तो वे किसी और की मदद से वहां पहुंच जाते हैं।