चमत्कार और रहस्यों से भरा नीम करोली बाबा का धाम, एप्पल और फेसबुक के मालिक समेत दुनियाभर में है भक्त


 

नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। 17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।

 

 

उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा किरहीनं ग्राम में हुई। 11 वर्ष की अल्पायु में ही इनका का विवाह एक सम्पन्न ब्राम्हण परिवार की कन्या से हो गया था। लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इन्होंने घर छोड़ दिया।

 

 

घर छोड़ने के बाद नीम करोली बाबा गुजरात चले गए। वहां पहले एक वैष्णव मठ में दीक्षा लेकर साधना की। उसके बाद अन्य कई स्थानों पर साधना की।

17 वर्ष की आयु में ही इन्हें ईश्वर के दर्शन और ज्ञान प्राप्त हो गया था। लगभग 9 वर्षों तक गुजरात में साधना करने के बाद महाराजजी भ्रमण पर निकले और वापस फिरोजाबाद के नीम करोली नामक गाँव में रुके। यहीं जमीन में गुफा बनाकर पुनः साधनारत हुए।

यहां उन्होंने गोबर की बनी एक हनुमान प्रतिमा की भी स्थापना की। जोकि अब बहुत प्रसिद्ध है। उसपर सिंदूर चढ़ाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। यहां उनकी ख्याति दिन पर दिन बढ़ने लगी।

किसी परिचित व्यक्ति के द्वारा बाबा के पिता को इनके निवास स्थान का पता चला तो उन्होंने वहां पहुचकर बाबा को गृहस्थ आश्रम का पालन करने की आज्ञा दी। वे चुपचाप पिता की आज्ञा मानकर पुनः गृहस्थ आश्रम में प्रविष्ट हुए। इस प्रकार बाबा नीम करौली की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है।

गृहस्थ आश्रम में baba neem karoli को दो पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। जिनके नाम क्रमशः अनेग सिंह शर्मा, धर्म नारायण शर्मा और बेटी गिरजा हैं। गृहस्थ आश्रम के दौरान बाबा सामाजिक और धार्मिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे।

लेकिन मन से सन्यासी नीम करोली बाबा का मन ज्यादा दिन गृहस्थ आश्रम में नहीं लगा। सन 1958 के लगभग महाराजजी ने पुनः घर त्याग दिया। और बहुत से स्थानों का भ्रमण करते हुए कैंची ग्राम पहुंचे।

 

नैनीताल से 18 किमी दूर भवाली के रास्ते में कैंची धाम पड़ता है। बाबा नीम करोली ने इस स्थान पर 1964 में आश्रम बनाया था। इन्‍हीं बाबा नीब करौरी को हनुमान जी का धरती पर दूसरा रूप कहा जाता है। वैसे बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था।

अपनी स्‍थापना के बाद से अब तक भव्य मंदिर का रूप ले चुके कैंची धाम में मां दुर्गा, वैष्णो देवी, हनुमान जी और राधा कृष्ण की मूर्तियां हैं। मंदिर में आज भी बाबा की निजी वस्तुएं, गद्दी, कंबल, छड़ी आज भी वैसे ही सुरक्षित हैं जैसी उनके जीवन में थीं।

पर्यटकों के लिए आज वही मुख्य दर्शन का केंद्र हैं। नीम करोली बाबा अलौकिक शक्तियों के स्वामी माने जाते हैं।

मान्यता है कि बाबा नीब करौरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं। इस मंदिर के संस्‍थापक बाबा अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे, पर वे आडंबरों से दूर रहते थे।

उनके माथे पर न त्रिपुण्ड लगा होता था न गले में जनेऊ और कंठमाला। उन्‍होंने देह पर साधुओं वाले वस्त्र भी कभी धारण नहीं किए। आश्रम आने वाले भक्त जब उनके पैर छूने लगते थे तो वे कहते थे पैर मंदिर में बैठे हनुमान बाबा के छुओ।

केंची धाम पर श्रद्धा रखने वाले भक्‍त देश ही विदेश में भी हैं। जैसे विदेशी भक्त और जाने-माने लेखक रिच्रर्ड एलपर्ट जिन्‍होंने मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखी है, जिसमें बाबा के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है।

हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राब‌र्ट्स भी बाबा की परम भक्‍त बताई जाती हैं। इसी स्‍थान से प्रभावित होकर उन्‍होंने हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया। कुछ साल पहले फेसबुक के संस्‍थापक मार्क जुकरबर्ग भी यहां आए थे।

कैंचीधाम यात्रा एप्पल के फाउंडर स्टीव जाब्स ने भी की थी और बाबा के दिए सेब को उन्‍होंने एप्पल को कंपनी का लोगो बना दिया। 

 बाबा का धाम चमत्कारों से भरा है-

बाबा नीब करौरी के इस पावन धाम को लेकर तमाम तरह के चमत्कार जुड़े हैं। जनश्रुतियों के अनुसार, एक बार भंडारे के दौरान कैंची धाम में घी की कमी पड़ गई थी।

बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह जल घी में बदल गया।

ऐसे ही एक बार बाबा नीब करौरी महाराज ने अपने भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी बनाकर, उसे उसकी मंजिल तक पहुचवाया। ऐसे न जाने कितने किस्से बाबा और उनके पावन धाम से जुड़े हुए हैं, जिन्हें सुनकर लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। 

महाराज जी ने अपने देह त्याग के संकेत पहले ही दे दिए थे। वे एक कॉपी में प्रतिदिन राम नाम लिखते थे। मृत्यु के कुछ दिन पूर्व उन्होंने वह कॉपी आश्रम की प्रमुख श्रीमाँ को दे दी और कहा अब इसमें तुम राम नाम लिखना।

9 सितंबर सन 1973 को baba neem karoli कैंची धाम से आगरा के लिए निकले। रास्ते में उन्होंने अपना प्रिय थर्मस ट्रेन से बाहर फेंक दिया। गंगाजली रिक्शेवाले को यह कहकर दे दी कि किसी चीज का मोह नहीं करना चाहिए।

10 सितंबर 1973 को मथुरा स्टेशन पर पंहुचते ही महाराज जी बेहोश हो गए। उन्हें तुरंत रामकृष्ण मिशन अस्पताल ले जाया गया। वही उन्होंने 10 सितंबर 1973 अनन्त चतुर्दशी की रात्रि में इस नश्वर शरीर को त्याग दिया।

नीम  करोली  बाबा  कम्बल का चमत्कार

एक बार बाबा नीम करोली फतेहगढ़ में रहने वाले अपने भक्त एक बुजुर्ग दंपति के घर अचानक पहुंचे। बाबा ने कहा आज वे उनके यहां ही रुकेंगे। दंपति बहुत खुश हुए। जो भी सर्वश्रेष्ठ घर में उपलब्ध था। वह महाराज जी की सेवा में प्रस्तुत किया।

खा पीकर बाबा कम्बल ओढ़कर सो गए। बुजुर्ग दंपति भी सोने वाले थे कि उन्होंने बाबा के कराहने की आवाज सुनी। आवाज सुनकर वे आकर बाबा के तख्त के पास बैठ गए। बाबा को वे जगा भी नहीं सकते थे। क्योंकि महाराज जी ने किसी भी परिस्थिति में उन्हें जगाने से मना किया था।

पूरी रात बाबा इस तरह कराहते रहे। जैसे कोई उन्हें मार रहा हो। सुबह महाराज जी उठे और अपना कम्बल लपेटकर बुजुर्ग को देते हुए कहा कि इसे नदी में फेंक आओ और इसे खोलकर कदापि मत देखना।

बुजुर्ग दंपति कम्बल लेकर चले तो वह भारी लगा और उसमें लोहे की चीजों की खनखनाहट की आवाज आ रही थी।

उन्होंने सोचा कि बाबा ने तो खाली कम्बल दिया था फिर इसमें लोहा कहाँ से आ गया? लेकिन जिज्ञासा के बावजूद उन्होंने कम्बल बिना खोले नदी में प्रवाहित कर दिया। जाने से पहले बाबा ने कहा कि परेशान मत होना। एक माह बाद तुम्हारा बेटा वापस आ जायेगा।

उन बुजुर्ग दंपति का इकलौता बेटा ब्रिटिश सेना में था। द्वितीय विश्वयुद्ध में वह बर्मा फ्रंट पर तैनात था। एक माह बाद जब उनका बेटा वापस आया तो उसने जो कहानी सुनाई वह अविश्वसनीय थी।

उसने बताया कि एक रात सेना की उनकी टुकड़ी जापानी सेना से चारों ओर से घिर गई थी। भीषण गोलीबारी हुई। जिसमें उसके सारे साथी मारे गए। रात भर गोलियां चलती रहीं। लेकिन उसे एक भी गोली नहीं लगी।

ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने उसके सामने कोई अदृश्य दीवार खड़ी कर दी थी। जिसके पार कोई गोली नहीं आ पाई। सुबह जब ब्रिटिश सेना की और टुकड़ियां आ गयी। तब वह वह सुरक्षित निकल पाया।

यह उसी रात की बात थी जब बाबा उनके घर आये थे। अब उन्हें बाबा के रात भर कराहने मतलब समझ आया। बाबा रात भर उनके बेटे की रक्षा कर रहे थे। उसे लगने वाली गोलियां वे स्वयं झेल रहे थे। इस घटना का वर्णन बाबा रामदास ने मिरेकल ऑफ लव पुस्तक में किया है। 

इशारा देकर प्राण बचाये  

अल्मोड़ा के दिवाकर पंत की तबियत एक दिन अचानक खराब हो गयी। रात होते होते स्थिति नाजुक हो गयी। पहाड़ में रात के समय डॉक्टर को बुलाना संभव नहीं था। सब सुबह होने का इंतजार कर रहे थे।उनकी पत्नी का रो रो कर बुरा हाल था।

अचानक उन्हें लगा कि बाबा नीम करौली neem karoli baba उनका कंधा पकड़ कर हिला रहे हैं। वे एक दवा देकर कह रहे हैं कि ये दवा पिला दो यह ठीक हो जाएगा। बदहवासी में उसे यह सोचने का भी ध्यान नहीं रहा कि महाराजजी यहां कैसे आ गये और केवल उसे ही क्यों दिख रहे हैं?

उसने जल्दी से उठकर वही दवा दिवाकरजी को पिला दी। दवा पीने के बाद दिवाकर जी की हालत और बिगड़ गयी। वे हिंसक हो उठे और अनापशनाप बकने लगे। परिवार के लोग पत्नी को कोसने लगे कि पता नहीं कौन सी दवा पिला दी।

पत्नी को खुद भी नहीं पता था कि कौन सी दवा पिलाई है, इसका नाम क्या है? ये कहाँ से आई और क्या काम करती है? किसी तरह सुबह हुई। डॉक्टर आये चेकअप हुआ और डॉक्टर ने बताया कि अब चिंता की कोई बात नहीं।

रात को पिलाई दवा की शीशी देखकर डॉक्टर ने पूछा यह दवा किसने दी? सबने पत्नी की ओर इशारा किया। वह बेचारी अपराधबोध से ग्रस्त बुरी तरह रोये जा रही थी। डॉक्टर ने कहा,” बेटी तुमने बहुत अच्छा काम किया । इस दवा का नाम कोरोमाइन है। इसी ने तुम्हारे पति के प्राण बचा लिए।