आज के दिन इस तरह  करें भगवान गणेश की पूजा, सफलता चूमेगी कदम, बनी रहेगी सुख-समृद्धि

 

हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित रहता है। सप्ताह का पहला दिन भगवान शिव को तो मंगलवार हनुमान जी को समर्पित है। इसी तरह बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश को समर्पित रहता है और आज के दिन उनकी उपासना की जाती है। इस दिन उनकी भक्ति करने से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

 

 

वैसे तो हर शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश जी की पूजा होती है। ऐसे में अगर आप इस दिन विधिपूर्वक गणपति बप्‍पा जी की पूजा करें तो निश्चित ही लोगों के काम बनते हैं। गणपति जी को उनकी प्रिय चीजें जैसे मोदक या लड्डू का भोग लगाना चाहिए और उन्‍हें कम से कम आज के दिन दूर्वा अर्पित करना चाहिए। मान्‍यता है कि इससे गणेश जी प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।

 

घर में इस विधि से करें गणेश चालीसा का पाठ

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, अगर आप घर पर ही गणेश चालीसा का पाठ करना चाहते हैं तो पूजा घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित कर लें। वहां आसन बिछाकर बैठ जाएं और गणेश जी को लाल फूल, धूप, दीप, गंध, चंदन, अक्षत, रोली और फल अर्पित करें।

इसके साथ ही ओम गणेशाय नमः का जाप करते रहें, फिर सही उच्चारण के साथ गणेश चालीसा का पाठ करें। पूजा करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।

 

बुधवार को जरूर करें ये उपाय

बुधवार के दिन गणपति बप्‍पा को साबूत नारियल चढ़ाना शुभ माना गया है। ऐसा करने से घर में धन की कमी नहीं होती है। पुराणों में नारियल को मां लक्ष्मी का फल बताया गया है। हर पूजा-पाठ में नारियल का इस्तेमाल जरूर होता है।

गणेश जी को मोदक और लड्डू बहुत प्रिय होते है इसलिए उनकी पूजा में ये दोनों चीजें जरूर चढ़ाएं। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी को लड्डू या मोदक का भोग चढ़ाने से भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है। हिन्दू धर्म में सुपारी को गणपति बप्‍पा का प्रतीक माना गया है। इसलिए गणेश जी की पूजा में सुपारी को शामिल करना न भूलें।

ऐसा कहा भी जाता है कि बप्पा को सुपारी चढ़ाने से बरकत मिलती है और घर-परिवार में खुशहाली आती है। गणपति बप्पा की पूजा के लिए बुधवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता है। बुधवार के दिन पूजा-पाठ के अलावा आरती पढ़ने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। 

गणेश जी की आरती 

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।

माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

भगवान गणेश जी के जन्म की कहानी 

हम सभी उस कथा को जानते हैं, कि कैसे गणेश जी हाथी के सिर वाले भगवान बने। जब पार्वती शिव के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर थोड़ा मैल लग गया। जब उन्हें इस बात की अनुभूति हुई, तब उन्होंने अपने शरीर से उस मैल को निकाल दिया और उससे एक बालक बना दिया। फिर उन्होंने उस बालक को कहा कि जब तक वे स्नान कर रहीं हैं, वह वहीं पहरा दे।

जब शिवजी वापिस लौटे, तो उस बालक ने उन्हें पहचाना नहीं और उनका रास्ता रोका। तब भगवान शिव ने उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए। यह देखकर पार्वती बहुत हैरान रह गयीं। उन्होंने शिवजी को समझाया कि वह बालक तो उनका पुत्र था, और उन्होंने भगवान शिव से विनती करी कि वे किसी भी कीमत पर उसके प्राण बचाएं।

तब भगवान शिव ने अपने सहायकों को आज्ञा दी कि वे जाएं और कहीं से भी कोई ऐसा मस्तक लेकर आएं जो उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके सो रहा हो। तब शिवजी के सहायक एक हाथी का सिर लेकर आए, जिसे शिवजी ने उस बालक के धड़ से जोड़ दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ।

गणेश जी की कहानी में विचार के तथ्य 

पार्वती जी के शरीर पर मैल क्यों था?

पार्वती प्रसन्न ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनके मैले होने का अर्थ है कि कोई भी उत्सव राजसिक हो सकता है, उसमें आसक्ति हो सकती है और आपको, आपके केन्द्र से हिला सकता है। मैल अज्ञान का प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।

क्या भगवान शिव, जो शान्ति के प्रतीक थे, इतने गुस्से वाले थे कि उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया!

भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों?

तो जब गणेशजी ने भगवान शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अज्ञान, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान को नहीं पहचानता, तब ज्ञान को अज्ञान से जीतना ही चाहिए। इसी बात को दर्शाने के लिए शिवजी ने गणेशजी के सिर को काट दिया था। 

हाथी का ही सिर क्यों? 

हाथी ‘ज्ञान शक्ति’ और ‘कर्म शक्ति’, दोनों का ही प्रतीक है। एक हाथी के मुख्य गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता। एक हाथी का विशालकाय सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है। हाथी कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं। वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है। इसलिए, जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये सभी गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये गुण ले लेते हैं।

गणेश जी के प्रतीक और उनका महत्व 

गणेशजी का बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है। गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेशजी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता। 

वे अपने हाथ में जो भी लिए हुए हैं, उन सबका भी अर्थ है। वे अपने एक हाथ में अंकुश लिए हुए हैं, जिसका अर्थ है जागृत होना और एक हाथ में पाश लिए हुए हैं जिसका अर्थ है नियंत्रण। जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है।

गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान, भला क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है! फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है। एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं। चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं।

हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन बुद्धिशाली थे कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते। तो जब भी हम उस सर्वव्यापी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिए, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं। यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिए।