मैं घंटो छत पर बैठकर इन बहती हवाओं से बातें किया करता हूँ...ये मुझे तुम्हारा हाल बताते है...

I sit on the terrace for hours and talk to these blowing winds...


 

मैं घंटो छत पर बैठकर

इन बहती हवाओं से 

बातें किया करता हूँ,

ये मुझे तुम्हारा हाल बताते है

बीच बीच में मच्छर कॉलोनी की

अंटियों की तरह इस बातचीत में विघ्न 

 

डाल देते है पर उनकी बातें अनसुनी

कर मैं फिर बातें सुनने की प्रक्रिया

में लग जाता हूँ ।

ये हवा जो उत्तर से बहकर आ रही है

सुना है ये तुम्हारे हिमांचल 

 

से बहकर आ रही है,

काले बादल आसमां के

तुम्हारे आँचल है

जो हवा के संग उड़ते उड़ते मेरे

घर की छत पर आ रुके है,

मेरे बिखरे बालों की लड़ियाँ कहती है

की थोड़ा और झूम जाने दे

पी ने हाथ से जो संवारा है मुझे,

ये बरसते बादलों की हलकी फुहार

क्या तुमने फिर अपने बालों को झटका है

जैसे अक्सर पहले किया करती थी

कभी कभी तुम्हारे याद का दरिया

मेरे मन के समंदर में समाता ही नहीं है

मैं आज भी बेतरतीब जूते कहीं भी 

उतार कर फेंक देता हूँ,

इसलिए नहीं की मैं बेपरवाह हूँ,

बल्कि इस आस में की 

तुम मुझे आकर डांट दोगी

और तुम्हारे इसी अंदाज़ को देखकर

हम फिर एक हो जायेंगे

मैं कभी कभी इतना टूट जाता हूँ,

की मुझे हर जगह बस तुम सुनाई देती हो

हर जगह तुम्हारी यादें

तुम्हारी शक्ल दिखाई देती है

मैं सोचता हूँ किसी दिन तुम टूटते तारें

सा आकर मेरे आशियानें में ठहर जाओगी

और फिर मैं तुम्हें कभी कहीं नहीं जाने दूंगा..

आज आसमां में बादल है

तुमसे मुलाक़ात अब कल होगी,

फिर वैसे ही सजकर आना

उत्तर दिशा में तीन कोश ऊपर,

मैं छत पर तुम्हारा इंतज़ार करूँगा..

 

 

- अनुराग मिश्रा

 

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