हाईकोर्ट ने कहा- अनुकंपा आधार पर नौकरी आरक्षण के समान नहीं

अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाने की मांग संबंधी एक याचिका को खारिज करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि इसे आरक्षण के दावे की तरह नहीं समझा जा सकता।

 

न्यायाधीश अरुण मोंगा ने फैसले में कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी का प्रावधान मृतक कर्मचारी के परिवार को उसकी मौत के बाद अचानक अभाव का जीवन बिताने से बचाने के लिए है। यह नियोक्ता की तरफ से मदद करने का एक तरीका है, ऐसे में इसे आरक्षण की तरह इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं समझा जा सकता।

 

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट: अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाने की मांग संबंधी एक याचिका को खारिज करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि इसे आरक्षण के दावे की तरह नहीं समझा जा सकता।

 

न्यायाधीश अरुण मोंगा ने फैसले में कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी का प्रावधान मृतक कर्मचारी के परिवार को उसकी मौत के बाद अचानक अभाव का जीवन बिताने से बचाने के लिए है। यह नियोक्ता की तरफ से मदद करने का एक तरीका है, ऐसे में इसे आरक्षण की तरह इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं समझा जा सकता।

 

मौजूदा मामले में याची ने पिता की मौत के लंबे समय बाद अनुकंपा आधार पर नियुक्ति दिए जाने की मांग की है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि याची के पिता हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे।

28 मार्च 2003 को उनकी मौत हो गई। उस समय याची 16-17 साल का था। 26 जून 2003 को वह अनुकंपा आधार पर नौकरी पाने के लिए योग्य था।

उसने सीनियर सेकेंडरी परीक्षा पास कर ली थी। हाईकोर्ट ने इस पर कहा कि नौकरी के लिए दावा 19 साल बाद वर्ष 2022 में किया जा रहा है। एक लंबा समय बीत चुका है। परिवार पर मौजूदा समय में अचानक कोई परेशानी नहीं आई है जिस पर विचार किया जाए। ऐसे में अब इस दावे पर विचार नहीं किया जा सकता।

इस समय में परिवार वित्तीय सहयोग पाने का ही हकदार

हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2003 के नियमों के मुताबिक अनुकंपा आधार पर नौकरी का दावा किया जा सकता था लेकिन वर्ष 2006 के नियमों के मुताबिक वित्तीय मदद भी ली जा सकती है। विभाग की तरफ से हाईकोर्ट में कहा गया कि मौजूदा समय में परिवार वित्तीय सहयोग पाने का ही हकदार है।

विभाग की तरफ से वित्तीय मदद की ऑफर दी गई जिसे परिवार ने मंजूर नहीं किया और वर्ष 2003 के नियमों के मुताबिक नौकरी का दावा किया जा रहा है पर लंबा समय बीत जाने के बाद अब इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

उच्चतम न्यायालय ने भी एक सुनवाई के दौरान की थी ऐसी ही टिप्पणी

उच्चतम न्यायालय ने 3 अक्टूबर को एक ऐसे ही मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति एक सुविधा है, अधिकार नहीं। इस तरह रोजगार प्रदान करने का मकसद प्रभावित परिवार को अचानक आए संकट से उबरने में सक्षम बनाना होता है।

उच्चतम न्यायालय ने केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें उसने एकल पीठ के फैसले को सही ठहराया था।

CRPC की धारा 319 के तहत कोर्ट की विवेकाधीन और असाधारण शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए: SC

सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शिकायतकर्ता की ओर से दायर आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को बलात्कार के मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए समन किया गया था।

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत अदालत की शक्ति एक विवेकाधीन और असाधारण शक्ति है जिसका प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए।  

जस्टिस अजय रस्तोगी और सीटी रविकुमार ने कहा कि जिस महत्वपूर्ण टेस्ट को लागू किया जाना है, जो प्रथम दृष्टया मामले से अधिक है जैसा कि आरोप तय करने के समय प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस हद तक संतुष्टि की कमी है कि सबूत, अगर अप्रतिबंधित हो जाता है, तो दोषसिद्ध हो जाएगा।  

इस मामले में ट्रायल जज ने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शिकायतकर्ता की ओर से दायर आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को बलात्कार के मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए समन किया गया था।

अपने आवेदन में, शिकायतकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसने अपने प्रारंभिक संस्करण में उक्त व्यक्ति को आरोपी के रूप में नामित किया था, लेकिन पुलिस ने उनके साथ मिलीभगत से उनका चालान नहीं किया। बाद में हाईकोर्ट ने इस आदेश को खारिज करते हुए अर्जी को मंजूर कर लिया।

अपील में, बेंच ने हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) 3 एससीसी 92 में संविधान पीठ के फैसले का उल्लेख किया और कहा, "संविधान पीठ ने चेतावनी दी है कि धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति एक विवेकाधीन और असाधारण शक्ति है जिसका प्रयोग कम से कम किया जाना चाहिए और केवल उन मामलों में जहां बहुत जरूरी हो।

जिस महत्वपूर्ण टेस्ट को लागू किया जाना है, जो प्रथम दृष्टया मामले से अधिक है जैसा कि आरोप तय करने के समय प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस हद तक संतुष्टि की कमी है कि सबूत, अगर अप्रतिबंधित हो जाता है, तो दोषसिद्ध हो जाएगा।"  

रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि यदि यह खंडन नहीं किया जाता है, तो यह वर्तमान अपीलकर्ता के संबंध में दोषसिद्धि का नेतृत्व करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसलिए हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया गया।

केस : नवीन बनाम हरियाणा राज्य।