मोटापा को बीमारी बताकर...हाईकोर्ट ने 153 किलो के आरोपी को दी जमानत
Terming obesity as a disease, the High Court granted bail to the accused of 153 kg
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट : ने 3 हजार करोड़ रुपए के Money Laundering केस (पोंजी स्कीम घोटाले) के आरोपी प्रांजिल बतरा को उसके 153 किलो वजन और उसकी बीमारियों को देखते हुए जमानत दे दी।यह घोटाला देश के कई हिस्सों से जुड़ा था और करीब 3 हजार करोड़ रुपए का था।
इसमें लगभग 33 लाख लोगों के साथ ठगी हुई थी। हाईकोर्ट ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि मौजूदा केस में जिस प्रकार का मोटापा (आरोपी) है वह सिर्फ एक लक्षण नहीं बल्कि अपने-आप में एक बीमारी है।
हाईकोर्ट ने आरोपी की सेहत से जुड़ी समस्या को देखते हुए कहा कि उसकी मेडिकल रिपोर्ट से साफ है कि वह 153 किलो का है। वहीं उसे अनियमित High Blood Pressure और Diabetes भी है।
इसके अलावा कोरोनरी आर्टरी डिजीज (CAD) भी है। हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की राय पर भी गौर किया जिसमें कहा गया था कि उसकी हालत लगातार खराब हो रही है। इस प्रकार की कई बीमारियों से ग्रस्त मरीज की देखभाल के लिए जेल के डॉक्टर पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी की कई बीमारियों को देखते हुए वह बीमार होने की अति दुर्लभ श्रेणी में आता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी बीमारी में प्रतिक्रिया, प्रतिरोध, रोग से उबरने की क्षमता, बीमारी से लड़ने की शक्ति और प्रभावशाली तरीके से स्वस्थ हो पाना काफी हद तक कम हो जाता है। ऐसे में अंबाला जेल में पिछले 8 महीने से बंद प्रांजिल बतरा नामक आरोपी को जमानत का लाभ दे दिया गया।
मोटापे को भी आधार बनाया था याचिका में
आरोपी को बीते मार्च में गिरफ्तार किया गया था और उसने 2 जून को नियमित जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उसने कहा था कि वह सिर्फ एक कर्मी था और उसका इस अपराध में कोई रोल नहीं है। उसने अपने मोटापे को भी जमानत का आधार बनाया था। Money Laundering केस में आरोपी के मोटापे की स्थिति ने हाईकोर्ट को सोचने पर मजबूर कर दिया। ऐसे में 38 वर्षीय इस आरोपी को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी।
पहले गवाह था फिर आरोपी बना
शुरुआत में आरोपी पोंजी स्कीम घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) केस में सिर्फ एक गवाह था, मगर बाद में जनवरी, 2021 में उसे आरोपी की श्रेणी में जोड़ दिया गया था। ED के मुताबिक याची को इस घोटाले से 53 करोड़ रुपए का लाभ हुआ था। आरोपी प्रांजिल के मुताबिक वह सिर्फ एक सॉफ्टवेयर डेवलपर था और कंपनी द्वारा उसके काम के रूप में रकम दी गई थी।
वहीं ED की जांच में सामने आया कि उसने अपने परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में 15 करोड़ की ट्रांसफर की थी। वहीं इस रकम के इनकम टैक्स की जानकारी नहीं दे पाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि Money Laundering Act की धारा 45 के तहत जांच एजेंसी द्वारा इकट्ठे किए गए सबूत, जिसमें विशेष रूप से लैपटॉप से बरामद जानकारी, परिवार के सदस्यों के खातों से बरामद जानकारी अभी तक अस्पष्ट है।
वहीं याची के सहापराध (कंपलिसिटी) पर शक खड़ा करती है। हालांकि कोर्ट ने ED की उस दलील पर भी गौर किया कि जिस प्रकार की रकम मामले में शामिल है, आरोपी जमानत का लाभ लेकर भाग सकता है। ऐसे में उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए।